रागिनी
नज़र खंजर अदा कातिल, कली कचनार क्या कहिए!
अजब सी शोखियाँ उस की,करे मनुहार क्या कहिए!!
सुहानी बात करती जब, लगे मोहक मुरलिया सी,
पगों में पायलें उसकी,करे झंकार क्या कहिए!
बहारें झूमती आती,चले जब बाग में दिलबर,
दिवानी चाँदनी होकर,करे दीदार क्या कहिए!
नशीले नैन ये उसके, लगे ज्यों मद भरे प्याले,
बला की खूब सूरत है,करे इज़हार क्या कहिए!
हवायें चूमने आती, गुलाबी गाल जब उसके,
अलक आ रोक लेती है,मिसाले यार क्या कहिए!
फिजाँ में रागिनी गूँजे,अधर जब जब खुलें उसके,
तसव्वुर मे ही कातिल के, हुए बलिहार क्या कहिये।
इंदौर
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