नज़्म सुभाष
छुअन प्रेममय देह की,झंकृत दिल के तार
निखरी सुर्खी गाल पर, नैंनो से उद्गार
चुनर लाज की कर रही, असमंजस के प्रश्न
रहे काँपते लब सिले, मौन हृदय में जश्न
खिली देह से झर रही,मादक मादक गंध
उखड़ी साँसे तोड़ती,संयम के अनुबंध
हृदय विरह की अगन में,धधके सुबहोशाम
संचित यादें इनदिनों, छेड़ रहीं संग्राम
पियरी - पियरी ये धरा,नीला है आकाश
कोयल कुहुकी बाग में,स्वागत है मधुमास
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