सीमा सिंह
जो किया मैंने मुझे,इकरार भारी पड़ गया,
हर तरफ़ से यह मुझे, किरदार भारी पड़ गया।।
चौंकिऐ मत, बात पहले, पूरी होने दीजिऐ,
कुल - जमा,यह आप का, व्यवहार भारी पड़ गया।
अपने दिल की,बात कह कर मैं अकेली पड़ गई,
आइने के साथ करना, प्यार भारी पड़ गया।
इल्म का ये रास्ता, ले जा रहा है किस तरफ़
सच कहूॅं तो, यह मुझे संसार भारी पड़ गया।
हो गई जेबें भरी, खाली इसी के साथ ही,
सबके चेहरों पर दिखा, बीमार भारी पड़ गया।
घर में बैठे हैं बहुत महफ़ूज! फिर भी डर रहे,
बेयकीनी से भरा, अखबार भारी पड़ गया।
इस अंक के रचनाकार
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
जो किया मैंने मुझे
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