इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

बुधवार, 27 नवंबर 2019

विष्णु के चौथे अवतार : भगवान नृसिंह

पृथ्वीसिंह बैनीपाल बिश्नोई

     भगवान विष्णु ने समय - समय पर पाप का नाश कर पुनः धर्म की स्थापना की । समय - समय पर अवतार और रूप धारण कर इस धरा पर आए। श्री हरि विष्णु अवतार गुरु - जम्भेश्वर भगवान ने अपनी कालजयी अमरवाणी के सबद संख्या 94 में अवतारो का वर्णन करते हुए चौथे अवतार के बारे में कहते हैं ’ नृसिंह रुप धर हिरणाकुश मारयो,प्रह्लादो रहियो शरण हमारी। अर्थात सतयुग में हिरण्याकशिपू के अत्याचारों से जन - जीवन में हाहाकार मच गया था। गुरुजी कहते है जन - मानस की पुकार सुन कर विष्णु अर्थात मैंने नृसिंहावतार धारण करके दैत्यराज हिरण्याकशिपू का वध किया और निझ भक्तराज प्रह्लाद की रक्षा की। यही प्रयोजन था इस धरा पर नृसिंह अवतार लेकर आने का। 
      इस लेख के भीतर मेरी एक काव्य रचना के माध्यम से उनकी कथा और महिमा का गुणगान -
नृसिंह होय हिरणाकुश मारी, प्रह्लादो रहियो शरण हमारी।
विश्व के स्वामी प्रभु को मान, सबके दाता नृसिंह भगवान।
भक्त मित्रता होती पक्की है, भक्ति स्वार्थ रहित सच्ची है।।
प्राकट्य नृसिंह भगवान का, मार्ग है भक्य कल्याण का।।
रहे संग ईश हमसे दूर नहीं, सर्व समर्थ है मजबूर नहीं।।
ईश्वर नृसिंह शक्ति - पराक्रम के, वे सदा रहे संस्थापक धर्म के।।
           हिरण्याक्ष के वध के बाद हिरण्यकशिपू का गुस्सा भड़क कर सातवें आसमान चढ़ चुका था। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में उसका डर और उसका ईश्वर के प्रति विरोध दिखाता यह अंश -
जब हिरण्याक्ष था वध हुआ, हिरण्यकशिपू था कु्रद्ध हुआ।।
वह मन में दुखी हुआ भारी, हुआ विरोधी ईश ललकारी।।
उसमें ईश्वर के प्रति घृणा थी, अजय बनने बहु कामना थी।।
कठोर बहुत उसने तप किया, ब्रह्मा से था उसने वर लिया।।
देव मानव पशु से न मरे वर था, उसे किसी का भी नहीं डर था।।
हिरणाकुश शासन कठोर था, देव - दानव उस आगे कमजोर था।
राज में उसका ही अभिनन्दन था, करे उसका ही चरण - वंदन था।।
ईश पूजे मिलता दण्ड कठोर था, उस आगे हर कोई कमजोर था।।
सब लोक थे उसके ही साये में, लोकपाल सभी तब घबराये थे।।
बढ़ता गया दैत्य का अत्याचार, ऋषि - मुनि सब हो गये लाचार।।
     जब हिरण्यकशिपू का अत्याचार अधिक बढ़ने लगा और विष्णु के भक्तों द्वारा भगवान की पूजा के बाद भगवान विष्णु द्वारा भक्तों को हिरणाकुश वध के वचन को बतलाता यह अंश
भक्त विष्णु - विष्णु थे जपने लगे, देवता भी ईश स्तुति करने लगे।।
विष्णु तब स्तुति से हुये प्रसन्न, देवों - भक्तों से पूछा था प्रश्न।।
हिरणाकुश वध का दिया वचन, भक्तन ह्रदय खिला था चमन।।
     हिरणाकुश के घर भक्तराज प्रह्लाद के जन्म और उसकी विष्णु भक्ति को दर्शाता काव्य का यह अंश-
हिरणाकुश के पुत्र प्रह्लाद हुये, भक्त सारे फिर से आबाद हुये।।
प्रह्लाद विष्णु को करै प्रणाम, जपता नित्य विष्णु का नाम।।
भक्त प्रह्लाद करै ईश ध्यान, समझते हिरणाकुश ये अपमान।।
असुर बालकों को देते उपदेश, संलग्न भक्ति में रहते हमेश।।
     भक्त प्रह्लाद की भक्ति से गुस्सा और भयभीत हुए दैत्य हिरणाकुश द्वारा प्रह्लाद को डराना - धमकाना और चेतवानी देता यह काव्यांश-
हिरणाकुश को गुस्सा आया, निज बाल बहुभांत समझाया।।
भक्त प्रह्लाद दरबार बुलाया, तरह - तरह से उसको डराया।।
प्रह्लादजी भक्ति पर अड़े रहे, जोड़ हाथ विनम्र वे खड़े रहे।।
कहे डाँट तू उदण्ड हुआ है, तुम्हे दें दण्ड जरूरी हुआ है।।
कैसे आज्ञा मेरी भंग करदी, कैसे शुरू विष्णु रटन करदी।।
     हिरणाकुश द्वारा प्रह्लाद को चेतावनी देने पर प्रह्लाद द्वारा विष्णु का महत्व बतलाना और पिताजी को सही मार्ग पर आने को समझाना -
बड़े शान्त तब बोले प्रह्लाद, कण - कण में विष्णु आबाद।।
छोटे - बड़े सब नित रटते ईश, सब में बसै विष्णु जगदीश।।
विष्णुजी सबका रचावनहार, विष्णुजी सबका पालनहार।।
करै रक्षा और सबका संहार, वही जगत का है राखनहार।।
छोड़ो पिताजी ये असुरभाव, वे सबसे रखते पूरा लगाव।।
छोड़ वैर अब उदार बनिये, उस ईश्वर की भक्ति करिये।।
     भक्त शिरोमणी प्रह्लाद के मुखारविन्द  विष्णु का महिमा गान सुन कर गुस्से में भरे हिरणाकुश द्वारा प्रह्लाद को ललकारना और विष्णु का प्रमाण मांगना -
सुनी बात प्रह्लाद भक्त की, लाल क्रोध में हिरणाकुश जी।।
बोले प्रह्लाद से दैत्य ललकार, निज जीवन पर करो विचार।।
सोच समझ तू मैं ही तेरा ईश, मैं देखूं कहाँ है तेरा जगदीश।।
      भगवान विष्णु की महिमा को आगे बतलाते हुए प्रह्लाद भक्त के द्वारा  विष्णु की उपस्थिति कहां - कहां है और उन्हें सर्वोपरी विद्यमान बताये जाने पर दैत्य हिरणाकुश द्वारा खम्बे पर वार -
हाथ जोड़ प्रह्लाद कहे विनम्र, तो में - मो में एवं विराजै खम्भ।।
हिरणाकुश क्या विराजै खम्भे, दिखे न मुझे क्या हम हैं अन्धे।।
कह कूद गये सिंहासन से नीचे, तलवार हाथ आँख खोले - मीचे।।
बड़े जोर से खम्भे पर मारा है, तमतमाये ईश को ललकारा है।।
      हिरणाकुश द्वारा खम्बे पर वार के बाद भगवान विष्णु द्वारा नृसिंहावतार लेकर हिरण्यकशिपू का वध करते हैं और अपने निजी भक्त शिरोमणी प्रह्लाद को शरण प्रदान करना -
खम्भ फाड़ हरि असुर संहारा, नृसिंहावतार हिरणाकुश मारा ।।
आधा मानव तन - आधा शेर का, किया काम तमाम नहीं देर का।।
लीलाधारी आये ले नृसिंहावतार, भक्त खुश था दिया दुष्ट संहार।।
प्रह्लाद भक्त रक्षक शरणाधार है, ’ पृथ्वी’ जप विष्णु से बेड़ा पार है।।


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