श्याम '' अंकुर ''
काम नहीं जो करता कुछ उसका है मधुमास नहीं।
दुनिया को जो ठगता जी उस पर विश्वास नहीं।
मन में जिसके हिम्मत है पर्वत बौने मानो जी,
मंजिल का वह मालिक है बनता यारो दास नहीं।
रोना रोते रहते जी कर्म नहीं जो करते कुछ,
कर्म सदा जो करते हैं उनको दुख कुछ खास नहीं।
मान लिया है दौलत से मुठ्ठी में सब लोग रहे,
ठोकर जग में खाते वे दौलत जिनके पास नहीं।
फूल खिले हैं बागों में मौसम बहुत सुहाना सा,
अंकुर वह ही दुखिया है जिसके मन में उल्लास नहीं।
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