अंजु ओझा
शाश्वत को बहुत मन है कि अपने माँ बाऊजी के लिए हरिद्वार में एक फ्लैट खरीदे, लेकिन पत्नी वैदेही ने साफ तौर पर मना कर दिया है कि हमें अपने भविष्य का सोचना है। बैंक का काफी लोन चुकाना है,फ्लैट का लोन के अलावा बच्चों के फीस,फर्नीचर वगैरह के कर्ज भी चुकता करना है।
बिचारा शाश्वत गहरे सोच में डूबा है, दिमाग में कशमकश चल रहा है। कल ही बाऊजी का फोन आया था कि तुम्हारे माँ के साथ जीवन के अंतिम पड़ाव को हरिद्वार में गंगा के किनारे भोलेनाथ के साथ व्यतीत करना चाहते हैं। इसलिए तुम हरिद्वार में दो कमरे का एक फ्लैट बुक कर दो। बाऊजी ने उसके अकाउंट में बीस लाख डाले हैं और वैदेही को नामंजूर है कि क्या जरूरत है हरिद्वार में फ्लैट लेने का? इन पैसों से हम बैंक के कर्ज को भर देते हैं। आप कह देना कि फ्लैट की बुकिंग करी हुई है दो तीन साल में मिलेगा फ्लैट ? वैदेही अपना शातिर चाल चल रही है।
उफ्फ!
शाश्वत के मन में उधेङबुन का तानाबाना!
यदि इन पैसों से बैंक के लोन भरता है लेकिन सरासर धोखेबाजी हो जाएगी और बाद में माँ बाबूजी की नजरों गिर जाऊंगा।
ना बाबा ना! ऐसा मैं नहीं कर सकता। तुरंत से गुगल में सर्च कर हरिद्वार में फ्लैट बुक करा देता है।
पटना
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