आखिरकार जंगल के पेड़ों की गिनती के उपरांत पक्षियों और पशुओं की, उनकी जाति आधारित गिनती प्रारंभ हुई। कौवे कांव कांव करने लगे कि हम भी संख्या में कम नहीं हैं। गिद्ध अलग ही राग छेड़े हुए थे कि हम लुप्तप्राय हैं तो क्या,हमारी हिस्सेदारी जंगल की चीजों में कम क्यों हो ? तीतर- बटेर,गौरया आदि हर तरह के पक्षी जंगल की चीजों पर अपना हक जमाने के लिए बेताबी से अपने अपने तर्क रखते। कोई संख्या, तो कोई समझ पर जोर देता। कोई मुफ्तखोरी के चलते आलसी हो चुके परिंदों के हाथ पांख चलाने,खाना चुगने की जुगत पर जोर देता।
जमीन पर पशु - समुदाय अलग ही समां बांधे हुए था। माद्दा था कि सारे पेड़ - पौधे धरती पर उगे हैं। ये आकाशी परिंदे हवा में हमारे ही बल पर उड़ते हैं। पेड़ों पर घोंसला जमा लेते हैं। करते क्या हैं ये सब? हम तो इन पेड़ पौधों की रक्षा करते हैं। वन - संपदा पर हमारा अधिकार सब से अधिक है। हम उसे लेकर रहेंगे।
बहुत देर से गिलहरी पेड़ की डाल पर बैठी सबकी सुन रही थी। एकाएक गुस्से में बोली - अबे मरदूदो! जरा उन परिंदों की सोचो जो कबसे कैद हैं। आओ, उन्हें पहले आजाद कराएं।
ढोर - मंडली मौन हो गई, पर परिंदे चहचहाते रहे।
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