डॉ. गणेश खरे
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| वीरेन्द्र बहादुर सिंह |
दैनिक
' सबेरा संकेत ' राजनांदगांव के वरिष्ठ उप संपादक, पत्रकार, लोककर्मी एवं
साहित्यकार श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह द्वारा रचित 'छुईखदान: परत दर परत '
नामक ग्रंथ छुईखदान के इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज़ है। इसमें उन्होंने
छत्तीसगढ़ की रियासतों के संक्षिप्त विवरण के साथ छुईखदान की विशिष्टता का
परिचय प्रस्तुत करने के साथ-साथ वहां के सेनानियों के द्वारा स्वतंत्रता
आन्दोलन, किसान आन्दोलन और गोली कांड का विस्तार से वर्णन किया है। इस
संदर्भ में इतिहास की हर सूक्ष्मता, तटस्थता तथा प्रामाणिकता का पूरा ध्यान
रखा गया है। इतना ही नहीं उन्होंने यहां के बहुमुखी विकास के प्रमुख
आयामों में साहित्यिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पत्रकारिता, उद्योग, व्यापार,
क्रीड़ा, विद्युत व्यवस्था आदि के विकास की विभिन्न परतों पर भी प्रकाश
डाला है। इसके परिशिष्ट में आपने स्थानीय 60 स्वतंत्रता सेनानियों के
नामों के साथ नगर पालिका परिषद, नगर पंचायत और छुईखदान बुनकर सहकारी समिति
के पदाधिकारियों के आज तक के नाम आदि भी देकर इसे स्थानीय इतिहास का
विश्वसनीय कोश बना दिया है। अब ऐसा कोई पक्ष नहीं छूटा है जो छुईखदान से
संबंधित हो और उसकी चर्चा इस ग्रंथ में न की गई हो।
छुईखदान
एक छोटी सी रियासत रही है पर छत्तीसगढ़ की समग्र 14 रियासतों मेें इसका
विशिष्ट स्थान रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी यहां के वीर सेनानियों ने
अपने स्वाभिमान और आजादी प्राप्ति की संकल्पशीलता का परिचय दिया है।
स्वतंत्रता के पश्चात् भी अपने स्थान की तहसीली और कोषालय की सुरक्षा के
लिए यहां की महिलाओं और पुरुषों ने अपने अधिकारों तथा स्वत्व की रक्षा के
लिए संघर्ष किया है इससे इस अंचल का शीश सदा गर्व से उन्नत रहेगा पर
प्रजातंत्र-युग में भी यहां के निर्दोष जन समूह पर गोली चालन का आदेश देकर
तत्कालीन प्रशासन ने अपनी निर्लज्जता और क्रूरता का जो परिचय दिया वह
भारतीय इतिहास का कलंक कहा गया है। श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने उस
स्थानीय गोली कांड के हर पक्ष का भी इस ग्रंथ में प्रामाणिक नामों और
तिथियों सहित विवरण प्रस्तुत किया है। अभी तक इस संदर्भ में लोगों को इस
कांड की औपचारिक जानकारी प्राप्त थी पर अब इस ग्रंथ के माध्यम से यह गोली
कांड भी कालजयी बन जायेगा जिससे भविष्य में भी यह स्थान स्वतंत्रता
सेनानियों की खदान के नाम से जाना जाता रहेगा।
इस
रचना के 95 वर्ष पूर्व अर्थात् 1925 में छुईखदान के बाबू धानूलाल
श्रीवास्तव ने अपने ग्रंथ 'अष्ट-राज्य-अंभोज ' में छत्तीसगढ़ की रियासतों पर
प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की थी पर विकास के इन लगभग सौ वर्षो में हर
जगह के सभी क्षेत्रों में बहुत अधिक परिवर्तन हुए हैं जिनकी जानकारी
इस्तत: बिखरी पड़ी है। छुईखदान रियासत की समृद्धि और सम्पदा की जानकारी भी
लोगों को आधी अधूरी ही ज्ञात है। श्री वीरेन्द्र बहादुर ने अपने 256
पृष्ठों के इस ग्रंथ में यहां के इतिहास को निम्न चार कालों में विभक्त कर
सारी बिखरी हुई सामग्री को एक स्थान पर प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय कार्य
किया है। प्रथम काल है । छुईखदान का रियासत कालीन इतिहास 1750 से 1947 तक,
द्वितीय स्वतंत्रता आन्दोलन 1920 से 1947 तक, तृतीय 9 जनवरी 1953 का
दुर्भाग्यपूर्ण गोली कांड और चौथी परत है स्वतंत्रता के इन 70 वषों में
छुुईखदान का बहुमुखी विकास। इस प्रकार इस ग्रंथ में लगभग 300 वर्षों की
विभिन्न गतिविधियों की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है। इस ग्रंथ से प्रेरणा
लेकर इस जिले के अन्य स्थानों के विकास की भी प्रामाणिक जानकारियां
प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस संदर्भ में अभी तक श्री रामहृदय तिवारी द्वारा
संपादित 'अतीत और आज के आइने में अरजुंदा ' नामक पुस्तक देखने मिली है जिसके
परिशिष्ट में एक सौ के लगभग वहां के विकास से संबंधित रगीन चित्रों का भी
समावेश किया गया है ।
इस
ग्रंथ के पहले भी श्री वीरेन्द्र बहादुर ने 'रक्त पुष्प' ,' दूर क्षितिज
में ' ,' महुआ झरे ' और 'पृष्ठों का नीड़ ' जैसी पुस्तकों का संपादन कार्य भी
किया है। इनके प्रकाशन और संपादन में उन्होंने जिस लगन, मेहनत और
साहित्येतिहास के प्रति अपनी मूल्यवान निष्ठा व्यक्त की है, वह प्रशंसनीय
है। हम इनकी इस 'छुईखदान: परत दर परत ' पुस्तक का स्वागत करते हैं और
उन्हें इसके लिए अपनी शुभ कामनायें देते हैं।
98 सृष्टि कालोनी, राजनांदगांव,

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