शेखर
शरद पूनम की रात में शबनम सी लगती हो।
इस दिल के इलाहबाद में संगम सी लगती हो।।
कैसे न उठें दुआ में हाथ हर वक्त तुम्हारे लिये.
दिल को ताजिये वाली मोहर्रम सी लगती हो।
तुम्हें जीता तो लगा जीत लिए दोनो जहां हमने,
इस दिल के गुम्बद पे तुम परचम सी लगती हो।
तुम्हारे नाम पर छोड़ दी हैं हमने कई खराबियाँ,
इस दिल से निकली हसीं कसम सी लगती हो।
होकर सराबोर तुम्हीं में,नाचते हैं तेरे संग - संग,
इस दिल के सावन में झमाझम सी लगती हो।
तुम्हारी रोशनी के तलबगार हैं तुम्हें क्या बतायें,
इस दिल को तुम नायाब नीलम सी लगती हो।
ओढ़ता तुम्हें,भीगता तुझमें,हो तुम धूप और छाया,
इस दिल की फ़िज़ाओं में मौसम सी लगती हो।
बस इसलिए नहीं खेलते जिन्दगी का जुआ हम,
इस दिल में बसी चार रंगो की बेगम सी लगती हो।
अकेले में बड़ी शिद्दत से सुनते हैं तुम्हारी हर बात,
इस ’ शेखर’ को तुम किसी सरगम सी लगती हो।
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