अशोक '' अंजुम ''
खेल के परिणा सारे फिक्स हैं।
फिक्स है ईमान सारे फिक्स हैं।
आपकी बारी भी आएगी हुजूर,
मैकदे में जाम सारे फिक्स हैं।
किस तरह का चाहिए वर आपको,
बोलिये भी दाम सारे फिक्स हैं।
और बढ़कर एक भी तिनका नहीं,
दफ्तरों में काम सारे फिक्स हैं।
तू भले प्रैक्टिस दिन - रात कर,
नौकरी को नाम सारे फिक्स है।
फेंक कर मजनूं का खत लैला कहे,
क्या पढूँ पैगाम सारे फिक्स है।
आप मत इतनी सफाई दीजिये,
आप पर इल्जाम सारे फिक्स है।
2
प्यार है, इजहार है बाजार में।
इश्क का व्यापार है बाजार में।
कैद दफ्तर में रहे सप्ताह भर,
और अब रविवार है बाजार में।
देखकर विज्ञापनों का बाँकपन,
रोज कुल परिवार है बाजार में।
ये भी लें, हाँ ये भी लें, हाँ ये भी लें,
बस यही तकरार है बाजार में।
बिक रहा है आम जनता का सुकूँ
और हर सरकार बाजार में।
क्यों घरों में आज सन्नाटा लगे,
और हर त्यौहार है बाजार में।
एक जादू हर तरफ तारी हुआ,
खींचता हर बार है बाजार में।
पता
सम्पादक - अभिनव प्रयास
गली - 2, चन्द्र विहार कॉलोनी (नागला डालचन्द)
क्वारसी बाईपास, अलीगढ़ - 202001
मोबा. 09258779744
मेल : ashokanjumaligarh@gmail.com
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