By : Deepika Gahlot (मुस्कान)
पापा
की पोस्टिंग रेलवे की नौकरी की वजह से बदलती रहती थी और हमारी स्कूल भी।
जब तक हम दोनों भाई बहन छोटे थे तब तक कोई समस्या नहीं थी पर जैसे-जैसे हम
बड़े होने लगे हमे स्कूल बदलने में परेशानी होने लगी। हर बार नयी जगह नया
सिलेबस , नए अध्यापक , नए दोस्त। ये सब हमे चिढ़-चिढ़ा करने लगा .मेरा तो
स्कूल में रिजल्ट भी गिरने लगा। मम्मी और पापा इस से चिंता में आ गए। स्कूल
में पेरेंट्स मीटिंग के दौरान अध्यपक ने भी उनको स्कूल बार-बार चेंज नहीं
करने की सलाह दी। आखिरकार ये तय हुआ की हम दिल्ली में ही रह कर अपनी पढ़ाई
पूरी करेंगे और पापा अकेले ही अपनी पोस्टिंग के अनुसार अलग रहेंगे। पापा
अपनी छुट्टियों के हिसाब से हमसे मिलाने आया जाया करते थे। बढ़ती उम्र ने
हमे आत्मनिर्भर बना दिया था और उसका मतलब हमारे लिए था "अपने फैसले खुद
लेना और अपने हिसाब से ज़िंदगी जीना"। मम्मी भी ज्यादा रोक-टोक नहीं करती
थी। पापा जब भी आते वो हमारी बेढंगी दिनचर्या नोटिस करते थे, पर कुछ बोलने
पर मम्मी उन्हें ये कह कर चुप करा देती थी की "बच्चे अब समझदार हो गए है नए
ज़माने के है ज्यादा रोक-टोक अच्छी नहीं"।
उन्हें हमारी दिनचर्या बिलकुल पसंद नहीं आती थी वो पुराने ख्याल के जो थे
और हमें उनका टोकना पसंद नहीं आता था। हम दोनों ही पक्ष "जनरेशन गैप"
को कोस कर अपने-अपने विचार लिए आगे बढ़ जाते. शायद हमे धीरे-धीरे उनके बिना
रहने की आदत होती जा रही थी। फिर वो वक़्त आया जब पापा की आखिरी पोस्टिंग
दिल्ली में ही हो गयी। अब तो बस रोज़ की टोका-टाकी तय थी। छोटी मोटी चिक-चिक
तो रोज़ की दिनचर्या हो गयी थी। एक दिन इसी बात को लेकर मैं और मेरी बहन
बात कर रहे थे " रोज़ की टोका-टोकी मुझे पसंद नहीं आती , आखिर हम भी बड़े हो
गए है हमे भी सब समझता है। इस से तो पापा बाहर ही अच्छे थे कम से कम शान्ति
तो थी " तभी मेरी बहन का रंग उड़ा चेहरा देख कर मैं पीछे पलटा और देखा पापा
और मम्मी ठीक मेरे पीछे खड़े थे। मेरा चेहरा शर्म से पीला पड़ गया। पापा
बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए। मैं भी सर झुकाये अपने कमरे में चला
गया। अब रोज़ पापा बिना कुछ कहे सीधे ऑफिस चले जाते और आने के बाद भी बात
नहीं करते। उनकी खामोशी मुझे अच्छी नहीं लग रही थी, पर अब शान्ति देख मैं
कही न कहीं चैन की सांस भी ले रहा था।
एक
दिन अचानक मैं जब घर लौटा तो सभी टीवी चैनल पर न्यूज़ देख रहे थे, जिस पर
कोरोना की वजह से बंद की खबर दिखाई जा रही थी। अब सबको बंद की वजह से घर
में ही रहना पड़ रहा था मुझे तो ये काला-पानी की सजा लग रही थी। रोज़ की
खबरों ने दिमाग ख़राब कर रखा था और धीरे-धीरे ये डर में तब्दील होने लगा, जब
अचानक मुझे एक दिन लगा की मुझे गले में खराश महसूस हो रही है और हल्का
बुखार भी। मैं अंदर ही अंदर बहुत डर गया और मुझे रोना आ गया। मेरे रोने की
आवाज़ सुनकर पापा जो की रात को पानी पिने रसोई में आये थे मेरे कमरे में आ
गए। मुझे घबराया हुआ देख उन्होंने पूछा "क्या हुआ बेटा" उन शब्दों ने जैसे
मेरे अंदर एक सुकून की लहर दौड़ा दी। पापा ने जब हाथ सर जब पर रखा तो मानो
मुझे लगा की है मैं अब ठीक हूँ और कोई है जो मुझे संभाल लेगा। पापा ने
टेम्प्रेचर चेक किया मुझे कोई बुखार नहीं था, रोज़ की खबर सुन-सुन कर मेरे
दिमाग में वहम ने घर कर लिया था। पापा ने मुझे गरम दूध में हल्दी मिला कर
पिलाया और सुला दिया। सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा पापा वहीँ
कुर्सी पर ही सो गए। मुझे ये देख कर खुद पर बहुत शर्म आ रही थी।
मुझे
समझ आ गया अपनों का साथ और बड़ो का हाथ हमारे सर पर कितना जरुरी होता है।
उनकी हमारी बिगड़ी हुई दिनचर्या पर टोका-टाकी हमारे भले के लिए थी। जो
दिनचर्या हम लॉकडाउन में मज़बूरी में निभा रहे थे वही तो पापा हमे हमेशा से
समझाते थे , टाइम पे उठना , टाइम पे सोना , घर का खाना , जल्दी उठकर
व्यायाम करना कुल मिला कर अपने पुराने तौर तरीको से स्वस्थ्पूर्ण जीवन जीना
, जो हमे बंदिश लगता था। पर अब इस बंद के दौर ने संयुक्त परिवार और हमारे
देश की महत्वता हमे अच्छी तरह समझा दी थी। अब हम सब वो चीज़ें करने लगे थे
जो हमारी ही देश की धरोहर है, और हमे स्वस्थ और खुशाल जीवन जीना सिखाती है।
शिक्षा ;
आज
हम मॉडर्न बनाने के चक्कर में अपनों से दूर हो रहे है , गलत दिनचर्या अपना
रहे हैं ऊपर से खुश रहने के लिए अंदर से खोकले होते जा रहे है। ये हम सब
के लिए आँखे खोलने का वक़्त है हमे अपनी संस्कृति चाहे वो संयुक्त परिवार
में रहना हो या हमारी देसी दिनचर्या इन सब को अपनाना चाहिए। ये मूल-मन्त्र
ही हमें हर समस्या से निकालने में मदद कर सकता है। . . . ©June ’’2020(all rights reserved)
परिचय :
मैं सीनियर एच.आर. प्रोफेशनल हूं, जिसे विभिन्न एच.आर. अवार्ड और सर्टिफिकेट के साथ मान्यता प्राप्त है।
- मुझे एच. आर. प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित किया गया है
मुझे अपने स्कूल के दिनों से ही लेखन (लेख, कविता, ब्लॉग और कहानी) का शौक है।
कई राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रिये जानी मानी संस्थाओ दवारा मेरी कविताएँ, कहानियाँ , आर्टिकल्स , ब्लॉग्स इत्यादि प्रकाशित |कविताओं और कहानी प्रतियोगिताओ में सम्मानित , प्रगतिशील कवियत्री उपाधि द्वारा सम्मानित इत्यादि उपलब्धियाँ |
• कहानियाँ दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुई हैं
• मेरी कविता को नेशनल एक्सप्रेस, लोकमत, ई- अभिव्यक्ति द्वारा प्रकाशित किया गया है
• कविता पाठ , YouTube वीडियो शो द्वारा लॉन्च किया गया
• कविता को पुणे के सर्वश्रेष्ठ कवियों की सूची में चुना गया और पुस्तक "सह्याद्रि इकोस" में प्रकाशित की गई
• साप्ताहिक कॉलम के लिए ई- अभिव्यक्ति द्वारा निमंत्रण
- मेरी कहानियों का चयन अमेरिका द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता-मई'2020 में हुआ हैं
मेल - deepika.gehlot@gmail.com
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