पूनम झा
साथ न लाए मेरे प्रीतम को, बसंत तुम तो आए
कोयल कूक रही बागों में, प्रीतम की याद सताये
सरसों के पीले फूल खिले, बहारों के रुत भी आये
प्रकृति की सुंदरता में बसंत, तुम चार चांद लगाये
अबकी जो आते प्रीतम, हाथों में मेहंदी रचाती
फूलों और कलियों से, घर आंगन खूब सजाती
चांद से थोड़ी चांदनी लेकर, मैं मन हीं मन इतराती
मन का कोना कोना खिलता, ख्वाहिश शोर मचाती
उनकी याद दिलाने आया,मुझे सताने आया
दिल के कोने - कोने में, यादों का टीस जगाया
उनसे कुछ जो मैं कहूं, होगी प्रीत की रुसवाई
मुरझाए मेरे अधरों पे, यादों का फूल खिलाया ...!!
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