इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 29 मई 2022

दो लघुकथाएं



अनूप हर्बोला
 
 टूटा हुआ कप

- अरे! मुनिया तू, मुनिया गीता के घर में काम करती थी। बहुत दिनों बाद,आ अंदर आ। गीता बोली।
- नमस्ते दीदी,कैसे हो?
- मैं ठीक हूँ तू सुना। आज इधर की तरफ कैसे।
- मैं भी ठीक हूँ, इधर पास ही मेरे बेटे ने घर लिया है,इधर आई थी तो सोचा आप से मिल लूँ। बहुत दिन हो गए थे आपको देखे,काफी याद आती है आपकी।
- अच्छा किया, चाय पीएगी तू।
- हाँ दीदी! पिला दो,मन भी कर रहा है आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने को, कितनी भी कोशिश कर लूँ मैं,आपकी वाली चाय का स्वाद आ ही नही पाता।
कुछ देर बाद ...गीता दो कप चाय के लेकर आती है और किनारे से टूटा और घिसा हुआ कप मुनिया को पकड़ाती है- ले तेरी मनपसंद अदरक और ज्यादा चीनी की चाय।
चाय का कप हाथ में लेते वो चाय को फेंक देती है।
-अरे! चाय क्यों गिरा दी।
- दीदी उसमें कुछ गिर गया था,इसलिए मैंने फेंक दी चाय...।
- क्या कोई मक्खी गिर गयी थी।
- उससे भी ज्यादा खतरनाक, मक्खी होती तो मैं हटा देती या आपको दूसरी चाय को बोल देती पर ...।
- क्या गिरा था ऐसा, बोल भी दे। जो तूने चाय गिरा दी। तू तो पहेलियां बूझ रही है।
- तिरस्कार ... टूटे कप में चाय। ऐसा बोलकर मुनिया चली जाती है।

जूठन, कभी नहीं

गुंजन की दो दिन पहले ही शादी हुई है, सारे मेहमान जा चुके हैं, आज सिर्फ घर के ही लोग हैं। दोपहर का समय है। डायनिंग टेबल से गुंजन के सास ससुर,जेठ और पति खाना खा कर उठ जाते हैं और जूठी प्लेट को वहीं छोड़ देते हैं। ये देखकर गुंजन को थोड़ा अजीब लगता है पर चुपचाप वो प्लेट उठाने लगती है।
- अरे! रहने दो वहीं और अपना खाना लगा लो रिंकू, गुंजन का पति की प्लेट में। उसकी जेठानी बोली। गुंजन को ये अटपटा और अजीब लगा। वो कुछ नहीं बोली। जेठानी सास ससुर की प्लेट उठा कर किचन में रख देती है और खुद के लिए खाना अपने पति की प्लेट में डालती है। जब गुंजन ऐसा करने से मना करती है तो पास बैठी सास बोलती है। क्यों री! क्यूं नहीं खाएगी, तू लल्ला की थाली में। पति की जूठी थाली में खाने से प्यार बढ़ता है। कोई नई बात ना है ये,सभी खाते हैं।
गुंजन चुपचाप जा कर अपने लिए दूसरी थाली लेकर खाना अपने लिए लगाती है। सास ये देखकर गुंजन पर गुस्सा करती है तो गुंजन भी खुलकर प्रतिकार करती है। काफी कहा सुनी होती है। जेठानी बीच बचाव की कोशिश करती है पर दोनों किसी नहीं सुनते। हल्ला सुन कर ससुर जेठ और उसके पति बाहर आते हैं, तीनों के पास कोई भी उत्तर नहीं है।
कर्नाटक

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