हम सावन मन हरयाये
हम सावन में न हरयाये,
और न जेठ मुरझाये,
हाँ,रैली, घेराव, धरने में
डंडे खाये, अघाये।
और न जेठ मुरझाये,
हाँ,रैली, घेराव, धरने में
डंडे खाये, अघाये।
हम अपनी क्या कहे कहानी,
इसमें कोई न राजा - रानी!
इसमें कोई न राजा - रानी!
कहो तुहारी पॉलिटिक्स क्या,
कॉमरेड इस दौड़ - होड़ में,
कूद - फाँद बहुत कर रहे तुम
खींच - तान में,जोड़ - तोड़ में,
कॉमरेड इस दौड़ - होड़ में,
कूद - फाँद बहुत कर रहे तुम
खींच - तान में,जोड़ - तोड़ में,
आग लगाकर चिल्लाते हो,
दौड़ो - दौड़ो कुआं खोदने,
जले न राजभवन,सिंहासन,
जली जा रही है रजधानी!
दौड़ो - दौड़ो कुआं खोदने,
जले न राजभवन,सिंहासन,
जली जा रही है रजधानी!
मर - खप गये,पालकी ढोते
लेकिन कुम्भ नहा न पाये,
उनके हाथ - अँगुलियाँ महकें
जिनके पुरखों ने घी खाये,
लेकिन कुम्भ नहा न पाये,
उनके हाथ - अँगुलियाँ महकें
जिनके पुरखों ने घी खाये,
आत्मदाह कर मरे पोखरे,
हम नदियों की रेत निचोड़ें
चढ़ी दुपहरी स्वेद नहाये,
तप करते हम औघड़दानी!
रहे सींचते खेत खून से
हम नदियों की रेत निचोड़ें
चढ़ी दुपहरी स्वेद नहाये,
तप करते हम औघड़दानी!
रहे सींचते खेत खून से
लस्त - पस्त पाँव के छाले,
हाड़ जुड़ाती लम्बी रातें
काट रहे उम्मीदे पाले,
हाड़ जुड़ाती लम्बी रातें
काट रहे उम्मीदे पाले,
पाला पीटी ख्वाहिशों की
भरपाई दहाई - सैकड़े के चेक,
अच्छे दिन के दावे करती
लचर दलीले पीटें पानी!
भरपाई दहाई - सैकड़े के चेक,
अच्छे दिन के दावे करती
लचर दलीले पीटें पानी!
खेत जोतते कब तक आखिर,
लबरों के हल कितने चलते,
भई गति साँप छछूँदर केरी
लीलत बने,न बने उगलते
लबरों के हल कितने चलते,
भई गति साँप छछूँदर केरी
लीलत बने,न बने उगलते
चीख - चीख दे रही गवाही,
चश्मदीद ये पाँतें - सड़कें
लहू प्रसव या कटे - मरे का
करता सच की नीमबयानी,
चश्मदीद ये पाँतें - सड़कें
लहू प्रसव या कटे - मरे का
करता सच की नीमबयानी,
न्याय चढ़ा नीलाम पक्षधर
सच के करने लगे दलाली,
प्रतिरोधों के वाहक लाइव
फेचकुर फेंकें करें जुगाली
सच के करने लगे दलाली,
प्रतिरोधों के वाहक लाइव
फेचकुर फेंकें करें जुगाली
करते हैं विष - वमन सँपोले,
गाँधी को तौले गोड़से से,
रीढ़ तोड़कर उर्वरता की
दैवी विधी की व्यथा बखानी
गाँधी को तौले गोड़से से,
रीढ़ तोड़कर उर्वरता की
दैवी विधी की व्यथा बखानी
श्रमजीवी, श्रमसाधक हूं
मेरे अपने घर - गाँव, देश और
धरती का आराधक हूँ,
श्रमजीवी श्रमसाधक हूँ!
जेठ तपे, सावन बरसे
या पूस - माघ हिमवात चले,
हर ऋतु,हर मौसम में
ये दो पाँव मेरे दो हाथ चले,
मैं क्या जानूँ रुख बाज़ारु
हानि - लाभ की दशा दिशा,
मैं श्रम - सेवा,त्याग प्रेम और
समता का प्रतिपादक हूँ!
हाँ,मैं ही इस जग - जीवन का
वर्तमान,आगत,गत हूँ
पर अपने कृतित्व के मूल्यांकन
से विरत कर्मरत हूँ
प्रभुता के पवर्त - शिखरों पर
चढ़ना मेरा ध्येय नहीं
मैं जन - जन की भूख - प्यास,
दुख.पीड़ा का संहारक हूँ!
पलटे कई सिंहासन, कितने
मुकुट गिरे मैंने देखा,
गुजरे कितने दुर्दिन कितने
सुदिन फिरे मैंने देखा
पदमर्दित हो गयीं ध्वजायें
और कई यशगगन चढ़ी
मैं भू सुत हर बार हर कही
नव सिरजन अवधारक हूँ।
धरती का आराधक हूँ,
श्रमजीवी श्रमसाधक हूँ!
जेठ तपे, सावन बरसे
या पूस - माघ हिमवात चले,
हर ऋतु,हर मौसम में
ये दो पाँव मेरे दो हाथ चले,
मैं क्या जानूँ रुख बाज़ारु
हानि - लाभ की दशा दिशा,
मैं श्रम - सेवा,त्याग प्रेम और
समता का प्रतिपादक हूँ!
हाँ,मैं ही इस जग - जीवन का
वर्तमान,आगत,गत हूँ
पर अपने कृतित्व के मूल्यांकन
से विरत कर्मरत हूँ
प्रभुता के पवर्त - शिखरों पर
चढ़ना मेरा ध्येय नहीं
मैं जन - जन की भूख - प्यास,
दुख.पीड़ा का संहारक हूँ!
पलटे कई सिंहासन, कितने
मुकुट गिरे मैंने देखा,
गुजरे कितने दुर्दिन कितने
सुदिन फिरे मैंने देखा
पदमर्दित हो गयीं ध्वजायें
और कई यशगगन चढ़ी
मैं भू सुत हर बार हर कही
नव सिरजन अवधारक हूँ।
नदी पसीनें की बहती है
धूप लकलका जब तपती है,
मेहनतकश की देह - धरा पर
नदी पसीने की बहती है,
मेहनतकश की देह - धरा पर
नदी पसीने की बहती है,
इस श्रम नद नेही मुहावरा गढ़ा
भगीरथ प्रयत्नों का है,
इसके बलबूते ही सच साकार
हुआ सुख स्वप्नों का है,
भगीरथ प्रयत्नों का है,
इसके बलबूते ही सच साकार
हुआ सुख स्वप्नों का है,
यह श्रम.सलिला ही
बंजर को उर्वर करती है,
इस बेरंग स्वेदजल ने ही
बहुरंगी संसार रचा है,
बंजर को उर्वर करती है,
इस बेरंग स्वेदजल ने ही
बहुरंगी संसार रचा है,
इसके श्वांस के बल पर
जीवन पर विश्वास बचा है,
हर उन्नतित प्रगति की इससे
राह निकलती है
जीवन पर विश्वास बचा है,
हर उन्नतित प्रगति की इससे
राह निकलती है
इसी स्वेद -शिव ने ही दुख,
दुर्दिन के दुगर्म शिखर ढहाये,
इसने कई सफलताओं के
धरती पर आकाश झुकाये,
बदले ताज -तख्त कितने,
यह अविरल बहती है।
दुर्दिन के दुगर्म शिखर ढहाये,
इसने कई सफलताओं के
धरती पर आकाश झुकाये,
बदले ताज -तख्त कितने,
यह अविरल बहती है।
रचनाकार परिचय
जन्म : 02,03,1955, ग्राम भुड़सा,कटनी (म.प्र.)
शिक्षाः एम. ए. बी.टी.सी.(हिन्दी अध्यापन) दो उपन्यास,
चार कहानी संग्रह, दो व्यंग्य संग्रह,दो कविता संग्रह पत्रिकाओं
में रचनाएं प्रकाशित। (महरुम तख्¸ाल्लुस से गजलें कही) आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारण भी।
शिक्षाः एम. ए. बी.टी.सी.(हिन्दी अध्यापन) दो उपन्यास,
चार कहानी संग्रह, दो व्यंग्य संग्रह,दो कविता संग्रह पत्रिकाओं
में रचनाएं प्रकाशित। (महरुम तख्¸ाल्लुस से गजलें कही) आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारण भी।
1315,साईंपुरम कॉलोनी, रोशन नगर,
कटनी 483501 (म.प्र.)
कटनी 483501 (म.प्र.)
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