हरिकांत त्रिपाठी
अब आसमाँ में चाँद सितारे बदल रहे
ढलने लगी है शाम नज़ारे बदल रहे।।
कभी धड़कनों में प्यार के पैग़ाम भरे थे
मायूस शाम - ओ - सहर हमारे बदल रहे।।
देखे बिना जो रात दिन रहते थे बेकरार
नज़रें बदल चुकी हैं इशारे बदल रहे।।
मस्ती बहार शोखियाँ अठखेलियाँ गईं
रंग - ए-बहार-ए-आलम हमारे बदल रहे।।
कश्ती भँवर में है अभी साहिल भी दूर है
तूफ़ान भी दरिया के किनारे बदल रहे।।
जब वक्त मेहरबान था , वे साथ में रहे
हम हो गये तन्हा तो सहारे बदल रहे।।
कैसे कहें कि कान्त तो बदले नहीं अभी
अन्दाज़ देखने के तुम्हारे बदल रहे।।
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