इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 23 मई 2021

सोने का पत्‍ता

एक समय की बात है एक औरत अपने छोटे से घर में अपने दो बच्चों के साथ रहा करती थी वह बहुत ही गरीब थी। वे इतनी गरीब थे कि उन्हें खाने पीने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ता था कभी-कभी तो उन्हें भूखे पेट ही सो जाना पड़ता। ऐसे में वह औरत रोज रात को आसमान की ओर देखकर एक ही बात कहती कि काश हमारी जिंदगी सुधर जाए और हम सब अच्छे से रहने लगे। और उनके साथ ऐसा हुआ भी। एक रात वहां से एक परी गुजर रही थी और उस परी ने उस औरत की दुर्दशा देखी और उसकी बातों को ध्यान से सुना।
उसे सुनकर उस परी को दया आ गई और परी ने उस औरत को एक पेड़ दिया और उसे कहा कि इस पेड़ में से जब कभी भी कोई पता नीचे गिरेगा वह सोने का बन जाएगा। उस सोने को तुम बाजार में बेचकर पैसे ला सकती हो और अपने घर को खुशी-खुशी चला सकते हो।
यह सब होता देखो औरत बहुत ही खुश हुई। अब उसके हालात पहलें से सुधर चुके थे। अब उसे और उसके बच्चों को जी भरकर खान भी मिलता।
वह औरत उस पेड़ का अच्छे से खयाल रखने लगी और समय पर उसे सोना मील जाता। धीरे-धीरे पेड़ उन्हें ज्यादा पत्तियाँ देने लगा। ऐसे मे वें ओर भी अमीर होते चले गए।
लेकिन, उस औरत की लालच बढ़ती चली गई ओर उसने सोचा की क्यो ना पूरी पत्तियों को एक साथ निकालकर बेच आती हूँ इससे रोज़-रोज़ का का कोई झंझट नही होगा ओर पैसे हमारे पास एक साथ आ जायेंगे। उस औरत ने ऐसा ही किया। औरत ने पेड़ के सारे पत्ते निकाल लिए और फिर वह पत्तों को सोने मे बदले का इन्तज़ार करने लगी। समय बिता लेकिन पत्ते सुख गए और ऐसे ही रह गए।
अब पेड़ भी सुख गया और औरत के पैसे धीरे-धीरे खतम होने लगे। कुछ महिनो पश्चात महिला वापस गरीब हो गए। अब उसकी हालात पहले जैसे हो चुकी थी।

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