सरोज यादव ' सरु '
हाशिये पर खड़े लोग,
हमेशा होते हैं गेंद की तरह गोल।
उनमें नहीं होती, कोई चपटी सतह,
जिसके पास हो उन्हें स्थिर कर पाने का हुनर।
वे खाली पेट धंसी आंख और सूखे चेहरे के साथ,
देखते हैं कुछ दिन के आहार की बंदोबस्ती गाड़ी।
और भर लेते हैं अपने फेफड़ों में,
अगले कई वर्षों तक जी लेने लायक प्राणवायु।
और फिर लुढ़क जाती है गेंद,
बेहतरीन ताजातरीन विकल्प की ओर।
चले जाते हैं आश्वस्त होकर हवा में तैरते लोग,
गेंद को थोड़ी और गोलाई देकर।
सरोज यादव ' सरु '
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