तान्या सिंह
न आया रास मुझे कोई घर किधर जाऊँ
सफ़र से थक के मैं लौटूँ या फिर ठहर जाऊँ
बता बिछड़ना है या फिर करीब बढ़ आऊँ
कि माथे पे तेरे सूरज - सा मैं उभर जाऊँ
अँधेरे लाख मेरा रस्ता रोक लें लेकिन
है रौशनी, कहता हौसला, उधर जाऊँ
है झूठ से नहीं रिश्ता ही होंट का मेरे
मैं वो नहीं सभी के दिल में जो उतर जाऊँ
मुझे गुरेज़ नहीं पत्थरों के रस्ते से
मैं वो हूँ जो नदी के रौ जैसे गुज़र जाऊँ
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