1.
गुणा - योग के चिह्न को,सही -सही पहचान।
भाग रही है ज़िन्दगी, घटा जा रहा मान।।
2.
जीवन सत्ता झूठ की, करके सच्चा भोग।
वाह - वाह करते हुए, हवा हुए हैं लोग।।
3.
तन पर तम छा जाय पर, बुझे न मन का दीप।
मन है मोती प्रेम का, तन है उसका सीप।।
4.
कौन छला? किसको छला? किसकी कैसी चाल।
सस्ता जीवन हो गया, मँहगी रोटी दाल।।
5.
काँव - काँव हर ओर है, नहीं छाँव में ठाँव।
राम हुए राजा! पड़ा, आज कीच में पांव।।
6.
नैन निहारे नेह से, नभ के भी उस पार।
जहाँ ईश साकार हो,हो प्रियतम का द्वार।।
7.
नये दौर का आदमी,बदल रहा है ढंग।
रंगत उसकी देख के, है गिरगिट भी दंग।।
8.
ख़त्म हुई संवेदना, आज हुए निष्प्राण।
कब आंसू की धार ने, पिघलाये पाषाण।।
9.
अम्मा बूढ़ी हो गयी,रही एक ही चाह।
बच्चे को मेरे कहीं, लगे न कोई आह।।
10.
बदल गए हालात अब, बदल गए संयोग।
रिश्ते भी कपड़े हुए, रोज बदलते लोग।।
11.
मां ममता की छांव है, करुणा सिन्धु अथाह।
आंचल में जिसके सदा, रहता प्रेम प्रवाह।।
12.
अंकुर मन के प्यास की, कौन सुनेगा पीर।
चुप्पी सागर साध कर,पी डाला सब नीर।।
13.
देख बुढ़ापा सामने, बिलख उठे मां - बाप।
अपने कन्धे पर हमें, ईश उठा लें आप।
14.
वंश वृक्ष अपना फले,खुले स्वर्ग का द्वार।
इक बेटे की आस में, बिटिया जनमी चार।।
ग्राम - खजुरी,
वाया - अहरौला, तहसील - बूढ़नपुर
जिला - आज़मगढ़, पिन.223221
मोबाइल नम्बर- 9454799898
ईमेलः asstava1985@gmail.com
गुणा - योग के चिह्न को,सही -सही पहचान।
भाग रही है ज़िन्दगी, घटा जा रहा मान।।
2.
जीवन सत्ता झूठ की, करके सच्चा भोग।
वाह - वाह करते हुए, हवा हुए हैं लोग।।
3.
तन पर तम छा जाय पर, बुझे न मन का दीप।
मन है मोती प्रेम का, तन है उसका सीप।।
4.
कौन छला? किसको छला? किसकी कैसी चाल।
सस्ता जीवन हो गया, मँहगी रोटी दाल।।
5.
काँव - काँव हर ओर है, नहीं छाँव में ठाँव।
राम हुए राजा! पड़ा, आज कीच में पांव।।
6.
नैन निहारे नेह से, नभ के भी उस पार।
जहाँ ईश साकार हो,हो प्रियतम का द्वार।।
7.
नये दौर का आदमी,बदल रहा है ढंग।
रंगत उसकी देख के, है गिरगिट भी दंग।।
8.
ख़त्म हुई संवेदना, आज हुए निष्प्राण।
कब आंसू की धार ने, पिघलाये पाषाण।।
9.
अम्मा बूढ़ी हो गयी,रही एक ही चाह।
बच्चे को मेरे कहीं, लगे न कोई आह।।
10.
बदल गए हालात अब, बदल गए संयोग।
रिश्ते भी कपड़े हुए, रोज बदलते लोग।।
11.
मां ममता की छांव है, करुणा सिन्धु अथाह।
आंचल में जिसके सदा, रहता प्रेम प्रवाह।।
12.
अंकुर मन के प्यास की, कौन सुनेगा पीर।
चुप्पी सागर साध कर,पी डाला सब नीर।।
13.
देख बुढ़ापा सामने, बिलख उठे मां - बाप।
अपने कन्धे पर हमें, ईश उठा लें आप।
14.
वंश वृक्ष अपना फले,खुले स्वर्ग का द्वार।
इक बेटे की आस में, बिटिया जनमी चार।।
ग्राम - खजुरी,
वाया - अहरौला, तहसील - बूढ़नपुर
जिला - आज़मगढ़, पिन.223221
मोबाइल नम्बर- 9454799898
ईमेलः asstava1985@gmail.com
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