दीपा कांडपाल
जब खुद को तलाशा स्वयं में तो,
जीवन की पहचान बनी,
मेरी अपनी ही परछाई मेरे,
जीवन का निशान बनी।
जब तक खुद से बेगानी थी,
लगा दुनिया एक पहेली है,
पर जब खुद से पहचान हुई,
लगा ये मेरी सहेली है।
जब अपनी पहचान हुई तो,
सबको मैंने पहचाना,
सबका है अंदाज अलग ही,
दुनिया में मैंने जाना।
जब खुद को पिरोया तो,
जीने का सामान मिला,
तब औरों को पिरोने पर,
हर वक्त नया इंसान मिला।
काशीपुर (उत्तराखंड)
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