सुशील यादव
कभी नींद गहरी या ख्वाब छिनता है
वो खिलने से पहले गुलाब छिनता है
मेरी उतरनो को पहनता रहा जो
वही मुझसे मेरा नकाब छिनता है
कहाँ क्या बुरा जो मेरे नाम जुड़ता
जमाना मुझी से खिताब छिनता है
अगर तू कहे आसमा ला के दे दूँ
हथेली से क्या आफताब छिनता है
बुझे लोग बदहाल बस्ती लगे यूँ
यहाँ कोशिशों का हिजाब छिनता है
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