इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

खदान

प्रमोद मोगरे


       अंधेरे का राज्य बढ़ता जा रहा था। रोशनी करनेवाली एकमात्र चीज़ बॅटरी की हालत भी उन चारों जैसी हो गई थी। छगन ने होशियारी दिखाकर एक समय केवल एक ही बत्ती जलाने की तरकीब सूझाई थी,जिस कारण अब तक उनके पास कुछ रोशनी और जिंदा बच पाने की उम्मीद बची थी। चारों का भुख,डर और थंड के मारे बुरा हाल था, उन्हें तो अब ये भी पता नहीं था कि कितनी देर से वे यहाँ फसे है। पानी का बढ़ता स्तर और घटती रोशनी के साथ, जिंदा बच पाने की उम्मीद भी घटती जा रही थी। ये धनबाद की एक कोयला खदान थी जो ईन चारों की बलि लेने ही वाली थी।
       मोहन,छगन,जग्गु और दिपक ये चारों दोस्त काम की तलाश में धनबाद आए थे। आते ही ईन्हें एक खदान में काम मिल गया था। ठेकेदार ने काम के साथ-साथ रहने और खाने का भी इंतजाम कर दिया था। ईन जैसे ही और मजदुरों के साथ ये भी खदान के पास ही रहने लगे थे। ईन खदानों से दिनरात कोयला निकाला जाता। अलग-अलग पालियों में ये मज़दूर जान कि बाज़ी लगाकर धरती की गहराईये से काला सोना निकालने का काम करते। मज़दूरो की सुरक्षा का कोई सवाल ही नहीं था। ये सारे धरती-पुत्र, धरती माँ पर विश्वास करके उसके गर्भ में उतरते। धरती माँ भी ईन्हें सही-सलामत वापिस लौटा देती। पर ठेकेदारों के लालच के साथ-साथ खदानों की गहराई और मज़दूरों की जान का खतरा दोनों बढ़ता जा रहा था। धरती माँ अपनी नाराज़गी दिखा रही थी,लंबी होती खदानो में आए दिन हलचल हो रही थी, सैकड़ौ टन कोयला गिर जाता,टनल धँस जाती उनमें पानी भर जाता और सुरक्षा के नाम पर केवल कुछ लकड़ी के चाकों से उन गिरती हूई छतों को सहारा दिया जाता जो असफल सिध्द होता जा रहा था। बेबस मज़दूर सब जानकर भी चूप थे।
       रोज़ की तरह ये चारों दोस्त अपना सामान लेकर खदान में जाने को निकले। अपनी बॅटरी बत्ती बाँधकर ये उस खदान की सबसे नई टनल पर पहुँचे। दगान से कई टन कोयला वहाँ बिखरा पड़ा था। सामने कोयले की दिवार से पानी का रिसाव हो रहा था, जो ईन चारों के लिए आम बात थी पर आज पानी ज्यादा तेजी से रिस रहा था। मोहन रुककर उस छेद को देखने लगा जहाँ से पानी रिस रहा था। जग्गु अपनी सब्बल से उपर छत पर लटके हुए कोयले को गिरा रहा था, जिसे खदान की भाषा में झबली कहा जाता है। छत की ऊँचाई दस फिट के लगभग थी, जग्गु सुरक्षित दुरी बनाकर बड़ी सावधानी से ढीले कोयले को गिरा रहा था। वो रुककर थोड़ा बैठा ही था कि,ज़ोर की आवाज के साथ एक बहोत बड़ी कोयले की चट्टान उस टनल के मुँहाने पर गिर पड़ी। बाकी तिनो जग्गु कि तरफ़ भागे, जग्गु सुरक्षित था,कुछ ही फिट की दुरीपर वो चट्टान गिर पड़ी थी जिसने टनल से बाहर निकलने का रास्ता बंद कर दिया था। जग्गु ने अपनी सब्बल से उस गिरी हुई चट्टान को तोड़ना चाहा.. जल्द ही वे समझ गए की ईसे तोड़ना या हटाना हम चारों के बस की बात नहीं। वे चारों सहमी नज़रों से एक दुसरे को देख रहे थे।
      मोहन बोला- इस आवाज़ से माईन्स सरदारों को भी पता चल गया होगा की कहीं फॉल हुआ है वे जल्द हमें ढूँढ लेंगे।
      इस बीच जग्गू ने महसुस किया की आगे की दिवार से रिस रहा पानी अब टनल में जमा हो रहा है। जो पानी कुछ देर पहले ईनके पाँवो के निचे था अब वो ईनके जुतों तक आ गया था। पर ये आश्वस्त थे कि माईन्स सरदार और बाकी लोग ईन्हें ढुँढ लेंगे। ये उत्सुकता से मदद की राह देखने लगे...
       कुछ घंटो बाद एक और ज़ोर का धमाका उन्हें सुनाई दिया। ये दगान की आवाज़ थी।( दगान ये पाली के अंत में की जानेवाली प्रक्रिया होती है, जिसमें विस्फोटको से कोयले की दिवारों को तोड़ा जाता है ताकि अगली पालि के मज़दूरों को कोयला मिल सकें।) जिसका मतलब था खदान में सब सामान्य है, ईन चारों के यहाँ फसे हाने का किसी को पता नहीं चला था। कल रविवार था.. अब सोमवार तक खदान में कोई नहीं आनेवाला था। टनल में पानी का स्तर बढ़ता जा रहा था.. जूतों तक का पानी अब घूटनों तक आ गया था। अब ईन चारो को अपनी जान बचाने के लिए खुद प्रयास करने थे वरना कोयले की ये बंद टनल ईनकी कब्र बन जानेवाली थी।  
       छगन बोला- हमें सबसे पहले हमारी बत्ती को बचाना होगा। चारों में से कोई एक अपनी बत्ती शुरू रखेगा जिससे रोशनी हमारे पास देर तक बनी रहे। सबने अपनी बत्ती बंद कर दी.. छगन की बत्ती शुरू थी।
मोहन- ईस टनल से बाहर कैसे निकलेंगे ?
जग्गू- ईस चट्टान को तोडकर बाहर निकलना मुशकिल है।
छगन- टनल में पानी भी जमा हो रहा है।
दीपक- हमें हर हाल में ईस चट्टान को रास्ते से हटाना होगा.. वरना ये पानी हमें यही डुबाकर मार देगा।  
        और जैसा सब जानते थे यही एकमात्र रास्ता ईनके सामने था। सारे दोस्त पूरी ताकत से उस कोयले की चट्टान को हटाने में जुट गए। उनके पास दो सब्बल,चार फावड़े थे वे बारी-बारी से उस दिवार पर प्रहार कर रहे थे। कुछ ही देर में वे समझ गए की उसे तोड़ पाना ईनके बस की बात नहीं। अब वे पानी में आधे डुब चुके थे,भुख,डर और थंड के मारे उनका बुरा हाल था, बॅटरी भीग जाने से बत्ती की रोशनी भी कम हो गई थी। कम होती रोशनी के साथ बचने की उम्मीद भी धुँधली होती जा रही थी... पानी का स्तर बढता जा रहा था।
कुछ देर की शांति के बाद दीपक बोला- हम तो मर जाऐंगे यार.. चट्टान तो हिल भी नही रही..ये पानी तो हमारी जान ले लेगा......
छगन बोला- नहीं.. अब ये पानी ही हमें यहाँ से बाहर निकालेगा....
तीनों बड़े आश्चर्य से छगन को देखने लगे।
दीपक - कैसे ?
छगन – हम पानी की ताकत से चट्टान के खिलाफ लडेंगे...
तीनों अब भी कुछ समझ नहीं पाए थे... जग्गु बोला- हम करने क्या वाले है।
छगन- अब हम चट्टान पर नही कोयले की दिवार पर प्रहार करेंगे.. जिससे ये पानी तेज़ी से बाहर आए और अपने बहाव में सामने वाली चट्टान को बहा ले जाए...
दीपक- चट्टान नही टुटी तो हम डुब जाऐंगे...
जग्गु- वैसे भी तो डुब ही रहे है...पानी धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जो कुछ घंटो में हमें डुबा ही देगा।
मोहन- धीरे-धीरे मरने से बेहतर है एकदम से मरना..
छगन- कोई नही मरेगा.. ईस दिवार के पीछे बहोत सारा पानी है, जो ईस चट्टान को तोड़ ही देगा..
दीपक- मानो चट्टान टुट भी गई.. फिर पानी तो पुरी खदान में भर जाएगा.. हमारे साथ बाकी लोग भी मारे जाऐंगे..
छगन- अभी-अभी दगान हुई है. मतलब खदान खाली है.. चट्टान टुटने से पानी निचे की ओर बहेगा.. हमें थोड़ा समय मिल जाएगा उपर निकलने को....
दीपक- अगर पानी ने हमें ही चट्टान से टकरा दिया तो ?
छगन- देख भाई...कुछ ना करके भी हम अगले कुछ घंटो में मर ही जाऐंगे... चलो बचने कि कोशिश करके मरते है।
दीपक के पास अब और कोई सवाल बाकी नहीं था.. वो मुस्कुराकर बोला- चलो दिवार तोड़ते है।
         चारों दोस्त दिवार कि तरफ बढ़ने लगे.. वे पानी को चिरकर दिवार तक पहुँचे.. पानी रिसने की जगह पर छगन ने पुरी ताकत से सब्बल चलाई.. वहाँ एक छेद जैसा बना जो तेजी से पानी उगलने लगा.. वो उसी छेदपर प्रहार करने लगा जिससे,छेद का आकार और पानी की धार बढ़ती जा रही थी। ईधर टनल में पानी का स्तर भी बढ़ता जा रहा था.. अब पानी ईनके गले तक था..बस कुछ और समय था ईन चारों के पास..
       छगन अब भी पुरी ताकत से वार कर रहा था। रोशनी धुँधली हो गई थी.. साँस लेने में भी अब दिक्कत हो रहीं थी। दीपक जो अब तक इस तमाशे को दुर से देख रहा था, छगन के पास आकर बोला- ला भाई ज़रा में कोशिश करुँ.. छगन ने उसे सब्बल दी.. अब पानी मुँह तक आ गया था.. दीपक बोला- भाई झुककर बीच में सब्बल फँसा देते है। छगन ने सहमती में सिर हिलाया। दोनों ने एक लंबी साँस ली और पानी में झुककर दिवार के बिचोंबिच पुरी ताकत से सब्बल ड़ाल दी। सब्बल गहरें तक धँस तक गई थी, दोनों उसे वापिस खिंच नही पा रहे थे। वे पानी के बाहर आए, उन्होंने मोहन और जग्गु को भी मदद के लिए पास बुलाया।
        अब चारों दोस्त अपने जीवन के लिए आखिरी प्रयास करने वाले थे। चारों एक-दुसरे को देखकर मुस्काऐ.. उन्होंने एक गहरी साँस खिंची और पानी में झुक गए. सब्बल को टटोलकर पुरी ताकत से अपनी और खिंचा....... सब्बल एक जोर की आवाज़ के साथ बाहर आ गई। चारों तरफ अंधेरा छा गया.. ये एसी स्थिती थी,जहाँ आँखे बंद हो या खूली कुछ दिखाई नही देता। हर तरफ अंधेरा था,घोर अंधेरा.. टनल पुरी तरह पानी में डुब चुकी थी..चारों दोस्त पानी के अंदर थे.. साँसे उखड़ने लगी थी..दम घुटने लगा था। 
        टनल के भर जाने से पानी का दबाव  चट्टान पर पड़ने लगा था.. जिससे चट्टान खिसक गई थी। अचानक पानी तेज़ी से चट्टान का तरफ बहने लगा। जीने की चाह ने पानी के ज़रीए चट्टानों को हटाकर अपनी राह बना ही ली थी...टनल का जलस्तर कम होने लगा था.. चारों दोस्त टनल के मुँहाने पर थे.. दीपक फूली हुई साँस के साथ चिल्ला रहा था... चट्टान टुट गई यार.....चट्टान टुट गई.....

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