सावित्री काला '' सवि ''
यह भी सच है जिनके घर मोम के होते है, वहां दिए नहीं जलते।
घोसला एक ही बार तो बनता है, बार - बार दिल भी नहीं मिलते।।
हम नहीं जानते कि, जिंदगी अब कैसी गुजर पायेगी,
जो आज मिले हैं जिंदगी में, वे क्या कल तक साथ दे पाएंगे।
सब जानते हैं कि कागज के, फूलों में खुशुबू नहीं होती,
धुप में तो कांच के, टुकडे भी चमकते दिखाई देते हैं।।
किसी को जबरदस्ती, अपना बनाया नहीं जाता है।
प्यार तो वह तासीर है, कोई खुद ही खिंचा आता है।।
यही सोच कर बहुत से लोग, जिंदगी का दावं खेल गए।
वे तो न मिल सके, जिंदगी के हसीन लम्हे भी बीत गए।।
यह भी सच है अपने ही, उजाड़ते हैं दिलों की बस्तियां।
डुबो देते हैं वे हमेशा, आशिकों कि प्यार भरी किश्तियाँ।।
ज़माने वाले तो आज भी, देंगे हमारे मिलन पर ताना।
यही तो ज़माने की फिदरत है, जो बदल नहीं सकती बाना।।
तुमने कहा हमारे मिलन से, तो भूचाल आ जायेगा।
जब जिंदगी में इतने, भूचाल झेले हैं एक और सही।।
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