इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

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नज़्मसुभाष
चुनाव प्रचार जोरों पर था।सभी पार्टियाँ अपनी पूरी ताक़त झोंके थी।यूँ तो इस लोकसभा क्षेत्र में करीब अट्ठारह लोग नामांकन करके अपनी राजनीति प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके थे मगर मुक़ाबला तो दो ही पार्टियों के बीच था।एक "आम आवाम पार्टी" जिसके उम्मीदवार दिनेश साहनी थे और दूसरी "नेशनल लोक मंच" जिसकी प्रत्याशी ऊषा खन्ना थीं।दोनो नौजवान थे और नये विचारों से लैस...शहर पर दोनों की पकड़ मजबूत थी।
आज पैदल मार्च के लिए ऊषा खन्ना अपने समर्थकों के साथ निकली थीं।जोर शोर से पार्टी और उनके ज़िंदाबाद के नारे लग रहे थे।वो गली - गली सबसे मिलते हुए अपने पक्ष में वोट डालने की फरियाद करते हुए आगे बढ़ रही थीं कि गली के मुहाने पर विरोधी पार्टी के दिनेश साहनी अपने दलबल के साथ दिख गये।दोनों तरफ़ से नारेबाजी का शोर हो रहा था।ऊषा की नज़र दिनेश से मिली तो उनके हाथ स्वतः जुड़ते गये यही हाल दिनेश का भी हुआ।वो एक पल को झिझकीं फिर आगे बढ़ी।समर्थक साथ बढ़े तो उन्होंने हाथ के इशारे से उन्हें रोक दिया।अपनी ओर उन्हें आता देखकर दिनेश भी समर्थकों को रोंककर अकेले आगे बढ़े...और ज़रा दूर आगे जाकर एक मकान की ओट में जहाँ छाया थी खड़े हो गये।अबतक ऊषा उनके करीब आ चुकी थीं

"कैसे हैं आप?"

" बस ठीक हूँ...तुम बताओ"

"मैं भी ठीक हूँ....धूप बहुत तेज़ है ..."

"हाँ वो तो है....मगर कुर्सी इतनी आसानी से तो न मिलती"

"आसानी से तो कुछ भी नहीं मिलता....आप भी तो न मिले"

"ऊ...षा" 
उनकी ज़बान लड़खड़ाते ही लफ़्ज़ों में टीस उतर आयी-"आज हम एक दूसरे के सामने आये भी तो विरोधी बनकर"


"वक़्त- वक़्त की बात है...कभी यूनिवर्सिटी में हम साथ- साथ थे...लोग हमारी जोड़ी पर रश्क़ करते थे..दो- चार क़समें तो हमें भी याद हैं...कहिए तो एकाध बताऊँ" 

"प्लीज ऊषा...अब तो बस कहानियाँ बची हैं या फिर यादें....मगर तुम्हें बहुत मिस करता हूँ..काश! उस वक़्त मैं फैमली के दबाव में कमजोर न पड़ता....बहुत कुछ खोया हैं मैंने" 
एक आह उनके होंठो पर आकर पसर गयी।

ऊषा की आँखें पसीज गयीं उन्होंने साड़ी के आँचल से आँखें पोंछी और मुस्कुराने का प्रयत्न करते हुए बोली-"शुकर है फैमिली की तरह यादें विरोधी नहीं हुईं...."

"कमसेकम ये इस जन्म में तो न होगा"

"इस पर तो मुझे कोई शक नहीं....तुम जल्दी बदलते भी कहाँ हो?" वो मुस्कुरायी

"और तुम?" दिनेश ने पूछते हुए उसके चेहरे पर आँखे गड़ा दीं।

" मैं तो तुम्हें देखते ही बदल चुकी हूँ...."

"मतलब"

"मतलब ये कि...ख़ैर छोड़ो आप तो मुझे गैर समझते हैं इसलिए हमसे वोट न मांगा मगर मैं वादा करती हूँ...मेरा वोट उसे जाएगा जिसे मैं पसंद करती हूँ।"

"ऊ...षा" 
वो कुछ और कहना चाहते थे मगर होंठ काँप कर रह गये आँखों  की करें पसीज गयीं ।ऊषा जा चुकी थी। चुनावी नारों का शोर फिर शुरू हो गया था मगर एक विचार आहिस्ता- आहिस्ता उनके जेहन में करवट ले रहा था।

356/केसी-208
कनकसिटी आलमनगर
लखनऊ-226017

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