इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

संतगिरी

- सनत कुमार जैन

ट्रेन की स्लीपर बोगी में भी भीड़ का आलम ये था कि लोग एक दूसरे के ऊपर लदे हुए थेण् ऊपर से भयंकर गर्मीण्ण्ण्ण्पसीने की बदबू नथुनों में घुसी जा रही थीण् इस भीड़ और गर्मी में ट्रेन की रफ्तार भी कछुए की चाल सी लग रही थीण्
ट्रेन रुकती तो थोड़ी हलचल होतीए परन्तु समझ में न आता कि भीड़ कम हुई थी या ज्यादाण् लोग एक दूसरे की तरफ घूरकर देखते और फिर सामान्य होकर खड़े हो जातेण्
इस भीड़ में भी वेंडर्स अपना रास्ता बनाकर निकल जातेण् इसी बीच तेज आवाज करते हुए कुछ हिजड़े डिब्बे के अंदर घुस आएण् सबका ध्यान उनकी तरफ चला गयाण्
ष्इन लोगों से उलझना बेकार हैण्ष् सभ्य गोरे चिकने से एक व्यक्ति ने कहाण् उसकी शक्ल बता रही थी कि उसके पॉकेट में मोटा माल थाण् ष्इनसे उलझो तो ऐसे ही करते हैंण् बेशरम हैं येण् पर हम तो नहींण्ष्
ष्भाई साहब आपका पेट भरा हैण् जेब भारी है और तिजोरी भी भरी होगीण् इसलिए इतनी शान से ऐसी बात कह रहे हैंण् कल से सफर कर रहा हूंए किसी तरह खाने के पैसे बचा.बचाकरण् इस बेशरम को कैसे दे दूंण्ष् एक अन्य व्यक्ति ने कहाण्
सभ्य व्यक्ति ने कहाए ष्उनकी बद्दुआ मत लोण् सबकुछ बिगड़ जाता हैण्ष्
ष्कल से आज तक मात्र दो बार खाया हैण् ट्रेन में सफर करते हुए दो दिन हो चुके हैंण् बैठने की जगह नहीं मिली हैण् खुद का घर नहीं हैण् प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूंण् यह सब अच्छा है क्याघ्ष्
सारे लोग मौन हो गएण् मिस्टर सभ्य ने अपनी जेब से एक दस का नोट निकालकर हिजड़े को दे दियाण् वह आगे बढ़ गयेण् तभी दो बच्चे आ गएए अपना नाम और करतब दिखानेण् उस ठसाठस भीड़ में भी जगह बन गयी थीण् एक ढोलक बजा रहा था और उसकी थाप पर नाच रहा थाण्
ष्चलो आगे बढ़ोण् न तो जगह हैए न मूडण्ष् सभ्य व्यक्ति ने लगभग दुत्काराण् उन बच्चों का यह रोज का काम थाण् वे लगे रहेए जब तक कि उनका तमाशा न खत्म हुआण् फिर वह एक.एक के पास जाकर पैसे मांगने लगेण् इसी क्रम में वह मिस्टर सभ्य के पास पहुंचेण्
ष्छूना नहीं! बिल्कुल छूना नहींण् पैदा करके छोड़ देते हैं समाज के लिएण् सारे चोरए डाकू तो इसी ट्रेन में घूम रहे हैंण्ष् मिस्टर सभ्य ने चिड़चिड़ाहट के साथ कहाण्
ष्अभी वो छक्का आया था तो चुपचाप दस का नोट निकालकर दे दियाण् मुझे एक रुपया देने में दर्द हो रहा हैण्ष् इसके साथ ही उसने उस छक्के की नकल उतारीण् अगले ही पल लोगों ने अपनी.अपनी जेब से चिल्लर निकाल कर उस लड़के के हाथ पर रख दीण् मिस्टर सभ्य अपनी सीट पर फैलकर बैठ गये और अखबार पढ़ने लगेण् पढ़ क्या रहे थेए अपना चेहरा छिपा रहे थेण्
तीन.चार स्टेशन के बाद भीड़ कुछ कम हो गयी थीण् तभी बोगी में एक मधुर आवाज गूंजीण् हरि नाम जप रहा था कोई सुन्दर राग मेंण् साथ ही मंजीरा भी उसका साथ दे रहा थाण् किसी पुरानी फिल्म की धुन थीण्
कुछ समय के लिए सुकून की हवा बह उठी थीण् उस अंधे बाबा का स्वर गवाही दे रहा था कि यदि ईश्वर किसी को कुछ कमी देता है तो कहीं बढ़ती भी देता हैण् वह बड़ी तन्मयता से गा रहा थाण् लगभग पांच मिनट चला उसका भजनण् भजन खत्म होते ही उसने भी मांगना शुरू कर दिया.
ष्दे दाता के नाम पर देण् तेरे बच्चे जिएंण् तेरा घर.द्वार आबाद रहेण्ष् लगातार यही बातें उलट.पुलट कर बोल रहा थाण् जैसे ही कोई उसके हाथ पर कुछ रखताए उसका स्वर बदल जाता. ष्तू जिस काम से जा रहा हैए ईश्वरए अल्लाहए राम उसे पूरा करेण्ष्
मिण् सभ्य जी की ओर बढ़ा हाथए पर अखबार के पीछे छिपा चेहरा आगे नहीं आयाए बल्कि आवाज आई.
ष्कुछ काम करो बाबा! यूं मांगने से कब तक चलेगाण् वैसे भी मांगना पाप हैण्ष्
ष्चल बेटाए मैं तेरे साथ चलता हूंण् जहां तू ले चलेगाए मैं तेरे साथ चलूंगाण् जो बोलेगा वहीं करूंगाण् मैं खुद ही इस मांगने के काम से परेशान हूंण् घर में रोटियां नहीं मिलतीए और ट्रेन में केवल गालियां मिलती हैंण्ष् नयन सुख बाबा खुश होकर बोलेण् मिण् सभ्य इस अचानक हुए हमले से घबरा गयेण् सोचा भी न था कि पास उल्टा पड़ जाएगाण् बड़ी मुश्किल से जी ठिकाने आया तो जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और उसे देकर कहा.
ष्इस कार्ड पर लिखे पते पर आ जाताण् मैं काम जरूर दूंगाण् ठीक हैए समझ गये न!ष् ताकीद देकर उसे समझा भी दियाण्
ष्ईश्वर तेरे बच्चों को सुखी रखेण्ष् कहते हुए नयन सुख अपने डण्डे के सहारे आगे बढ़ गयाण् मिण् सभ्य अपनी खिसियाहट के छिपाने के लिये ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयेण्
इसके बाद एक चना.मसाला बेचने वाला आयाण् इतनी भीड़ में उसे जगह देना अखर रहा थाण् परन्तु लोगों की जीभ में चना.मसाला देखकर पानी भर आया थाण् उसने भी अपने पैसे कमाए और चलता बनाण्
ष्भाई साहब! जरा रास्ता दीजिएण्ष् एक महिला बाथरूम जाने के लिए रास्ता मांग रही थीण् वह व्यक्ति आखिरी बर्थ के पास बीच में खड़ा थाण् जब भी कोई बाथरूम जाताए सबसे ज्यादा तकलीफ उसे ही होती थीण्
उसने अजीब नजरों से उस महिला को देखाण् वह स्कूल मास्टरनी सी लग रही थीण् व्यक्ति ने सोचाए ष्इस गर्मी में भीण्ण्ण्घ्ष् महिला की आंखों ने कहाए ष्क्या करूंघ्ष् और रास्ता बन गयाण्
अचानक एक झटके के साथ ट्रेन रुक गयीण् कुछ हलचल सी हुईण् लोगों ने एक दूसरे की तरफ ष्क्या हुआष् के भाव से देखाण् लोगों आपस में बातें कर रहे थे.
ष्अरे यह तो जंगल हैण्ष्
ष्घनघोर जंगल हैण्ष्
ष्यहां कैसे रुक गयीघ्ष्
ष्जरूर चोर.लुटेरे होंगेण्ष्
घबराहट फैल गयी पूरी ट्रेन मेंण् हर कोई अपने इष्ट को याद करने लगाण् सबसे ज्यादा बेचैनी भीतर खड़े लोगों को हो रही थीए जबकि उनके पास खाने.जैसा कुछ नहीं थाण् सभी नौकरी के लिए शहर जा रहे थेण्
तभी बहुत.सी महिलाएं ट्रेन के हरेक डिब्बे के अंदर
धड़ाधड़ घुस आयींण् बाहर खड़े कुछ पुरुषों के हाथों में सब्जी के बोरे और टोकरियां थींण् दरवाजों से ये बोरे और टोकरियां धड़ाधड़ अंदर फेंकी जाने लगींण् उन्हें चिंता नहीं थी कि सब्जियों के बोरे और टोकरियां कहांए किसके ऊपर गिर रही थींण्
सभी यात्री संभल कर खड़े हो गये थेण् कुछ सामान को बाथरूम तक पहुंचाने में मदद कर रहे थेण् बाथरूम के सामने की जगह भर गयी थीण् वे महिलायें बाथरूम के अंदर भी कुछ सामान लेकर जमा चुकी थींण् इसके बाद सीटों के नीचे सामान रखा जाने लगाण् कई लोग चिल्ला रहे थेए मना कर रहे थेए पर किसी की न चलीण् बोरियों के धक्कों ने सभी को पस्त कर दिया थाण् भूकंप की तरह आया जलजला कुछ ही देर में शांत हो गया और ट्रेन यंत्रवत चल पड़ीण् इस बीच न तो कोई टीण्टीण् आयाए न गार्ड और न जीण्आरण्पीण् कोई सुध लेने वाला नहीं थाण्
ट्रेन चलने से राहत मिलीण् मिण् सभ्य ऊपर की बर्थ से नीचे की बर्थ पर आ गये थेण् उनकी नाक पर रूमाल थाण् यात्री महिलाओं के चेहरों पर घृणा के भाव थेण्
आखिर एक महिला ने अपनी घृणा का राज खोलाए ष्बाथरूम में सब्जियां रखी हैंण् वह 62 नंण् वाली महिला आधे रास्ते से वापस आ गयीण् बंद हैए बंद हैए की आवाजें नहीं सुनी तुमनेघ्ष् और उस महिला को उबकाई महसूस हुईण् मुंह में आये थूक को वह खिड़की के पास जाकर थूक आईण् पास खड़ी एक सब्जीवाली ने उसे घूरकर देखाए पर बोली कुछ नहींण्
ष्इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे पैसों का मोल हमें ही नहीं मिलताण् कोई बेवकूफ होगा जो इस बोगी को देखकर रिजर्वड बोगी कहेगाण् गल्ती से मालगाड़ी का डिब्बा यात्री गाड़ी में लगा दिया गया हैण् सरकार जनता को बेवकूफ बनाकर पैसा वसूल करती हैण्ष् मिण् सभ्य ने अपने बायीं हथेली पर दायें हाथ का मुक्का मारकर क्रोध प्रकट कियाण् भीड़ से किसी की प्रतिक्रिया नहीं आईण् उन्होंने पुन: कहा.
ष्भेड़ बकरियों की तरह भर दिया है लोगों कोण् कुछ कमी थी तो घास.फूस भी रखवा दियाण् हद हो गई हैण् ऐसे दमघोंटू वातावरण में कोई मर न जाएण् सामान ही ले जाना है तो पार्सल करोए पार्सल बोगी में रखवाओए परन्तु कहां है नियम बनाने वाले और उनका पालन करने वालेण् इस मालगाड़ी की भेड़ बकरियां और उनका चारा तो हटवाओण् उफ! ये बदबूए पसीनाए बंद हवा! हे भगवान मुझे बचा लेनाण् यूं जानवरों की तरह मरने न देनाण्ष् उनकी पुकार सुनने भगवान तो नहीं आएए परन्तु पास खड़ी महिला उनके पास पहुंच गयी और मिण् सभ्य का दर्शन पकड़कर शुरू हो गयी.
ष्दो पैसा कमाकर इंसानों को जानवर समझने वाले बाबूए पैंट.शर्ट नहीं पहनता जानवरए परन्तु अपने भाई.बन्धुओं को पहचानता हैण् उनके दुख.दर्द को समझता हैण् जानवर दूसरों के लिए भले कुछ न कर पायेए परन्तु परेशानी पैदा नहीं करताण् शांत ही रहता हैण् हम सब्जी वाले न तो सवारी का सामान चोरी करते हैंए न ही किसी को परेशान करते हैंण् हम तो खुद कहते हैं कि सरकार हम सब्जीवालों के लिए ट्रेन चलायेए पर कहां चलाती है सरकारण् रोज थाली में हरी सब्जी चाहियेए परन्तु करेंगे कुछ नहींण् बाबूए हम रोज धक्का खाते हैंए गाली खाते हैंए परेशान होकर ट्रेन में जाते हैंए क्या हमें अच्छा लगता हैघ् इतनी मेहनत और जिल्लत के बाद क्या है हमारे पासघ् यही फटी साड़ी हैए जो सब्जी बेचते वक्त भी पहनते हैं और किसी के शादी.ब्याह में भी पहनते हैंण् हमारे बच्चे हमारी इतनी मेहनत के बाद भी सरकारी स्कूल में ही पढ़ते हैंण् वो भी पांच.सात क्लास के बाद छोड़ देते हैंए क्योंकि कक्षा से ज्यादा जरूरी है रोटीण् कितने ही लोग हम पर बुरी नजर डालते हैंए छेड़खानी करते हैंण् कभी इधरए कभी उधर छूते हैं और हम गाली देकरए हंसकरए लड़कर टाल देते हैंण् हमारा मतलब बस आप लोगों तक सब्जी पहुंचाना होता हैण्ष्
मिण् सभ्य आंखें फाड़कर चुपचाप सुन रहे थेण् इस बार न तो उन्होंने अखबार में मुंह छिपायाए न खिसियाएण् ध्यानपूर्वक उस सब्जीवाली की बात सुन रहे थेण्
ष्और बाबू साहब! हम लोग अगर ऐसे सब्जी ले जाते हैं तो ही आप लोग खा पाते हैंण् आपको तो अपनी सीट से प्रेम हैए परन्तु क्या पूरी की पूरी बोगी ही रिजर्व करवा ली हैण् जो मुफ्त का हैए उसके लिये भी आपके पेट में दर्द होता हैण्ण्ण्ण्ण्ष् कुछ पल रुककरण्ण्ण्ण्ण्
ष्और हमें देखोए इतनी परेशानियों के बावजूद अपना ये काम नहीं छोड़ते हैंण् मैं आपको एक चीज बता दूंए जो आपने नहीं सोची हैण् आप यह नहीं जानतेए अगर हम ट्रेन से सब्जी लेकर जाते हैंए तो ताजी हरी सब्जी आपकी थाली तक सस्ते दामों में पहुंचती हैण् ट्रक से ले जाने में उसकी कीमत बढ़ जाती हैण् मंडी से दुकान तक आते.आते उसकी कीमत दस गुना बढ़ जाती हैए परन्तु हम सस्ते दामों में बेचकर शाम को गांव लौट आते हैंण् आपको हमारा त्याग नहीं दिखताण् पेट भर अनाज के लिए दुनिया भर की जिल्लत झेलते हैं और इसके बाद भी ट्रेन ड्राइवरए गार्डए जीआरपीए स्टेशन मास्टर सभी को पैसा देते हैंए उनको पालते हैंण् है कि नहीं बाबू ये संतगिरीघ्
शायद दूर कहीं पानी गिरा थाण् लगा कि ठसाठस भरी ट्रेन में भी ठण्डी हवा के झोंके इतरा गये थेण्
संपर्क रू सन्मति इलेक्ट्रीकल्सए सन्मति गलीए
दुर्गा चौक के पासए जगदलपुरए
जिला.बस्तर.494001 ;छत्तीसगढ़द्ध

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