इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 25 मई 2017

सावधान हम ईमानदार है

लतीफ घोंघी
मैं सोचता था कि ईमानदार आदमी नहीं मिलेगा इस युग में । लेकिन वे मिल ही गए । कहने लगे, '' मुझसे बड़ा ईमानदार आदमी आपको इस देश में नहीं मिलेगा । ''
मैंने पूछा, '' क्या करते हैं आप?''
वह बोले, '' बस जी, ईमानदारी करते हैं । समझ लो कि हर काम ईमानदारी से करना हमारा उद्देश्य है । किसी को गोली भी मारते हैं तो ईमानदारी से ताकि उसे ऐसा न लगे कि हम उससे प्यार कर रहे हैं..... और किसी का गला भी काटते हैं तो पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ । ''
मैंने कहा, '' याने कि आप गला भी काट लेते हैं । ''
वे मुस्कराए । कहा, '' हाँ जी, ईमानदारी से गले को काटने का मजा ही कुछ और है । देखिए ना, लोग ऊपर से बड़ी मोहब्बत जताते हैं और अन्दर-ही- अन्दर गला काटते हैं.... .हम वैसे नहीं हैं । गोली मारना है तो बस गोली मारना है -और गला काटना है तो बस गला काटना है । हम ये नहीं देखते कि अन्दर क्या है और बाहर क्या है?''
मैंने पूछा, '' इसके अलावा भी कुछ करते हैं आप?''
उन्होंने मुझे घूर कर देखा । बोले, '' बहुत कुछ करते हैं जी.... .इस देश में सब कुछ पूरी ईमानदारी के साथ । ''
इसके पहले कि में उनसे पूछता कि वे क्या-क्या काम करते हैं वे बोले, '' वोट देते हैं जी पूरी ईमानदारी के साथ । जिससे पैसा लिया, जिसका दारू पिया, जिसका मुर्गा खाया ईमानदारी से उसके चुनाव-चिन्ह पर मुहर: लगाते हैं जी । हमारी ईमानदारी का एक नमूना और देखिए.... .हम किसी का काम बगैर पैसे लिये नहीं करते.... .पहले पैसे गिनवा लेते हैं.... .फिर काम को हाथ लगाते हैं । हम उन लोगों की तरह नहीं हैं कि सामने तो बिना पैसे लिये काम कर दें और उधर पीछे के दरवाजे से पच्चीस हजार रुपए रखवा लें । ' ं
'' याने कि आपके कहने के अनुसार पिछले दरवाजे से पैसे लेना बेईमानी का काम है? और जो लोग इस तरह पैसा लेते हैं वे बेईमान हैं?''
'' हमने कहाँ कहा जी कि वे बेईमान हैं.... .वे भी ईमानदार हैं तभी तो आज सरकार में ऊँचे पदों पर हैं । लेकिन उनकी ईमानदारी का तरीका अलग है । वे बेईमानी नहीं करते लेकिन बेईमानी की रोटी जरूर खाते हैं.... .बेईमानी के पैसों से अपने बच्चों को देहरादून के स्कूल में पढ़ाते हैं.... .बेईमानी के पैसों से अपनी बीवियों को विदेशों की सैर कराते हैं । ''
वे थोड़ी देर रुके और फिर विस्तार से मुझे समझाते हुए बोले '' अब देखिए जी..... आपसे कह दिया कि वे आपका काम कर देंगे..... आपको कह दिया कि वे आपकोn
किसी ऊँची पोस्ट पर बिठा देंगे, लेकिन यह काम उनके हाथ में नहीं है; ऊपर वाले से कहना होगा । फिर आपसे कहेंगे कि ऊपर वाला पचास हजार माँगता है इसलिए वे दु खी है । आपसे यह भी कहेंगे कि ईमानदार आदमी होकर वे इस देश में बेईमानों के बीच फँस गए हैं । उनके हाथ में होता तो वे बिना पैसा लिये आपका काम कर देते । अब यदि आप अपनी तरक्की चाहते हैं तो आप उनसे कहेंगे ही कि चाहे जो हो, - काम जमा दें । आप ऊपर वाले के नाम से पचास हजार एक ब्रीफकेस में ले जा कर उन्हें दे आएँगे । अब ऊपर वाला कौन है यह तो केवल वे ही जानते हैं । ऊपर वाले ने कितने पैसे लिये हैं यह भी केवल वे ही जानते हैं । हम ऐसे नहीं हैं.... .हम नीचे वाले जरूर हैं लेकिन ईमानदार हैं । समझे आप?''
मैं उनसे बात कर ही रहा था कि एक दूसरे ईमानदार आ गए । बोले '' भाई जी इससे बचना । ये साला एक नम्बर का बेईमान है । सही ईमानदार तो केवल मैं ही हूँ । इससे पूछो.... .कल साले ने एक मरीज को अस्पताल में पहुँचा कर डॉक्टर से पाँच रुपए कमीशन के ले लिये । साल। दिन- भर दलाली करता है और अपने आपको ईमानदार बताता है । बोली भाईजी, क्या दलाली खाने वाला ईमानदार हो सकता है?''
तभी पहले ईमानदार ने कहा, '' अबे चोप्प. .साले, कमीशन खाते हैं तेरे बाप का कुछ नहीं खाते । देने वाला देता है और हम ईमानदारी से लेते हैं तो तेरी छाती क्यों फटती है? बेटा, पहले अपने मुँह पर लगी कालिख को साफ करके आ । साले, साहबों को पैसा खिला कर फौजदारी के मामले से छूट गया और यहाँ आकर ईमानदारी बता रहा है? जिस दिन पुलिस ने हेरा-फेरी के जुर्म में गिरफ्तार कर हवालात में बन्द कर दिया था उस दिन कहाँ गई थी तेरी ईमानदारी? बोल? चुप क्यों है?''
दूसरे ईमानदार ने सन्तुलित होकर कहा, '' ये मेरा व्यक्तिगत मामला है और व्यक्तिगत मामले का मेरी ईमानदारी से कोई सम्बन्ध नहीं है । इस देश में लोगों के व्यक्तिगत मामले और ईमानदारी के मामले अलग- अलग होते हैं । सार्वजनिक रूप से मैं आज भी ईमानदार हूँ । कोई मेरी ईमानदारी पर उँ गली नहीं उठा सकता । हट इज माई परसनल मामला । ''
'' बड़ा आया परसन माम् म्म5 इला; 5 वाला! शर्म नहीं आती दिन- भर बड़े अकसरों के पीछे दुम हिलाता फिरता है और अपने को ईमानदार कहता है?''
दूसरा ईमानदार बोला, '' दुम हिलाने से ईमानदारी का कोई सम्बन्ध नहीं है.... .ईमानदारी अपनी जगह है और दुम अपनी जगह है । मैं तेरी तरह नहीं कि गुँडागिरी करके ईमानदार बना रहूँ ।
'' अबे गुँडागिरी करते हैं तो अपने दम पर करते हैं और डंके की चोट पर करते हैं । ये भी हमारा परसनल मामला है, समझा? कोई हमारी ईमानदारी पर कुछ कहेगा तौ हम उसकी जुबान काट देंगे हाँ । ''
मुझे लगा कि उसकी इस धमकी से दूसरा वाला आदमी कुछ कमजोर पड़ रहा है । मैंने दूसरे ईमानदार से कहा, '' आप पीछे मत हटिZd. .ये तो ईमानदारी की लड़ाई है और ईमानदारी के मसले को ले कर पीछे हटना ठीक नहीं है । ''n
दूसरा ईमानदार तैश में आ गया । बोला, '' कौन पीछे हट रहा है? पहले इसे बोल लेने दो । अपने संविधान में सबको बोलने का अधिकार है । यह अपनी बात पूरी कर लेगा तो मैं इसका जवाब दूँगा । ''
पहला ईमानदार बोला, '' अबे तू क्या जवाब देगा । मार्केट में एक पैसे की क्रेडिट नहीं है और कहता है जवाब दूँगा..... अबे पहले समाज में अपनी इज्जत तो बना, बाद में देना जवाब । जिसका उधार लिया उसी का पैसा डुबा दिया और अपने आपको ईमानदार कहता है? अबे ईमानदार बनने का इतना ही शौक था तो उधार क्यों लेता है दूसरों से?''
दूसरा ईमानदार अभी भी सन्तुलित था । बोला, '' उधार लेने का ईमानदारी से कोई सम्बन्ध नहीं है । हम अपने विकास के लिए दूसरे देशों से उधार लेते हैं इसका यह मतलब नहीं कि हमारा देश बेईमान हो गया । उधार उसे ही मिलता है जिसकी हैसियत होती है । तुम्हारे जैसे फटीचर आदमी को कौन देगा? ईमानदारी अपनी जगह है और उधार अपनी जगह है । मैं तेरी तरह नहीं कि किसी को कोई माल दिलवा दिया और बीच में कमीशन मार दिया । शर्म तो तुझे आनी चाहिए । साले हर काम में कमीशन खाता है और अपने को ईमानदार बताता है?''
पहला ईमानदार इस बार ठहाका लगा कर हँसा । बोला, '' अरे वाह रे ईमानदार की औलाद! मेहनत की कमाई को कमीशन कहता है? इस कमीशन के लिए कितना खतरा मोल लेना पड़ता है, कितनी मेहनत करनी पड़ती है, जानता है? अपनी जान जोखिम में डाल कर दो पैसा कमाते हैं और इसे तू कमीशन कहता है? देश में इतने कमीशन एजेण्ट हैं तो क्या वे सब बेईमान हो गए । बेटा कमीशन खाना भी एक आर्ट है । अब मैं भी कहता हूँ कि कमीशन अपनी जगह है और ईमानदारी अपनी जगह है । अब बोल बेटा?''
मुझे लगा कि दूसरा ईमानदार ईमानदारी की बातें करते-करते थक गया है । मुझे लग रहा था कि ईमानदारी के मामले में वह पहले आदमी के सामने समर्पण कर देगा । मुझसे यदि कोई कहे कि दिन- भर ईमानदारी की बातें करो तो सच कहता हूँ कि मैं भी थक जाऊँगा । ईमानदारी चीज ही ऐसी है कि आदमी को बहुत जल्दी थका देती है ।
दूसरा ईमानदार बोला, '' ठीक है.... .शाम को मिलना तब फुरसत से बहस करेंगे ईमानदारी पर । ''
पहले ईमानदार की छाती फूल गई । उसके चेहरे पर ईमानदारी की विजय थी । उसने मुझसे कहा, '' देखो साहब जी.... .मैं अभी भी आपसे कहता हूँ कि केवल मैं ही ईमानदार हूँ । आप मुझ पर विश्वास करते हैं या नहीं?''
मैंने कहा, '' मेरे विश्वास करने या न करने से क्या होगा?''
वह बोला, '' देखो साहब जी, हमारे लिए आप ही पब्लिक हो । और अपना सिद्धान्त है कि कितनी भी गुँडागिरी करो, मारकाट करो, कमीशन खाओ लेकिन पब्लिक को समझा दो कि हम ईमानदार हैं । हमने आपको समझा दिया या नहीं? अब बोलो, हम ईमानदार हैं या नहीं?''
मैंने कहा, '' लेकिन जिस तरह आप दोनों ईमानदार लड़ रहे थे, मुझे लगा कि आप दोनों ही ईमानदार नहीं हैं । ''n
वह फिर ठहाका लगा कर हँसा । बोला, '' साहव जी, ईमानदारी की लड़ाई ऐसी हो होती है । हर आदमी दूसरों को बेईमान सिद्ध करके ही अपनी ईमानदारी स्थापित करता है । वैसे वह आदमी ही ईमानदार था लेकिन वह जब तक आपके सामने मुझे बेईमान सिद्ध नहीं कर देता आप उसकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं करते । ''
मेरा जवाब सुनने से पहले वह .आगे बढ़ गया ।
शाम को मैंने फिर दोनों को देसी दारू की दुकान पर देखा । दूसरा ईमानदार पहले को समझा रहा था, '' अबे फालतू बक-बक कर -रहा था पब्लिक के सामने.... .इस तरह पब्लिक के सामने बक-बक करने से हमारी ईमानदारी किसी दिन खतरे में पड़ जाएगी । और लोगों को पता चल जाएगा कि हम ईमानदार नहीं हैं । ''
फिर दोनों ने देसी दारू की बोतल अपने- अपने गिलास में उडेली और ईमानदारी से पीने लगे
 
(व्यंग्य संग्रह बतरस से साभार)

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