शायद तुम आओगे ...
छत की मुंडेर पर
कागा आकर बैठा
दिल धक से हुआ
शायद तुम आओगे।।
रात आंखों में कटी
दिन सांसत में गया
रास्ता तकती रही
शायद तुम आओगे।।
मन भटकता रहा
दिल कसकता रहा
सपने बुनती रही
शायद तुम आओगे।।
श्वास का विश्वास छूटा
डालियों से पात टूटा
फिर भी गुनती रही
शायद तुम आओगे।।
दिन क्या मास गए
सावन मधुमास गए
उंगलियों गिनती रही
शायद तुम आओगे।।
छू गई होगी ...
याद उनको जो छू गई होगी
रह रह वो सिहर गई होगी।।
अक्स देखा जो आइने पे
तस्वीर बनके बिगड़ गई होगी।।
आहटों का अंदेशा इतना
रात करवटों में गई होगी।।
कितनी बेबस हुई हैं उम्मीदें
बूंद आखों से फिसल गई होगी।।
क्या बयान करें हादसों का
खुद की सासों से डर गई होगी।।
आहट जिस तरफ हुई होगी
फिर नजर उस तरफ गई होगी।।
ravindrakumarjaiswal1945@gmail.com
छत की मुंडेर पर
कागा आकर बैठा
दिल धक से हुआ
शायद तुम आओगे।।
रात आंखों में कटी
दिन सांसत में गया
रास्ता तकती रही
शायद तुम आओगे।।
मन भटकता रहा
दिल कसकता रहा
सपने बुनती रही
शायद तुम आओगे।।
श्वास का विश्वास छूटा
डालियों से पात टूटा
फिर भी गुनती रही
शायद तुम आओगे।।
दिन क्या मास गए
सावन मधुमास गए
उंगलियों गिनती रही
शायद तुम आओगे।।
छू गई होगी ...
याद उनको जो छू गई होगी
रह रह वो सिहर गई होगी।।
अक्स देखा जो आइने पे
तस्वीर बनके बिगड़ गई होगी।।
आहटों का अंदेशा इतना
रात करवटों में गई होगी।।
कितनी बेबस हुई हैं उम्मीदें
बूंद आखों से फिसल गई होगी।।
क्या बयान करें हादसों का
खुद की सासों से डर गई होगी।।
आहट जिस तरफ हुई होगी
फिर नजर उस तरफ गई होगी।।
ravindrakumarjaiswal1945@gmail.com
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