इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

गिनती करोड़ के

ललित नागेश
पान ठेला म घनश्याम बाबू ल जईसे बईठे देखिस, परस धकर - लकर साइकिल ल टेका के ओकर तीर म बईठगे। पान वाला बनवारी ल दू ठिन पान के आडर देवत का रही भईया तोर म काहत घनश्याम ल अंखियईस। दू मिनट पहिलीच एक पान मुहु म भरके चिखला सनाय भईसा कस पगुरात बईठे रिहीस। बरोबर सुपारी ह घलो चबाय नइहे अउ एति पान के आडर। अभीच भरे हंव काहत घनश्याम बाबू मना करत मुड़ी हलइस फेर परस के दरियादिली के आगु ओकर कंजुसी चलबे नइ करय। जइसे बनवारी पान ल चिपोटत लौंग के काड़ी म भोस के दिस,परस ऊंट कस मुहु ल फारत ओमा हुरस दिस। अउ बगल म तुरते पच ले मार दिस।
फेर घनश्याम बाबू तिरन गसियावत धीरलगहा पुछथे - करोड़ रुपिया कतेक अकन होत होही भईया? घनश्याम बाबू अकचकागे, पहिली तो आंखी ल बटेर के ओकर मुड़ी ले गोड़ देखिस। फेर कथे - तोला कांही बाय भूत तो नी धर लेहे? कईसे आज करोड़ के गिनती पुछत हस? सौ दू सौ के कमईया कब ले करोड़पति बनगे। परस कहुं अनीत - सनीत काम धंधा म तो नी लगगे हस। रयपुर वाला बेंक के तिजोरी ल फोरिन तिंकरे संग संगत म तो नइ परगे हस? अइसने धड़धड़ धड़धड़ घनश्याम के मुंहु ले सवाल छुटगे। अतेक अकन सवाल एक संघरा सुनके परस बक खागे।
फेर थोरिक एति ओति देखके कहिथे - अइसन बात नइ होय भईया एतहु मन का ले का सोंच डारथव। मे तो सिरीफ  कतका होथे इही पुछे हंव। तरी उपर होवत सांस ल घनश्याम धीरज देवत कहे लागिस - करोड़ के गिनती गिने के न तोर औकात हे परसु अउ न मोर बताय के ,फेर अइसे का बात, जेमा तोला करोड़ के संउक लागत हे। तहुं भईया बात ल कहां ले कहां ले जाथस? गोठबात ल घुमात परस किहिस। टीवी नी देखस का? कइसे एक ठिन सवाल म एक लाख,दू ठिन म दू लाख,पांच सवाल म दस लाख,कनहो सवाल तो पचास लाख के घलो होथे। देखते देखत करोड़पति बन जाथे। अंखमुंदा खेल बरोबर! परस फेर आगु कहिथे - हम तो एला सिरीप मनोरंजन समझत रेहेन, फेर बताथे सिरतोन म पईसा जीत के लानथे। उपराहा म पुछथे घलो कोन - कोन करोड़पति बनही। अइसने अइसने सवाल के जुवाप ले कई ठिन परीक्छा के पेपर ल पोते हन। करोड़ ल कोन काहय बरोबर हजार रुपिया देखे ल नी मिले।
घनश्याम बाबू परस के गोठ ल सुनत भोकवाय हूं हूं हूंकारु देवत हे अउ परस के बात चलतेच हे। सरकार कांही घोसना करही तहू ह हजार करोड़। लाख लाख करोड़ के योजना निकलथे, बजट बनाथे, अतका करोड़ वोतका करोड़! जब गिनतीच ल नी जानबे, त काला समझबे? अउ ते अउ कोनो कलेचुप रिश्वत मांगही वहु ह करोड़ के उही पार। भरस्टाचार करही वहू करोड़ ले उपर, अपन परचार बर, मुहुकान ल बने देखाय बर बिग्यापन घलो करोड़ ले उपर। हड़तालिया मन बर घलो एके जुवाप, करोड़ो रुपिया के लागा करे ल परही तुंहर बर। अइसे लागथे करोड़ ले कम ह पइसाच नी होय! तिही पाय के भईया मे गिनती पुछत रेहेंव!
परस के गोठ म हुंकारु देवत घनश्याम बाबू मुड़ी हलात कथे- सिरतोन बात ए भाई! फेर हमर भाग म अइसन कहां जेन जीते जीयत अतेक अकन रुपिया देखे ल मिलही? इंहा तो नून तेल गोंदली ह रोवा डारथे। पाछु हप्ता के पेपर ल परस धरे राहय, ओमा छपे समाचार ल देखात कहिथे- ले देख, एकर ऊपर म पांच करोड़ के इनाम हे। पता बता अउ बन जा करोड़पति! इनाम देवईया कोनो गंगू तेली नही राजा राठी आय। समझ जा राजा के आदेश आय! घनश्याम बाबू परस ल इंच्चट देखे, भीतरे - भीतर पछीना छुटे लागिस। थरथरावत जबान म घनश्याम बाबू परस ल घुड़कथे - त करोड़पति बने बर काकरो मुड़ी ल काट देबे का? अरे पइसा खातिर काकरो लहु रकत बोहाना गलत बात आय! कोनो ल रोआ के सुख नइ मिले! परस हांसत कहिथे - तै नइ जानस भईया! बाहुबली ल मारिस तभे तो पांच सौ करोड़ कमईस हे गा।
बहेराभांठा,छुरा
गरियाबंद (छ .ग)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें