बलदाऊ साहू
जेकर हाथ मा हावै सियानी।
करथे जी उन गजब मनमानी।
करथे जी उन गजब मनमानी।
जम्मों झन अपन भरत हे कोठी
हरिश्चन्द्र कस कौन हावै दानी।
हरिश्चन्द्र कस कौन हावै दानी।
पोथी - पतरा ला पढ़ के उन मन
बन के बइठे हे अड़बड़ ज्ञानी।
बन के बइठे हे अड़बड़ ज्ञानी।
कतको नकटा मन नाक कँटावै
उनला कब्भू नइ लागे बानी।
उनला कब्भू नइ लागे बानी।
जब किसान मन के होही सोसन
काबर करही जी खेती किसानी।
काबर करही जी खेती किसानी।
जब भेद ह खुल जाही तब संगी
इज्ज्ज़त हो जाही चानी - चानी।
इज्ज्ज़त हो जाही चानी - चानी।
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