पुष्पा कुमारी’ पुष्प’
- निधि! आओ खाना खा लेते हैं।
- हां! बस आ रही हूं। उस पेपर के अगले प्रश्नों को हल करते हुए वह निखिल की ओर देखे बिना ही बोल गई।
- चलो! बाकी खाने के बाद कर लेना। माथे पर निखिल के हाथों का स्पर्श पा निधि का ध्यान भंग हुआ।
- हम्म। उस पन्ने पर बुकमार्क लगा वह उठ खड़ी हुई।
- आज तुम्हारे पसंद की करारी भिंडी! हाथ धो डायनिंग टेबल पर आ चुकी निधि के प्लेट में पराठे संग सब्जी परोसे हुए निखिल मुस्कुराया।
- वाउ! निधि की भूख अचानक बढ़ गई। अपनी मनपसंद भिंडी संग पराठे का पहला निवाला मुंह में डालते ही उसकी निगाहें निखिल के निगाहों से टकराई।
- कैसी बनी है? मानो उसके पाक कला का सारा दारोमदार निधि की प्रतिक्रिया पर ही अटकी हो।
- बिल्कुल तुम्हारी तरह! रूह में उतर कर आत्मा को तृप्त करने लायक। क्या बात है मोहतरमा! आप तो शायराना हो गई।
- नहीं! सच बोल गई। मैं तुम्हारा यह एहसान कैसे उतार पाऊंगी निखिल।
- अपनी इच्छा से अपनी जिंदगी को जी कर! यानी अपनी आखरी अटेम्प्ट तक इस परीक्षा की तैयारी कर। अपने हाथों से बनी करारी भिंडी का स्वाद लेते हुए उसने निधि का हौसला अफजाई किया।
असल में पिछले वर्ष प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में अपने पहले अटेम्प्ट की असफलता के बाद प्राइवेट नौकरी करने वाली निधि के लिए उसकी तरह ही एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने वाले निखिल का रिश्ता आया था और माता - पिता की मर्जी से विवाह कर वह दोनों एक दूसरे के हमराही बन गए थे।
- अगर मैं फिर भी सफल ना हो पाई तो? निधि तनिक भावुक हो गई।
- यहां सफलता की शर्त कहां से आ गई? मैं तो बस इतना चाहता हूं कि मेरी तरह तुम भी अपनी जिंदगी में जी लगाकर बस वही करो जो तुम हमेशा से करना चाहती थी।
- वैसे जनाब! आप क्या करना चाहते थे अपनी जिंदगी में ?
अपने तनिक गीले हुए पलकों को झपका कर निधि मुस्कुराई।
- वही जो मैं कर रहा हूं!
- क्या ?
- खुद को अपने जीवनसाथी के लिए उसका पति से कहीं ज्यादा एक साथी महसूस करवाने की कोशिश।
निखिल उसकी आंखों में आंखें डाल मुस्कुराया और निधि अपनी किस्मत पर निहाल हो गई।
पुणे (महाराष्ट्र)
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