अलका गौड़
छोटी-छोटी कठिनाइयो से
हर दिन टकराती हूॅं।
हर सुबह कुछ टूटा सा, बिखरा सा पाती हूॅं
जिददी हूं मै सब कुछ समेट लाती हूॅं।
कोई रूठे तो अच्छा नही लगता
इस लिए अपने ही अहं को तोड जाती हूॅं
जिददी हूं मै सब कुछ समेट लाती हूॅं।
घर से जो निकली तो नजरे हजार उठी
कुछ हासिल किया तो उंगलियां बार-बार उठी
पर बनके अन्जान आगे बढ जाती हूॅं।
जिददी हूं मै सब कुछ समेट लाती हूॅं।
माना कि सफर आसान नही
पाया अभी मैने अपना मकाम नही
पर बात अपनो की हो तो कुछ
पल ठहर जाती हूॅं।
जिददी हूं मै सब कुछ समेट लाती हूॅं।
मंजिल आसल तो नही ये जानती हूॅं मैं
तुफान तो बहुत है पर कारवॉं जारी है।
ये तो छोटी सी जंग थी
अब यु¸द्ध की तैयारी है।
इसी आस आगे बढ जाती हूॅं
जिददी हूं मै सब कुछ समेट लाती हूॅं।
M.+91 99990 44296
Flat no. 401, tower 10,
panchsheel primrose , Hapur Road, ghaziabad
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