(1)
तल्ख़ रिश्ता
सुधार लेते काश ,
बोझ दिल का उतार
लेते काश |
तुमसे जब रूठकर
चला था मैं ,
उस घड़ी तुम
पुकार लेते काश |
ताप मन का उतर
गया होता ,
इक नज़र तुम
निहार लेते काश |
जो अँधेरा दिलों
पे काबिज है ,
उस अँधेरे को मार
लेते काश |
रफ्ता-रफ्ता गुजर
गई आखिर ,
जिंदगी को संवार
लेते काश |
ख़्वाब की इक
हसीन दुनिया को ,
इस जमीं पर उतार
लेते काश |
व्यस्त दुनिया
सुधारने में हैं ,
'शम्स' खुद को
सुधार लेते काश |
(2)
दिल वहीं छोड़कर चले आये ,
रूठकर हाँ मगर
चले आये |
हमको बाज़ार मुहँ
चिढ़ाता था ,
जेब खाली थी, घर
चले आये |
लोग झण्डों के
साथ आये हैं ,
और हम ले के सर
चले आये |
ख़्वाब आँखों में
आये मुट्ठी भर ,
साथ में कितने डर
चले आये |
अपनी मंज़िल तो
ये नहीं लगती ,
हम ये आखिर किधर
चले आये |
हम बुलाते रहे
उन्हें लेकिन ,
कुछ अगर कुछ मगर
चले आये |
ज़िन्दगी की कठिन
परीक्षा में ,
शम्स पा के सिफ़र
चले आये |
(3)
न्याय की अवमानना पर गौर हो ,
अब हमारी
प्रार्थना पर गौर हो .
खिड़कियाँ अब सोच
कीमत बंद हों ,
हर नई संभावना पर
गौर हो .
आजतक 'जन' को
उपेक्षित ही किया ,
तंत्र की दुर्भावना
पर गौर हो .
दीनता बागी न हो
जाए कहीं ,
वक़्त है हर याचना
पर गौर हो .
गीत जीवन के
निरंतर गा रहा ,
'शम्स' की इस
साधना पर गौर हो .
(4)
ख्वाहिशों से भरी-भरी
निकली ,
ज़िन्दगी तुझमें
कमतरी निकली |
सब तो हालात पर
हँसे मेरे ,
मुफ़लिसी तू भी मसखरी
निकली |
खोट ही खोट सिर्फ़
दुनिया में ,
मौत इक तू ही बस
खरी निकली |
वक़्त पत्तों को
कर गया पीला ,
दर्द की जड़ मगर
हरी निकली |
जिसने ईमान को
रखा ज़िंदा ,
जेब उसकी मरी-मरी
निकली |
सामना जब कभी हुआ
खुद से ,
सबकी हिम्मत डरी-डरी
निकली |
(5)
क्यों उपेक्षित
हैं हमारी प्रार्थनाएं,
देवता इस प्रश्न
का उत्तर बताएं।
आपको हमसे निराशा
ही मिलेगी ,
मत तलाशें इस कदर
संभावनाएं।
लग गई हैं
स्वार्थ के झोंकों से हिलने ,
सिर्फ खूंटी पर
टंगी हैं आस्थाएं।
अब हमारे देश में है लोकशाही ,
आइये इस चुट्कुले पर मुस्कुराएं |
जब किया है प्यार
का बेशर्त सौदा ,
फिर नफ़ा-नुकसान
क्या जोड़ें-घटाएं।
(6)
हम नहीं डरते तिमिर के ज़ोर से,
ये विषय है नहीं सिर्फ उपहास का ,
(6)
हम नहीं डरते तिमिर के ज़ोर से,
अन्ततः हम जा मिलेंगे भोर से।
आपकी निष्ठा अभी संदिग्ध है,
सच बताएं आप हैं किस ओर से।
हम चले आते हैं खिंचकर आप तक,
हम बंधे हैं प्रीति वाली डोर से।
लूटने को आ गए डाकू कई,
मुक्ति हमको मिल गयी जब चोर से।
मन के कोलाहल से बचने के लिए,
हम मिले हैं दुनिया भर के शोर से।
वो हमें कब तक करेंगे अनसुना,
आइये हम और चीखें ज़ोर से।
शम्स कुछ भी तो नहीं बोले मगर,
कह दिया सबकुछ नयन की कोर से।
(7)
बताऊँ कैसे तुम्हें क्या है अपना हाल मियाँ ,
यहाँ तो जिंदगी ही बन गयी सवाल मियाँ।
बड़ा है शोर तरक्की का हर तरफ लेकिन ,
हमें नसीब नहीं अब भी रोटी-दाल मियाँ।
हमारे दौर का अहसास मर गया शायद ,
किसी भी अश्क को मिलता नहीं रुमाल मियाँ।
भरोसा करके जिन्हें रहनुमा चुना हमनें ,
हमारे हक का वही काट रहे माल मियाँ।
समझ गयी है तुम्हारा फरेब हर मछली ,
चलो समेट लो अब तुम भी अपना जाल मियाँ।
हैं कौन लोग लुटेरे हमारी खुशियों के ,
हमारे मन में भी अब उठते हैं सवाल मियाँ।
(8)
दूरियां इस कदर बड़ी मत कर ,
बीच अपने अना खड़ी मत कर।
पल दो पल को ज़रा ठहर भी जा ,
खुद को इस तरह से घड़ी मतकर।
ख्वाहिशों का सिरा नहीं कोई ,
बेसबब ख्वाहिशें बड़ी मत कर।
तू जले और सबके सब खुश हों ,
इस तरह खुद को फुलझड़ी मत कर।
प्यार में शर्त तो गवारा है ,
शर्त को यार हथकड़ी मत कर।
(9)
सूखते ज़ख्म को हरा मत कर ,
देखकर मुझको यूँ हँसा मतकर।
बेवजह मुश्किलें खड़ी होंगी ,
फ्रेम तस्वीर से बड़ा मत कर।
जोगियों का भला ठिकाना क्या ,
मेरे बारे में कुछ पता मत कर।
एक ही चोट ने है तोड़ दिया ,
वार दिल पर यूँ बारहा मत कर।
सिर्फ महसूस कर मुहब्बत को ,
कुछ न सुन और कुछ कहा मत कर।
कुछ तो रिश्ते का भरम रहने दे ,
क़र्ज़ दिल का अभी अदा मत कर।
(10)
ये विषय है नहीं सिर्फ उपहास का ,
कुछ तो उपचार हो युग के संत्रास का।
वृक्ष अब बाँटने लग गए धूप हैं ,
आजकल घोर संकट है विश्वास का।
मैं हूँ तपती दुपहरी का नायक मुझे ,
व्यर्थ लालच न दें अपने मधुमास का।
तृप्ति की याचना कैसे कर लूँ भला ,
मैं समर्थक रहा हूँ सदा प्यास का।
डूबने लग गई वक़्त की नब्ज़ है ,
छोड़िये सिलसिला हास-परिहास का।
आपने सिर्फ काटे मेरे पंख हैं ,
आँख में है अभी स्वप्न आकाश का।
लेखनी कवि की सोई नहीं है अभी ,
दीप अब भी बुझा है नहीं आ सका।
परिचय
डॉ॰ दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ जन्म – 03 जुलाई 1975 (बहराइच , उत्तर प्रदेश) माता-पिता – श्रीमती कृष्णा त्रिपाठी एवं स्व॰ श्री चेतराम त्रिपाठी शिक्षा – एम॰ए॰ , बी॰एड॰ , पीएच॰ डी॰ संप्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश कृतियाँ – आँखों मेँ आब रहने दे (ग़ज़ल संग्रह) , जनकवि बंशीधर शुक्ल का खड़ी बोली काव्य ( शोध-प्रबंध) , क्यों रो न सका (कहानी संग्रह) , कैक्टस की छांव मेँ (गीत संग्रह ) प्रकाशन – गत दो दशकों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मेँ नियमित प्रकाशन , दो दर्जन से अधिक सहयोगी संकलनों मेँ रचनाएँ संकलित , विभिन्न नेट पत्रिकाओं और ब्लॉग मेँ भी रचनाएँ प्रकाशित , दर्जन भर से अधिक पुस्तकों मेँ भूमिका लेखन |
संपर्क – जवाहर नवोदय विद्यालय
परिचय
डॉ॰ दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ जन्म – 03 जुलाई 1975 (बहराइच , उत्तर प्रदेश) माता-पिता – श्रीमती कृष्णा त्रिपाठी एवं स्व॰ श्री चेतराम त्रिपाठी शिक्षा – एम॰ए॰ , बी॰एड॰ , पीएच॰ डी॰ संप्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश कृतियाँ – आँखों मेँ आब रहने दे (ग़ज़ल संग्रह) , जनकवि बंशीधर शुक्ल का खड़ी बोली काव्य ( शोध-प्रबंध) , क्यों रो न सका (कहानी संग्रह) , कैक्टस की छांव मेँ (गीत संग्रह ) प्रकाशन – गत दो दशकों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मेँ नियमित प्रकाशन , दो दर्जन से अधिक सहयोगी संकलनों मेँ रचनाएँ संकलित , विभिन्न नेट पत्रिकाओं और ब्लॉग मेँ भी रचनाएँ प्रकाशित , दर्जन भर से अधिक पुस्तकों मेँ भूमिका लेखन |
सम्मान – विभिन्न संस्थाओं , संगठनों द्वारा 80 सम्मान / पुरस्कार / उपाधियाँ / अभिनंदन एवं प्रशस्ति प्राप्त |
ग्राम व पोस्ट – घूघुलपुर
जनपद – बलरामपुर , उत्तर प्रदेश – 271201
मोबाइल – 9559304131
ईमेल – yogishams@yahoo॰com
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