सुमति श्रीवास्तव चलो यहाँ से उठ चले,
ये महफिल हमारे काम की नहीं।
बड़े नाम वालों की है,
हम जैसे गुमनाम की नहीं।
दुनियादारी के उसूल हमें नहीं आते,
चालाकी के पैतरे हमें नहीं भाते।
भरे पैमाने की है ये,
खाली जाम की नहीं।
ये महफिल हमारे काम की नहीं।।
असली रूप को मुखौटे लगाना,
हर बात नकली हँसी में छुपाना।
है दशानन की, राम की नहीं।
ये महफिल हमारे काम की नहीं।।
है दुशासन,दुर्योधन यहाँ,
भरा कंस शकुनि से सारा जहाँ।
चौपड़ की बिसात है ये,
ईमान का नाम नहीं।
ये महफिल हमारे काम की नहीं।।
जौनपुर
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