एक समय की बात है। एक गाँव में मेहनती किसान रहता था। उसका नाम हीरा था। वह इतना मेहनती था की लोगो ने उसका नाम ही मेहनती रख दिया था। अब दिक्कत यह थी की वह जितना भी मेहनत करता उससे उतना फल कभी नहीं मिला। गाँव मे ऐसे बहुत से लोग थे जो कम मेहनत किए भी ज्यादा धन दौलत कमाते थे।खुशी खुशी जीवन जीते थे। इन्हे देख हीरा उदास हो जाता ओर सोचता की ऐसा क्या करें जिससे मेरा जीवन भी सुधर जाए। और भी दूसरो की तरह जीवन जी सकूँ।
इन्हीं सब बातों को सोच कर वह दुखी रहने लगा। ऐसा करके अपना सारा दिन व्यर्थ कर देता। एक दिन जब वह जंगल के मार्ग से जा रहा था। तो वह थक कर एक पेड़ के निच्चे बैठ गया। पेड़ के निच्चे बैठ कर वह उन्ही बातों को सोचकर अपने आप को कोस रहा था। तभी वहाँ पिच्चे से आवाज़ आई, “तुम्हारें परेशानियों का कारण मैं जनता हूँ और मैं तम्हें उसे दूर कैसे करना हैं यह भी बता सकता हूँ”
अचानक यह आवाज सुनकर हीरा घबरा गया। उसने अपने आसपास देखा लेकिन उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया तो वह चिल्लाकर बोला, “कौन है जो यह बातें कह रहा है?”
फिर एक आवाज आई, “यह मैं बोल रहा हूं तुम्हारे पीछे का यह पेड़ जिसके नीचे तुम बैठे हो। मैं एक ऐसा पेड़ हूँ जो लोगों की इच्छाएं पूरी करता है। और तुम्हें निराश देखकर मुझे लगता है कि मुझे तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करना चाहिए। तो कहो मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?”
ऐसे में हीरा बहुत देर तक घबराकर सोचता रहा कि आखिर यह हो क्या रहा है। फिर थोड़ा समय लेने के बाद हीरा ने उस पेड़ से कहा, ” मैं जितनी मेहनत करता हूं इतनी मेहनत कोई भी नहीं करता लेकिन उसके अनुरूप मुझे फल नहीं मिलता। तो मैं चाहता हूं कि मुझे थोड़ी धन दौलत मिले जिससे मैं अपना जीवन अच्छे से व्यतीत कर सकूं।”
पेड़ ने हीरा की बात सुनी और उससे कहा कि जाओ तुम्हारी इच्छा में पूरी करता हूं अगले 30 दिन तक तुम्हें जितने भी धन की जरूरत होगी, वो तुम्हें अपने आप मिल जाएगी और तुम्हें उसका जिस तरह से इस्तेमाल करना हो तुम वह कर सकते हो।
वैसे में हीरा बहुत ही खुश हो गया और खुश होकर सीधे अपने घर की ओर चल पड़ा घर जाते ही उसने देखा कि उसके अलमारी की तिजोरी पूरी पैसों से भरी पड़ी थी। उसने उन पैसों से सारी ऐसो आराम की चीजें खरीदी और जहां हो सकता था वहां उस पैसे को खर्च किया। ऐसा करते-करते उसने अगले के 30 दिन पूरे आशाराम और अच्छे से पैसे खर्च करने में लगा दिया।
समय समाप्त हो चुका था। हीरा को जितने भी पैसे मिले उसने सारे खर्च कर दिए थे और अब उसके पास एक भी पैसा नहीं बचा था। ऐसे में हीरा फिर से उदास हो गया और अपने आगे की चीजों को लेकर फिर से चिंतित हो गया।
हीरो फिर से उस पेड़ के पास गया और जाकर उसे कहने लगा कि मुझे और भी पैसे चाहिए और भी समय चाहिए ताकि मैं उन पैसों को जमा कर सकूं।
फिर पेड़ ने उसे कहा कि यही तो तुम्हारी परेशानी है कि तुम जितना मेहनत करते हो तुम्हें उसके अनुसार पैसे भी मिलते हैं लेकिन तुम उन पैसों की कदर नहीं करते और उन्हें जहां मिले वहां खर्च कर देते हो। जिससे कि तुम्हारे पास भविष्य के लिए पैसे नहीं बचते और तुम दूसरों से अपनी तुलना करना चालू कर देते हो तो मगर दूसरों को देखो तो दूसरी पैसों की कदर करके उसे अपने भविष्य के लिए बचाते हैं और खुशहाल होकर जिंदगी जीते हैं।
यह सुनकर हीरा की आंखें खुल गई और उसने अपने निर्णय लिया कि मैं जितनी भी मेहनत करूंगा और उसका जितना भी मुझे पैसे मिलेगा मैं उसे सही तरीके से खर्च करूंगा और अपने भविष्य के लिए बचा लूंगा। बच्चों की कहानियाँ ।
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