पर के धन मा ऐश करे के, जोखा जेन लगाथे ।
गँहू संग वो घुन के जइसे, संगे-संग पिसाथे ।।नेता मन के पाछू धर के, चमचा मन अँटियाथेे ।
अपन विरोधी बैरी ऊपर, भारी धौंस जमाथे ।।
नेता के किरपा पाए बर, कुत्ता भी बन जाथे ।
जेकर ऊपर छुछुवा देथे, तेकर बर गुर्राथे ।।
अपन सुवारथ साधे खातिर, नेता ढोंग रचाथे ।
नेता गड़बड़ करनी करथे, चमचा मारे जाथे ।।
घर-परिवार सुखी राखे बर, सब चौकस हो जावौ ।
गँहू सँग मा घुन के जइसे, झन अब खुदे पिसावौ ।।
रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)
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