पुष्पा पाण्डेय
मम्मी! जो साक्षात्कार मैंने दिया था, उसमें मेरा चुनाव हो गया। कुछ दिन बाद नियुक्ति पत्र आयेगा।
- अरे वाह, बी.ए. पास करते ही नौकरी लग गयी। चलो अच्छा हुआ।
- अरे बहू! इतनी खुश मत हो। शादी के बाद तो नौकरी छोड़नी ही पड़ेगी।
- क्यों दादी ? ऐसा क्यों बोल रही हो ? मैं तो नहीं छोडूँगी।
- चल हट। और दादी नाराजगी दिखाती हुई चली गई।
- माँ, तुम क्यों नहीं नौकरी की इतनी पढ़ी - लिखी थी।
नीलू ने अपनी माँ से पूछा।
- छोड़ो मेरी बात।
माँ की आवाज में छुपा हुआ दर्द महसूस हुआ।
- माँ बताओ न।
- तुम्हारे पापा को पसन्द नहीं था। घर कौन सम्भालता। तुम लोग की भी देख - भाल करनी थी।
- पापा को क्यों पसन्द नहीं था। घर में दादी और बुआ तो थी ही। फिर चाची कैसे नौकरी करती है?
- दादी से मैंने कहा ही नहीं, क्योंकि पापा का कहना था कि घर से बाहर जाकर काम करने की जरूरत क्या है ? तुम्हें किस चीज की कमी है, फिर तुम बाहर जाओगी तो घर उपेक्षित हो जायेगा।
- और तुम चुप - चाप उनकी बात मान गयी। तुम्हारी इच्छा नहीं थी?
- मेरी तो बहुत इच्छा थी,लेकिन क्या करती?
चाची के बच्चों को तो मैं ने सम्भाल लिया। इसलिए वो नौकरी कर पायी।
- तुम परिवार का ख्याल रखती थी तो तुम्हारा भी तो ख्याल उन लोगों को रखना चाहिए था। तुम्हारी इच्छाओं की कोई कीमत नहीं?
- जाने दो नीलू, अतीत को क्यों कुरेद रही हो।
- नहीं ये तो तुम्हारे साथ गलत हुआ। आज मैं पापा से पूछूँगी।
- नहीं बेटा, ऐसा नहीं सोचते। पापा के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी थी।
- तो क्या परिवार को तुम्हारे प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं?
- ताली दोनों हाथों से बजती है। एक हाथ से नहीं। तुमने अपने साथ अन्याय किया है। शिक्षा का उपयोग सिर्फ हम लोगों तक ही सीमित रखी। संयुक्त परिवार में रहने से क्या फायदा हुआ?
- तुम ऐसा क्यों सोचती हो नीलू, परिवार कोई व्यापार नहीं है,जो फायदा नुकसान देखा जाय। कम से कम मेरी वजह से चाची की इच्छा तो पूरी हुईं। मेरे लिये यही बहुत है।
- बनती रहो महान।
और अपने कमरे में चली गई।
फैसला
- मम्मी! स्टोर - रूम क्यों ठीक कर रही हो?
- इसे दादी का कमरा बनाना है।
- क्यों?
- मामा दो साल के लिये यहीं पढ़ने आ रहा है।
- तो मामा को ही दे दो न ये कमरा।
- इतना छोटा कमरा में मामा कैसे रहेगा?
- और दादी कैसे रहेगी?
- जाओ यहाँ से मेरे काम में बाधा मत डालो। जाकर खेलो।
- अरे मम्मी, देखो छत का छज्जा टूट रहे हैं। दादी पर गिर जायेगा तो ?
- बाद में बनवा देंगे इसे।
दादा जी को मरते ही दादी को अपना शयनकक्ष बदलना पड़ रहा है। दादी का सामान भी इस कमरे में आ गया।
- दादी आपका नया कमरा। ऑल दी बेस्ट।
दादी कुछ बोल नहीं सकी। आँखों में आँसू लिये बैठी रही।
- दादी! मैं आज आपके साथ यहीं नया कमरा में सोऊँगा।
- नहीं बेटा तुम अपने कमरे में सोना।
- ठीक है, कहानी सुनकर चला जाऊँगा।
- ठीक है। आ जा।
कहानी सुनते - सुनते पारस वहीं सो गया। दादी उसके चेहरे को घण्टों निहारती रही। आज दादी की आँखों से नींद गायब थी। दादी ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया, जिससे वह जब चाहे पारस से मिल भी सकती है और अपने बेटे से जरूरत पड़ने पर मदद भी ले सकती है। घर के नजदीक ही एक बड़ा राधा - कृष्ण का मंदिर था। अचल सम्पत्ति छोड़ कर अपना आधा पैसा मंदिर के ट्रस्ट को दान कर दिया और आधे पैसे से अपने रहने का इंतजाम किया। पुजारियों के लिये बने कमरों में से एक कमरा अपने लिये सुरक्षित करवाया। बाकी जिन्दगी भगवान के चरणों में बिताने का फैसला किया।
- अरे वाह, बी.ए. पास करते ही नौकरी लग गयी। चलो अच्छा हुआ।
- अरे बहू! इतनी खुश मत हो। शादी के बाद तो नौकरी छोड़नी ही पड़ेगी।
- क्यों दादी ? ऐसा क्यों बोल रही हो ? मैं तो नहीं छोडूँगी।
- चल हट। और दादी नाराजगी दिखाती हुई चली गई।
- माँ, तुम क्यों नहीं नौकरी की इतनी पढ़ी - लिखी थी।
नीलू ने अपनी माँ से पूछा।
- छोड़ो मेरी बात।
माँ की आवाज में छुपा हुआ दर्द महसूस हुआ।
- माँ बताओ न।
- तुम्हारे पापा को पसन्द नहीं था। घर कौन सम्भालता। तुम लोग की भी देख - भाल करनी थी।
- पापा को क्यों पसन्द नहीं था। घर में दादी और बुआ तो थी ही। फिर चाची कैसे नौकरी करती है?
- दादी से मैंने कहा ही नहीं, क्योंकि पापा का कहना था कि घर से बाहर जाकर काम करने की जरूरत क्या है ? तुम्हें किस चीज की कमी है, फिर तुम बाहर जाओगी तो घर उपेक्षित हो जायेगा।
- और तुम चुप - चाप उनकी बात मान गयी। तुम्हारी इच्छा नहीं थी?
- मेरी तो बहुत इच्छा थी,लेकिन क्या करती?
चाची के बच्चों को तो मैं ने सम्भाल लिया। इसलिए वो नौकरी कर पायी।
- तुम परिवार का ख्याल रखती थी तो तुम्हारा भी तो ख्याल उन लोगों को रखना चाहिए था। तुम्हारी इच्छाओं की कोई कीमत नहीं?
- जाने दो नीलू, अतीत को क्यों कुरेद रही हो।
- नहीं ये तो तुम्हारे साथ गलत हुआ। आज मैं पापा से पूछूँगी।
- नहीं बेटा, ऐसा नहीं सोचते। पापा के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी थी।
- तो क्या परिवार को तुम्हारे प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं?
- ताली दोनों हाथों से बजती है। एक हाथ से नहीं। तुमने अपने साथ अन्याय किया है। शिक्षा का उपयोग सिर्फ हम लोगों तक ही सीमित रखी। संयुक्त परिवार में रहने से क्या फायदा हुआ?
- तुम ऐसा क्यों सोचती हो नीलू, परिवार कोई व्यापार नहीं है,जो फायदा नुकसान देखा जाय। कम से कम मेरी वजह से चाची की इच्छा तो पूरी हुईं। मेरे लिये यही बहुत है।
- बनती रहो महान।
और अपने कमरे में चली गई।
फैसला
- मम्मी! स्टोर - रूम क्यों ठीक कर रही हो?
- इसे दादी का कमरा बनाना है।
- क्यों?
- मामा दो साल के लिये यहीं पढ़ने आ रहा है।
- तो मामा को ही दे दो न ये कमरा।
- इतना छोटा कमरा में मामा कैसे रहेगा?
- और दादी कैसे रहेगी?
- जाओ यहाँ से मेरे काम में बाधा मत डालो। जाकर खेलो।
- अरे मम्मी, देखो छत का छज्जा टूट रहे हैं। दादी पर गिर जायेगा तो ?
- बाद में बनवा देंगे इसे।
दादा जी को मरते ही दादी को अपना शयनकक्ष बदलना पड़ रहा है। दादी का सामान भी इस कमरे में आ गया।
- दादी आपका नया कमरा। ऑल दी बेस्ट।
दादी कुछ बोल नहीं सकी। आँखों में आँसू लिये बैठी रही।
- दादी! मैं आज आपके साथ यहीं नया कमरा में सोऊँगा।
- नहीं बेटा तुम अपने कमरे में सोना।
- ठीक है, कहानी सुनकर चला जाऊँगा।
- ठीक है। आ जा।
कहानी सुनते - सुनते पारस वहीं सो गया। दादी उसके चेहरे को घण्टों निहारती रही। आज दादी की आँखों से नींद गायब थी। दादी ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया, जिससे वह जब चाहे पारस से मिल भी सकती है और अपने बेटे से जरूरत पड़ने पर मदद भी ले सकती है। घर के नजदीक ही एक बड़ा राधा - कृष्ण का मंदिर था। अचल सम्पत्ति छोड़ कर अपना आधा पैसा मंदिर के ट्रस्ट को दान कर दिया और आधे पैसे से अपने रहने का इंतजाम किया। पुजारियों के लिये बने कमरों में से एक कमरा अपने लिये सुरक्षित करवाया। बाकी जिन्दगी भगवान के चरणों में बिताने का फैसला किया।
राँची, झारखंड
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