सुशील यादव
हम पर क्या बीती जाने क्यों,
हम रीते रह गए
अश्कों की दरिया
हम रीते रह गए
अश्कों की दरिया
ताजमहल बस सीते रह गए
हो न सका जो होना था कल,
वो ग़ज़ब आज हुआ
हम साधु बने मरघट जीवन,
हो न सका जो होना था कल,
वो ग़ज़ब आज हुआ
हम साधु बने मरघट जीवन,
हां, जीते रह गए
डर ने कैद किया अदभुत,
उस पे संग तराशी
छीक मनाही वाली मिलती,
डर ने कैद किया अदभुत,
उस पे संग तराशी
छीक मनाही वाली मिलती,
चुप्प रहती खांसी
देकर जग ने छीन लिया हो,
सभी सुख आहिस्ता
कहने को वाचाल लगते
खूब सुभीते रह गए
देकर जग ने छीन लिया हो,
सभी सुख आहिस्ता
कहने को वाचाल लगते
खूब सुभीते रह गए
आकर तुम भी देखा करना,
सूखे करुण सागर
उन नावों की याद करें जो,
चली थी इठलाकर
मंसूबे बांधे आए हो,
सूखे करुण सागर
उन नावों की याद करें जो,
चली थी इठलाकर
मंसूबे बांधे आए हो,
संवाद उदघाटन
यादों में इन हाथों कैंची,
औ फीते रह गए
यादों में इन हाथों कैंची,
औ फीते रह गए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें