अइसने धमतरी के तीर भंंडारपुर गांव म चैतू गौंटिया के एक ङान गंगा नोनी अउ दू ङान बाबू रहाय। गंगा ह सबो भाई-बहिनी ले बड़े रिहिस। पुरखौती धन के भंडार हा गौंटिया के दिनों-दिन बाढ़त जात रिहिस। ऐ गांव हा शहर तीर म होय के सेती अपन लोग लइका ल गौंटिया ह पढ़इस घलो। पंदरा बछर के उमर म नोनी गंगा ह बीमार परगे। येकर ले वोकर एक गोड़ काम करना बंद कर दिस। गौंटिया ह अब्बड़ इलाज पानी करइस फेर बने होबे नी करिस। बिचारी एक गोड़ ले अपंग बरोबर होगे।
अपन एक ङान बेटी ल चैतू गौंटिया ह बड़ लाड़-प्यार ले रखिस। बेरा बितत गिस, ऐती नोनी ह बिहाव के लइक होगे। नोनी ह अपन पूरतीन बने पढ़-लिख के तियार घलो होगे रिहिस। बिहाव के गोठ चलिस त बने बने सगा सोदर आय फेर गोड़ के अपंग होय के सेती गंगा के बिहाव होवत नी रिहिस। देखत-देखत चैतू गौंटिया हतास होगे। बड़ कोसिस करे कि गरीब परिवार घलो कहूं बिहाव बर तियार हो जही ते जरूवत के सबे जिनिस अपन दमाद ल दूहूं जेकर ले दूनों सुख चैन ले रहीं।
इही बीच दुरूग सहर ले एक ङान गरीबहा परिवार के सगा अइस। ऐ परिवार म घलो दू ङान भाई एक ङान बहिनी रिहिस। बहिनी बड़े होय के सेती बिहाव होगे रिहिस। भाई म बड़े जेकर बिहाव होवैय्या रिहिस तेकर नाव संतोष रिहिस। संतोष नानपन रिहिस तभे ऐकर ददा के इंतकाल होय के सेती महतारी ह पाल पोस के बड़े करिस। ऐकरे सेती जब ले होस संभालिस घर के जिम्मा संतोष उपर आगे। आज संतोष पढ़-लिख के धंधा पानी करत अपन गोड़ मा खड़ा होगे हे।
संतोष अपन गरीबी ला सगा मन के आगू मा रखिस। चैतू गौंटिया ह अपन रूदबा के सेती संतोष ल बड़ लालच देके दमाद बनाय के गोठ करय। सुघ्घर विचार के सेती अपन होवैया गोसइन के रंग-रूप ल नी देखके नारी के सम्मान खातिर संतोष ह बिहाव बर तियार होगे। रीति के मुताबिक चैतू गौंटिया ल संतोष ह अपन नानुक कुटिया ल देखे बर बलइस। चैंतू गौंटिया केहे लगिस-हम लइका के सुभाव ल देखके अपन नोनी ल देवत हन, घर ला देखके नी देवत हन, कहिके हमन विचार ल रखत बिहाव भर राजी होगे।
बिहाव के बाद गंगा ल अपन ससुरार म तालमेल बइठाय म दिक्कत होय लगिस। गंगा के सोच के मुताबिक रहन-सहन, खानपान नी होय ले दुखी रेहे लगिस। ससुरार के सरी बात ल गंगा ह अपन मइके म बतात जाय। जेन कमी गंगा ह अपन ससुरार के बताय तेला चैतू गौंटिया ह पूरा करत जाय। ऐती संतोष ह ठीक उल्टा कोनो काम म अपन ससुरार के सहयोग नी लेना चाहत रिहिस। दमाद हा धीरे धीरे अपन ससुरार के अहसान मा दबत गिस। येकर परिनाम ऐ होय लगिस के गंगा के मइके वाले मन अपन दमाद उपर पूरा हावी होय ल धर लिन। अब संतोष अउ गंगा के विचार म मेल नी होय के सेती ङागरा-लड़ई बाढ़त जात रिहिस। अपन मइके के बल मा गंगा ह संतोष ल घेरी बेरी नवाय के कोसिस करे। दूनों परानी के बीच दरार बाढ़े के चालू होगे।
अब गंगा ह कोनो बूता होय संतोष ल पूछना छोड़के अपन मइके उपर सहारा लेके शुरू कर दिस। संतोष ल पता घलो नी चलत रिहिस। अपन मनखे ला बात बात म गंगा केहे लगिस कि ये घर मा जेन भी जिनिस हे वोहा तो मोर मइके के आय, तुंहर काय हरे तेला बताव? इही बात ह बड़ रूप लेवत चल दिस। सात आठ बछर मा इंकर ङागरा हा विकराल रूप ले डरिस। इही बीच गंगा के दूनो भाई मन के बिहाव होके लोग-लइका वाला होगे। अब चैतू गौंटिया सियाना होय के सेती बेटा बहू मन ल घर के सियानी के जिम्मा दे देहे।
एक घांव अइसने ङागरा-लड़ई होइस तहाने ऐ घर हा मोर हरे कहात संतोष ल गंगा ह घर ले निकाल दिस। संतोष ह समङाात भर ले गंगा ल समङाइस नी मानिस त वोला वोकरे हाल म उहू घर ल छोड़के दिस। ऐती गंगा ह अपन घर ल बेचके मइके में अपन भाई मन ल पइसा ल धराके रेहे लगिस। गंगा ल मइके मा रहात दू तीन बछर बीतगे। बहू मन घर म अपन बेटी ल बइठार के ङान रखव कहिके अपन सास ससुर ल समङााय के कोसिस करें, फेर बेटी के मोह म अपन बहू मन के सुङााव म वोमन धियान देबे नी करिन। पइसा के रहात ले गंगा ल वोकर भाई मानिन। पइसा खतम होइस तहाने वोकर बर धमतरी म किराया के घर के बेवसथा कर दिन। ऐती गंगा के दाई दाद मन घलो अब बेटी ल छोड़ दिन तोला जइसन बने लगय वइसन कर कहिके।
गंगा ह अब किराया के घर म रहात छोटे मोटे काम बूता करत अपन लइका मन ल पढ़ाय लगिस। अब गंगा ल अब पछतावा होवत हे। वोला बीच बीच म लगय कि संतोष मोला लेग जतिस ते बने होतिस कहिके। वोला समङा आगे कि-मेंहा अपन दाई ददा के बुध मा आके का कर परेंव! अब तो गंगा ल काकर अंगना म जांव? सोचे ल परत हे। ऐती संतोष सोच डरे हे तेहां अपन मन के गे हस, तोला आना हे त अपन मन के आ...। का करें अब... गलती काकरो होवय। येती घरो गे... परिवार गे...मनखे गे...घर द्वार गे...आखिर बांचिस का, बदनामी! कथें न, संसार म अइसे घलो मनखे हे जे मन काकरो दुख दरद ल देखके तरस खा जथें। अइसन मनखे मन गंगा ल समङाात किहिन-नोनी काकरो अंगना काम नी आय, टूटहा रहाय ते फूटहा अपने अंगना काम देथे। अब गंगा के आंखी खुलगे...। गंगा ह आधा डर अउ आधा बल ले जइसने संतोष घर के अंगना म पहुंचिस तहाने फफक फफक के रोए लगिस। वोला लगे लगिस, अब मोर ये जग के समाय अंधियारी ले निकल के अपन उजियारी के अंगना ल आज पहिली घांव देखत हंव। संतोष के मन म आज सहीच के संतोष होवत रिहिस, काबर कि वोकर परानी ल आज समङा तो आगे कि बिपत परथे त पइसा-कौड़ी, धन-दौलत, दाई-ददा, भाई-बहिनी कोनो काम नी आय। सुख रहाय ते दुख, काम आथे त खाली अपन घर के अंगना...।
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