अशोक '' अंजुम ''
लम्हा - लम्हा हिसाब रखते हैं
यार भी अब नकाब रखते हैं
उनके हाथों में फिर वही पत्थर
हम हमेशा गुलाब रखते हैं
ये अलहदा है लब नहीं खुलते
यूँ तो हम भी जवाब रखते हैं
सर्द पथराई - सी नज़र लेकर
चन्द उजियारे ख़्वाब रखते हैं
गीत - गज़लों की शक्ल लेता है
दर्द हम लाजवाब रखते हैं
जि़न्दगी उतनी मुँह चिढ़ाए है
लोग जितनी किताब रखते हैं
पता
बगली 2, चंद्रविहार कालोनी (नगला डालचन्द)
क्वारसी बाईपास, अलीगढ़ - 202002 उ.प्र.
लम्हा - लम्हा हिसाब रखते हैं
यार भी अब नकाब रखते हैं
उनके हाथों में फिर वही पत्थर
हम हमेशा गुलाब रखते हैं
ये अलहदा है लब नहीं खुलते
यूँ तो हम भी जवाब रखते हैं
सर्द पथराई - सी नज़र लेकर
चन्द उजियारे ख़्वाब रखते हैं
गीत - गज़लों की शक्ल लेता है
दर्द हम लाजवाब रखते हैं
जि़न्दगी उतनी मुँह चिढ़ाए है
लोग जितनी किताब रखते हैं
पता
बगली 2, चंद्रविहार कालोनी (नगला डालचन्द)
क्वारसी बाईपास, अलीगढ़ - 202002 उ.प्र.
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