इस अंक के रचनाकार

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बुधवार, 27 नवंबर 2019

गरबा V/S सांझी टेसू और झांझी ...

मंजू वशिष्ठ


     आज बस अचानक मुझे दीदी से बात करते हुए अपने पिताजी द्वारा सिखाया गया एक चालीस साल पुराना गीत टेसू खेलते समय गाया जाने वाला याद आ गया। बच्चों ने भी पूछा और कहा,तो मैंने लिखने का मानस बना लिया। आजकल बच्चे इन चीजों से वंचित हैं, क्योंकि ना तो इतना समय होता है। ना ही घर वाले भी बच्चों को ऐसी चीजों को खेलने में रुचि दिखाते हैं। सभी का चमक दमक वाले मंहगे खेलों के प्रति ही लगाव देखने में आता है। ये एक विडम्बना ही है, कि हम ही उन्हें अपनी संस्कृति से दूर कर रहे हैं। इन पुराने संस्कृति के खेलों में आपसी सौहार्द व दैनिक सामाजिक समझ भी पैदा होती है। आइए! इन त्यौहारों के सादगी पूर्ण आयोजन, लोकगीतों और मनाने के तरीकों पर एक निगाह डालते हैं।
1
टेसू रे टेसू।
घंटार बजइयो।
नौ नगरी, दस गाम (गांव) बसइयो।
बस गए तीतर, बस गए मोर।
सड़ी डुकरिया, लै गए चोर।
चोरन के घर खेती।
खाय डुकरिया मौटी।
मौटी है जी मौटी है।
सब छोरन की ताई है
टेसू की लुगाई है।
     इन चार पंक्तियों को इस तरह भी गाया जाता है।
मौटी है के गई दिल्ली।
दिल्ली ते लाई द्वै बिल्ली।
एक बिल्ली कानी।
सब बच्चन (बच्चों)की नानी।
2
आगरे कूं जांगे, चार कौड़ी लांगे।
कौड़ी अच्छी भई तो, गांम में घुमांगें।
गांम अच्छो भयो तो, चक्की लगवांगे।
चक्की अच्छी भई तो,आटौ पिसवांगे।
आटौ अच्छो भयो तो, पूरी... पूआ बनवांगे।
     टेसू खेलने की परंपरा लगभग समाप्त सी हो गई है। इसलिए इसके गीत भी कम ही लोगों को पता हैं। टेसू जो कि मनुष्य की आकृति का तीन बांस की खप्पच्चियों द्वारा तैयार एक स्ट्रक्चर होता है। बीच में दीपक रखने की जगह होती है, को लेकर लड़के घर घर घूमते हैं और पैसे भी मांगते हैं। टेसू का खेल दशहरा से शुरू होकर शरदपूर्णिमा तक चलता है। ऐसे ही गीतों को गाते हुए लड़कों की टोली घूमती फिरती थी। लड़कियां झांझी लेकर चलती थीं। झांझी में एक मटकी में कई सारे छेद कर डिजाइन बनाते हैं, तथा उसमें दीपक जलाकर छोटी बच्चियां घर - घर खेलने, मांगने जाती हैं। रात के अंधेरे में छन कर आती रोशनी बहुत भली लगती है। बड़ा ही मनोरम दृश्य बनता है। कुछ चीजें बस आप महसूस कर सकते हैं। शब्द कम पड़ जाते हैं। लड़के टेसू लेकर व लड़कियां झांझी लेकर चलती हैं एवं नृत्य करती हैं।
नौ नवराते देविन के,
सोलह कनागत पितरन के,
मैं आई तेरे पूजन द्वार, 
पूज पुजंतर कहा फल होई,
भैया भतीजे संपत होई।।
सोलह तिथि भर पूजै याकौं 
अचल सुहाग कंत मन भावे।।
     अर्थात सांझी पूजन से अचल सुहाग, पति प्रेम तथा भाई भतीजा के यहां संपत (समृद्ध)होने का सुख मिलता है।
     शरद ऋतु और त्यौहार। उत्तर भारत में मनाया जाने वाले त्यौहार सांझी, टेसू, झांझी जो अब लुप्तप्राय से हैं। जहां गरबे को देश के कई प्रान्तों में स्वीकार कर (व्यवसायीककरण)शानोशौकत व धूमधाम से मनाया जाता है वहीं सांझी, टेसू,झांझी को गाँवों में अभी भी छोटे तबके के लोग ही इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। अश्विन मास में पितृपक्ष में बृज का लोकोत्सव सांझी कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है। वे अपने घरों की दीवार पर गोबर, फूल, पत्ती,आटा, हल्दी, कौड़ी, पन्नियों या इसी तरह की प्राकृतिक चीजों से प्रति संध्या को सुंदर आकृति बनाती हैं और रोजाना भोग भी लगाती हैं। यह बृज की विशिष्ट कला है। कहते हैं श्रीकृष्ण ने राधा को प्रसन्न करने के लिए शरदकाल में सांयकाल एक सुंदर कलाकृति बनाई थी जो संध्या समय निर्मित होने के कारण सांझी या चन्दा तरैया नाम से प्रसिद्ध है। कोई इसे देवी, दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती आदिशक्ति का अवतार भी मानते हैं। तो कोई बृज की देवी मानते हैं। प्रत्येक तिथि के हिसाब से इसको बनाया जाता है। इसमें फूल, बीजना (पंखा) गमला, आठकली का चौक, चिड़िया, सतिया आदि आकृतियां बनाई जाती हैं। कन्यायें सुंदर वर, सौभाग्य, सुखी जीवन की कामना से प्रतिदिन शाम को सांझी का पूजन आरती करती हैं। बृज के हर घर में मनाया जाता था। इसका उल्लेख कई ग्रन्थों में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि राधाकृष्ण उनकी सांझी निहारने अवश्य आयेंगे। सांझी का भी एक गीत....
1
मेरी सांझी भोग लैए भोग लै
और की सांझी, लोई लै, लोई लै
मेरी सांझी पलका लोटै,
और की सांझी, घूरौ लोटै
मेरी सांझी, पान खाय
और की सांझी, कुत्ता कौ कान खाय
2
झांझी कै औरे धौरे दो मोती मो, पाये जी।
पाए पपाये मैंने सास ऐ दिखाए जी।
सास हमारी ने धर पत्थर पे फोरे जी।
फूटे फुटाए मैंने मां ऐ दिखाए जी।
माय हमारी ने गंगा जमना बहाए जी।
     हो सकता है शायद इसमें गलती भी हो, क्योंकि इसे मैं अपनी चालीस साल पुरानी यादों के सहारे लिख रही हूं।
     इन तीनों ही खेलों की समाप्ति शरद पूर्णिमा के दिन कोट (एक आकृति)का निर्माण कर पंजीरी आदि का भोग लगाकर, टेसू झांझी का विवाह संपन्न कर  विसर्जन कर दिया जाता है। इसकी मान्यताएं, लोककथाएं तो बहुत हैं। मैंने तो बस एक संक्षिप्त जानकारी साझा करने की कोशिश की है।

मंगल भवन, ब्लॉक, फ्लैट नंबर 201बी
बाल मंदिर स्कूल के पास,माला रोड 
कोटा जंक्शन राजस्थान
मो.ः 09462826524
manu.vashistha61@gmail.com

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