इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 23 मई 2017

बिजली और तूफान

         बहुत समय पहले बिजली और तूफान धरती पर मनुष्यों के बीच रहा करते थे। राजा ने उन्हें मनुष्यों की बस्ती से दूर रखा था।
         बिजली तूफान की बेटी थी। जब कभी किसी बात पर बिजली नाराज हो उठती, वह तड़प कर किसी के घर पर गिरती और उसे जला देती या किसी पेड़ को राख कर देती या खेत की फसल नष्ट कर देती। मनुष्य को भी वह अपनी आग से जला देती थी।
        जब - जब बिजली ऐसा करती, उसके पिता तूफान गरज - गरजकर उसे रोकने की चेष्टा करते। किंतु बिजली बड़ी ढीठ थी। वह पिता का कहना बिलकुल नहीं मानती थी। यहाँ तक कि तूफान का लगातार गरजना मनुष्यों के लिए सिरदर्द हो उठा। उसने जाकर राजा से इसकी शिकायत की।
राजा को उसकी शिकायत वाजिब लगी। उन्होंने तूफान और उसकी बेटी बिजली को तुरंत शहर छोड़ देने की आज्ञा दी और बहुत दूर जंगलों में जाकर रहने को कहा।
        किंतु इससे भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। बिजली जब नाराज होती, जंगल के पेड़ जला डालती। कभी - कभी पास के खेतों का भी नुकसान कर डालती। मनुष्य को यह भी सहन न हुआ। उसने फिर राजा से शिकायत की।
        राजा बेहद नाराज हो उठा। उसने तूफान और बिजली को धरती से निकाल दिया और उन्हें आकाश में रहने की आज्ञा दी। जहाँ से वे मनुष्य का उतना नुकसान नहीं कर सकते थे जितना की धरती पर रहकर करते थे। क्रोध का फल बुरा होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें