इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

तुम किसी सरगम सी लगती हो

शेखर

शरद पूनम की रात में शबनम सी लगती हो।

इस दिल के इलाहबाद में संगम सी लगती हो।।

कैसे न उठें दुआ में हाथ हर वक्त तुम्हारे लिये.

दिल को ताजिये वाली मोहर्रम सी लगती हो।

तुम्हें जीता तो लगा जीत लिए दोनो जहां हमने,

इस दिल के गुम्बद पे तुम परचम सी लगती हो।

तुम्हारे नाम पर छोड़ दी हैं हमने कई खराबियाँ,

इस दिल से निकली हसीं कसम सी लगती हो।

होकर सराबोर तुम्हीं में,नाचते हैं तेरे संग - संग,

इस दिल के सावन में झमाझम सी लगती हो।

तुम्हारी रोशनी के तलबगार हैं तुम्हें क्या बतायें,

इस दिल को तुम नायाब नीलम सी लगती हो।

ओढ़ता तुम्हें,भीगता तुझमें,हो तुम धूप और छाया,

इस दिल की फ़िज़ाओं में मौसम सी लगती हो।

बस इसलिए नहीं खेलते जिन्दगी का जुआ हम,

इस दिल में बसी चार रंगो की बेगम सी लगती हो।

अकेले में बड़ी शिद्दत से सुनते हैं तुम्हारी हर बात,

इस ’ शेखर’ को तुम किसी सरगम सी लगती हो।

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