गोपाल सिंह नेपाली
दो मेघ मिले बोले - डोले, बरसाकर दो - दो बूँद चले ।
भौंरों को देख उड़े भौंरे, कलियों को देख हँसीं कलियाँ।
कुंजों को देख निकुंज हिले,गलियों को देख बसीं गलियाँ।
गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो।
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो।
दो फूल मिले, खेले - झेले, वन की डाली पर झूल चले
इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले - भाले।
ऊँची नजरों चुपचाप रहे, नीची नजरों दोनों बोले।
दुनिया ने मुँह बिचका - बिचका, कोसा आजाद जवानी को।
दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को।
दो प्राण मिले झूमे - घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले।
तरुवर की ऊँची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने।
दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने।
मधुरस तो भौरें पी चले, मधु - गंध लिए चल दिया पवन।
पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन - वन के सूखे पत्र - सुमन।
दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले।
नदियों में नदियाँ घुली - मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं।
धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं।
अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही।
चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही।
दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले।
दो मेघ मिले बोले - डोले, बरसाकर दो - दो बूँद चले ।
हम अमर जवानी लिए चले, दुनिया ने माँगा केवल तन।
हम दिल की दौलत लुटा चले, दुनिया ने माँगा केवल धन।
तन की रक्षा को गढ़े नियम, बन गई नियम दुनिया ज्ञानी।
धन की रक्षा में बेचारी, बह गई स्वयं बनकर पानी।
धूलों में खेले हम जवान, फिर उड़ा - उड़ा कर धूल चले।
दो मेघ मिले बोले - डोले, बरसाकर दो - दो बूँद चले ।
भौंरों को देख उड़े भौंरे, कलियों को देख हँसीं कलियाँ।
कुंजों को देख निकुंज हिले,गलियों को देख बसीं गलियाँ।
गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो।
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो।
दो फूल मिले, खेले - झेले, वन की डाली पर झूल चले
इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले - भाले।
ऊँची नजरों चुपचाप रहे, नीची नजरों दोनों बोले।
दुनिया ने मुँह बिचका - बिचका, कोसा आजाद जवानी को।
दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को।
दो प्राण मिले झूमे - घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले।
तरुवर की ऊँची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने।
दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने।
मधुरस तो भौरें पी चले, मधु - गंध लिए चल दिया पवन।
पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन - वन के सूखे पत्र - सुमन।
दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले।
नदियों में नदियाँ घुली - मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं।
धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं।
अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही।
चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही।
दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले।
दो मेघ मिले बोले - डोले, बरसाकर दो - दो बूँद चले ।
हम अमर जवानी लिए चले, दुनिया ने माँगा केवल तन।
हम दिल की दौलत लुटा चले, दुनिया ने माँगा केवल धन।
तन की रक्षा को गढ़े नियम, बन गई नियम दुनिया ज्ञानी।
धन की रक्षा में बेचारी, बह गई स्वयं बनकर पानी।
धूलों में खेले हम जवान, फिर उड़ा - उड़ा कर धूल चले।
दो मेघ मिले बोले - डोले, बरसाकर दो - दो बूँद चले ।
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