इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

कर्जा

रवि श्रीवास्‍तव
       लहराती फसल कितना सुकून देती है। रमेश अपने बेटे से कहता हुआ खेत को देख रहा था। हर तरफ  से घूम कर अपनी फसल को देखा। मन में सोच रहा कि भगवान तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूं। तभी पीछे से एक आवाज आती है- अरे रमेश क्या बात है, आज अपने बेटे को खेत दिखाने लेकर आए हो। पीछे मुडकर देखा तो सुखीराम खड़ा था। किसान हर सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले अपनी फसल के दर्शन करना चाहता है। वैसे आप को बता दे नाम तो सुखीराम है, पर जिंदगी में सुख तो था नही बस राम ही राम था। हां भाई सुखीराम, मैंने सोचा चलो बेटे सूरज को भी अपनी मेहनत दिखा लाते हैं।
       अब क्या था दो किसान आपस में मिल गए थे। बस खेती किसानी की बात शुरू। सुखीराम इस बार की फसल तो अच्छी है, हां भाई मेहनत करते हैं तो क्यों नही होगी। दोनों हंस पड़ते है। हसें भी क्यो न उनकी मेहनत रंग दिखा रही थी? गांवों में जो हमेशा होता आया है। दो लोग मिल गए तो दो दिन गांव के लोगों का हाल चाल पूछना शुरू हो जाता है। अच्छी बात नही तो कम से कम बुराई ही करने लगते हैं।
       फलाने ने ऐसा काम किया, ढमाके के लड़के ने तो नाक ही कटा ली है। बगल के गांव की नीच जाति की लड़की को लेकर शहर भाग गया है। ऐसी ही कुछ बातें रमेश और सुखीराम के बीच चल रही थी। तभी रमेश ने सूरज से कहा तुम घर चले जाओं, स्कूल जाना है। मां से कहना मैं देर से घर आऊंगा। खेत का कुछ काम निपटा के आऊंगा। सूरज का स्कूल घर से करीब 5 किलोमीटर दूर था।
       आठवीं कक्षा में सूरज पढ़ता था। उसके बाद फिर तो पढ़ाई के लिए और दूर जाना पड़ेगा। रमेश ने कहा था कि इस बार उसे इस बार साइकिल दिला देगा। सूरज पढ़ने में भी काफी अच्छा था। इसलिए रमेश भी उसे आगे पढ़ाना चाहता था। सूरज ने भी अपने पिता से कह दिया था कि इतनी दूर पैदल स्कूल जाने में काफी परेशानी होती है। एक साईकिल दिला दो।
       - '' अरे भाई सुखीराम इस बार का क्या हिसाब किताब है। का बताइ रमेश भैइया अगर सब कुछ बढिया रहैल तो खाने के तंगी न होई। कर्जा भी चुकाइ देबय। यारए किसानों की जिंदगी भी अजीब है। जैसे लोग जुआ खेलते हैं। वैसे ही हम फसल उगाने के लिए जुआ खेलते हैं। कम बारिश तो पानी के लिए तरसे। बेमौसम हुई तो फसल बर्बाद। अरे रमेश भईया जो किस्मत मा लिखा होत है वो तो हो के रहे।''
       - '' भगवान पर किसका बस हवय। सो तो है भइया। वैसे इस बार कितना कर्जा है तुम्हार। पिछली बार नुकसान खाने के बाद इस बार ज्यादा कर्जा लेने की हिम्मत नही हुई। फिर भी इस बार का 20 हजार और पिछली बार का 15 हजार बाकी है। अरे सुखीराम पिछली बार का भी बकाया है।''
       - '' हां भइया। फसल भी ज्यादा ठीक नही थी। फिर भी कर्जा चुकाने लायक थी। अरे भाई परेशान होने की जरूरत नही है सब ठीक हो जाएगा। मैने भी इस बार ज्यादा कर्जा ले लिया है। खेत में पानी के लिए पम्पिंग सेट ले लिया है। और बोरिंग भी कराई। बैंक से मैने पचास हजार का कर्ज लिया और मुखिया जी से 20 हजार का। अरे रमेश भइया मुखिया जी से भी कर्ज ले लिया है। हां ब्याज पर दिया है। बीबी की तबियत ख़राब हो गई थी। तो उधार लिया था ब्याज पर। चलो भइया अब घर चलते हैं। धूप भी तेज हो गई है। घर मलकिन इंतजार कर रही होंगी।''
- '' चलो सुखीराम चलो ।''
       रमेश और सुखीराम अपनी लहराती फसल को देख चेहरे पर खुशी लेकर एक गीत गुनगुनाते हुए जा रहे थे। जो कि वो हमेशा कहते थे। कुछ इस तरह से दृअब बन जावेए हम भी तौ सेठए कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब, रंग लाई है मेहनत, लहराइ रहा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब। सर पर गउंछा बांधे दोनो किसान अपने घर के लिए निकल पड़ते हैं। अच्छा राम राम भइया। राम - राम।
       फसल कटने में बस कुछ दिन ही शेष रह गए थे। कुछ लोगों की फसल कटनी भी शुरू हो गई थी। किसानों की फसल कटने लगती है तब से उसके दिल में जबरजस्त उत्साह होने लगता है। बस वो यही सोचता है कि जल्दी से फसल घर आ जाए।
        रमेश जैसे ही सड़क से घर की तरफ  मुड़ता है। सामने नीले रंग की खड़ी कार की झलक मिलती है। घर के सामने कार देख चौक जाता है। मन में सोचता है कौन आया होगा। वैसे ही गांवों ने कार कहा ज्यादा देखी जाती हैं। कुछ सम्पन्न लोगों को छोड़कर। लेकिन ये कार दूर से ही चमचमा रही थी। रमेश सोच पड़ा में था। उसके किसी रिश्तेदार की तो होगी नही।
       वह अच्छे से जानता था कि सबकी हालत क्या है। साइकिल खरीदने के लिए तो उधार लेना पड़ता है। तो कार कौन लेकर आ सकता है उसके घर। एक तरफ  उसे डर था कि कही बैंक को लोग तो नही हैं। अभी से लोन के लिए परेशान करने आ रहे हैं। वो जल्दी से घर पहुंचना चाहता है, तभी ओ रमेश भइया का हाल चाल है। बस बढ़िया है भइया। हालचाल पूछने वाला कोई और नही गांव के अध्यापक महोदय थे।
        - '' भइया आपका लड़का पढ़ने में काफी तेज है। उसे आगे तक पढ़ाना ताकि गांव के साथ - साथ आप का नाम रोशन कर सके। ''
- '' जरूर भइया। चले भइया थोड़ा जल्दी म है घर पर कोई आवा अवैह।''
- '' ठीक है, पर हमार ई बात जरूर याद रखना।''
- '' ठीक है।''
        - '' अरे रमेश '' रामू काका की पुकार - '' मुखिया जी का लड़का आपका इंतजार कर रहा है। बहुत देर से आया हुआ है। जाओ जल्दी से।'' रमेश जैसे ही घर के पास पहुंचता है। जिस कार के बारे में वो सोच रहा था, जो उसके लिए रहस्य बना हुआ था उसका पर्दाफाश हो चुका था। वो चमचमाती नीले रंग की कार गांव के मुखिया की थी। अपने बेटे को जन्मदिन पर उपहार में दी थी।
        वही कार लेकर अपने दोस्तों के साथ वह घूमता था। और वही कार लेकर आज रमेश के घर पर आया था। मुखिया के लड़के का दोस्त कहता है। लो आ गए महराज। बड़ी देर से इंतजार था। प्रकट तो हो गए। मुखिया का लड़का कहता हैए रमेश भाई पिता जी ने भेजा है।
       - '' उधार में जो रूपया लिया था आज उसका एक महीना पूरा हो गया है। 10 टका ब्याज मिलाकर 22 हजार हो गया है।''
        रमेश तो हक्का बक्का रह गया। पैसे का इंतजाम वो कर नही पाया था। क्या जवाब दे वो। दबे मन से रमेश ने बोला - '' भइया कुछ दिन और दे दो।''
       तभी मुखिया के लड़के ने कहा - '' मूलधन नही तो ब्याज ही दे दो भाई।''
    - '' नही है भइया।'' रमेश ने अपनी घरैतिन से बात की। उसने जोड़.तोड़ के 500 रूपए बचा रखे थे। इज्जत को बचाते हुए उसने ये मुखिया के लड़के को पैसे दिए। 500 रूपए देख लड़के ने अकड़ कर कहा - '' भीख नही मांग रहा हूं। कर्जा मांग रहा हूं।''
       रमेश ने कहा साहब - '' अभी इतना ही है, अगले महीने धीरे - धीरे सारा चुका दूंगा। बड़े घराने के लड़के क्या जाने गरीबों का हाल। बस मुखिया जी ने कार खरीद दी और वसूली का काम पकड़ा दिया। वसूली करो और जेब खर्च चलाओं।'' रमेश का इतना कहना कि '' अगले महीने से सब ठीक हो जाएगा। '' उतने मे आग बबूला होकर कहा  - '' क्या अगले महीने तेरी लाटरी निकलने वाली है। अभी तो जा रहा हूं पर अगले महीने से कम से कम ब्याज का पैसा तो लेकर जाऊंगा।'' कार को उसने ऐसे मोड़ा जैसे किसी टैलेंट शो में अपना हुनर दिखा रहा हो।
       गाड़ी घूमी बड़ी तेजी से घूंऊऊऊऊ और एक दो तीन हो गई। रमेश वही काफी देर तक खड़ा रहा। सोच रहा था भगवान जिसे पैसा देते हो उसे थोड़ी सी इंसानियत भी दे दिया करो। 20 साल का लड़का आज इस तरीके से बात कर रहा था। रमेश की पत्नी ने कहा - '' क्या सोच रहे हो। चलो हाथ पैर धो लो, खाना लगा देती हूं। हम गरीबों की किस्मत में तो ये सब ऊपर से लिखा होता है। जी तोड़ मेहनत करो फिर भी खाने के लाले पड़े रहते है।'' इतना कहकर वह अंदर चली जाती है।
रमेश हाथ पैर धोकर वापस आता है। और खाने बैठ जाता है। दोनों आपस में बात करने लगते हैं। रमेश कहता है कि इस बार की अपनी फसल काफी अच्छी है। पूरा कर्जा खतम कर देबय। सूरज का साइकिल दिला देबय। मुखिया का भी और बैंक का भी लोन चुका देबय। बस कुछ दिनों की बात हैं। फसल पक रही है। बैंक से याद आया। कितना मुश्किल होता है लोन पास करवाना।'' रमेश अपनी घरैतिन को बता रहा है। बैंक वाले ने कितना दौड़ाया था।
       हर साल फसल की पैदावार ठीक से सिंचाई न होने से खराब हो जाती थी। रमेश जिसे लेकर काफी चिंतित रहता था। एक दिन वो बाजार गया हुआ था।
       वहां एक नुक्कड़ नाटक के जरिए सरकार खेती किसानी की जानकारी दी जा रही थी। कुछ सरकारी लोग वहां खड़े थे। रमेश भी देख रहा था। जब नाटक खत्म हो गया तो वो सरकारी अफसर से खेती के बारे में बात करना चाहता था।
       पर एक डर था उसके मन में पता नही क्या बोलेंगे। कही फटकार दिया तो भरे बाजार झेप जाएगे। फिर भी रहा न गया। आखिर हिम्मत कर के उसने उस सरकारी अफसर से बात कर ली।
रमेश - '' साहब एक सवाल हैए बुरा न मानों तो कहें ''
       सरकारी अफसर - '' बड़े प्यार से बुरा क्यों मानेगें, आप सबकी सहायता के लिए तो हम यहां आएं हैं। बताओं क्या जानना चाहते हो बेझिझक।''
       रमेश- '' साहब, हम खेती तो करते हैं ,फसल शुरू में सही रहती है। लेकिन बाद में पानी की कमी से पैदावार कम हो जाती है। साहब इ परेशानी बहुतय बड़ी है हमरे लिए। मेहनत से हम नही पीछे हटते। पर हर साल इस वजह से गच्चा खा जाते हैं। इय परेशानी हमरे नही करीब - करीब सारे गांव की हैं। नहर का जो पानी आता है उसे दबंग लोग जब तक अपनी खेतों की सिंचाई नही कर लियत हम गरीबों को नही दियत। जब हमार सबकय नम्बर आवत है तो नहरिया टूट जात है। मतलब पानी कम होइय जात है जो कि खेत तक नही पहुंच पावत है। साहब ईकय लिए कौनौं जानकारी हुअय तो बताइ दियव आप।''
       सरकारी अफसर- '' ये तो बहुत बड़ी परेशानी है कि नहर का पानी आप सबकों नही मिल पाता है। ज्यादा घबराने की जरूरत नही है रमेश, सरकार एक योजना चला रही है। बैक से लोन पास करा कर एक पंपिंगसेट खरीद लो और बोरिंग करा लोए मेहनत करो फसल अच्छी होगी तो बैंक का लोन चुका देना। इसके लिए अपनी किसान बही लेकर बैंक जाओं और दिखाकर लोन पास करा लो।''
        रमेश- '' धन्यवाद साहब जीए इतना कछु बतावय के लिए।''
       सरकारी अफसर - '' अरे ये तो मेरा काम है भाई। सरकारी स्कीम को किसानों तक पहुंचाना।''
       अब क्या था रमेश के मन में उस सरकारी अफसर की बात बैठ गई थी। जल्दी से सब्जी खरीदी और घर वापसी करने लगा। रास्ते भर बस यही बात सोच रहा था। जो सरकारी अफसर ने बताई थी।
घर पहुंचाते ही रमेश ने थैला अपनी पत्नी को पकड़ाया। और कहा आज वो बहुत खुश है। तभी आवाज आती है चिल्लाने की - '' सब्जी क्या लाए हो। जो कहा गया था वो नही लाए। घर में आलू एक भी नही है। और लाए भी नही हो। इतनी क्या खुशी बट रही थी। जो सिर्फ  प्याज और टमाटर भर ले आए हो। अब खाओ इसे कच्चे। खाना नही पकाऊंगी।''
       रमेश बुत की तरह चुप - चाप खड़ा सुन रहा था। सुने भी क्यों नही उसे इतनी खुशी थी सरकारी अफसर की बात से कि वह आलू की जगह प्याज भर ले आया था।
       अब उसके घर की गृहमंत्री नाराज थी। घर के गृहमंत्री पर आखिर किसका बस चलता है। ज्यादा बोल दो तो खाना नही बनेगा। रात में फिर तारे गिनने पड़ेगें। थोड़ी देर बाद जब रमेश की घरैतिन का गुस्सा शांत हुआ तो रमेश से पूछा कर बात थी।
       रमेश ने कहा- '' नाराज हुअय से पहले तो दुसरव की सुन लिया करव। माना कि हम आलू लाऊव भूल गइन रहय । लेकिन हुआ कुछ सरकारी अफसर खेती की जानकरिया दियत रहे। उनहिन का सुनत रहिन और फिर जल्दी -जल्दी मा भूल गइन।''
       रात में दोनों बात कर रहे थे, वही जो सरकारी अफसर ने कहा था। अब क्या था, रमेश का सपना पूरा होने वाला था। बस यही सपने देख कर वह उस रात ठीक से सो नही पाया था।
       सुबह उठते ही वह खेत की तरफ गया तो वहां सुखीराम से मुलाकात हुई। उसने बाजार वाली पूरी बात बताई। सुखीराम ने कहा - '' भइया अगर ऐसा होय जात तो बहुतय बढ़िया रहत।''
       - '' लेकिन भइया हमरे पास ज्यादा जमीन नही हवय सो हम का करब लोन लय के। रमेश भइया तुमहरे पास तो हवय तुम लय लियव। हमरो काम चल जाए। और कमाई का धंधा भी बन जाएगा।''
       - '' देखिथय सुखीराम भइया।''
       दूसरे दिन किसान बही लेकर रमेश बैंक जाता है। लोन के बारे में पता करता है। सारी जानकारी लेकर वापस आता है।
       तीसरे दिन सारे कागज लेकर घर से खुशी - खुशी निकलता है। जैसे आज ही सब कुछ काम कराकर पैसा लेकर आएगा। और कल सारा सामान खरीद कर काम शुरू करा देगा।
       बैंक पहुंचते ही रमेश ने मैनेजर से मिलना चाहा। लेकिन मैनेजर साहब बिना काम के व्यस्त थे। तीन - चार घण्टे के लम्बे इंतजार के बाद रमेश का नम्बर आया।
       रमेश ने बैंक मैनेजर के पूरे कागज दिखाए। और कहा - '' साहब लोन चाहिए।''
       बैंक मैनेजर उसे ऊपर से नीचे तक देखता रहा। और बोला - '' कितना चाहिए।''
       रमेश ने - '' कहा साहब 50 हजार लोन कर दियव।''
       बैंक मैनेजर - '' चलो कल आना।''
       रमेश उठा और चलता बना। बाहर आकर सोचा कल क्यों बुलाया है।
       दूसरे दिन रमेश फिर बैंक पहुंचा, फिर से वही फरमान।
       अब लगातार वह बैंक जाता रहा और वही फरमान सुनता रहा।
       एक दिन उसने पूछा - '' साहब कितना दौड़ाओंगे, लोन काहे पास नही कर रहे हो।''
       बैंक मैनेजर - '' रमेश तुम्हारे कागज तो सही हैं पर हमें जो कागज मिलना चाहिए वो नही हैं।''
       नादान रमेश मैनेजर की बात को नही समझ सका। और फिर फरमान सुन वापस आ जाता है। धीरे.धीरे इस बात को महीने बीतने वाले हैं। रात को सारी बात उसने अपनी पत्नी को बताई।उसकी पत्नी को सारी बात समझ में आ गई। उसने कहा - '' मैनेजर पैसा मांग रहा है। हमें इसलिए आजकल लगा रखा है।''
       अगले दिन रमेश फिर बैंक पहुंचा। तो चपरासी ने कहा - '' फिर आ गए। लोन ऐसे पास नही होता। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हैं। नही तो चक्कर लगाते रहो।''
       रमेश अब पूरी तरह समझ चुका था कि पैसे देने पड़ेगे।
       मैनेजर रमेश को देखते ही मिलने से मना कर दिया था। रमेश ने जैसे - तैसे मिलने का एक मौका खोज लिया। रमेश -'' साहब हमें समझ आ गया।''
       बैंक मैनेजर - '' चलो देर से ही पर अकल तो आई।''
       रमेश - '' साहब लोन पास करने में कितने रूपए देने पड़ेगें।''
       बैंक मैनेजर - '' 50 हजार का लोन है तो 15 हजार देना पड़ेगा।''
       रमेश - '' साहब गरीब हैं इतना नही दे पाएगें।''
       बैंक मैनेजर - '' देखो रमेश ये तो बहुत कम है। नही तो लोग आधा लेते हैं। हम तो फिर भी 15 ही मांग रहे हैं। सोच लो आज ही पास कर दूंगा। वरना एक हफ्ते की छुट्टी पर जा रहा हूं।''
       रमेश ने कहा- '' ठीक है साहब कर दो पास।'' फटाफट दस्खत किए गए पेपर पर और 50 हजार रमेश को दिए गए। जिसमें से 15 हजार काट लिए गए।
       रमेश उस पैसे को लेकर घर आता है। और पत्नी से कहता है कि 50 में से 35 हजार मिले 15 हजार बैंक मैनेजर ने ले लिया। सरकारी स्कीम के बावजूद ये हाल है बैंकों का। अगले दिन से बोरिंग का काम शुरू करा देता है। बोर होने के बाद पम्पिंग सेट खरीदता है। रूपए तो कम पड़ गए थे। तो रमेश पत्नी के गहने के सुनार के यहां गिरवी रख देता है।
       अब अपनी फसल को रमेश पानी ठीक तरीके से दे पा रहा था। और दूसरों के खेत में पानी लगाने के लिए उसने उसे कारोबार बना लिया। जिससे उसने पत्नी के गहने तो गिरवी से छुड़ा लिए थे। लेकिन गांव के लोगों के पास स्कीम पहुंचते ही सबने रमेश की तरह लोन पास करवा कर अपना खुद का बोर और पम्पिंग सेट खरीद लिया।
       रमेश का व्यापार थम सा गया बस अपने काम के लिए रह गया था। साग सब्जी का खर्च जो उससे निकल आता था वह भी बंद हो गया।
       रमेश ये सारी बातें अपनी अर्धागिंनी को बता रहा था। कि स्कूल से सूरज वापस आता है। रमेश के गले लगकर कहता है, पिता जी आज मैं बड़ा खुश हूं। रमेश क्यों भाई क्या हो गया। हेड़ मास्टर ने सबके सामने मुझे शाबासी दी। स्कूल में अधिकारी लोग आए थे। वो मेरी कक्षा में आए और कविता सुनाने को कहा था। मैने झट से उठकर कविता सुना दी। रमेश कौन सी सुनाई थी।
       अरे आप को नही पता जो आप रोज गातें हैं। रमेश अंजान बनकर कौन सी है जरा हमें भी तो सुना दो।
सूरज ठीक है सुनाता हूं। अब बन जा बे हम भी तौ सेठ कर्जा चुकाइ देबए कर्जा चुकाइ देब, रंग लाई है मेहनत, लहराइ रहा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब।
       रमेश -वाह क्या बात है सूरज।
       सूरज - पिता जी स्कूल बहुत दूर है, आने जाने में समय भी लगता है और मै थक भी जाता हूं।
       रमेश - बस कुछ दिन की बात है बेटा। फसल कटते ही साइकिल दिला दूंगा। सूरज खेलने चला जाता है।
       रमेश अपनी पत्नी से कहता है - अरे सुखीराम भी मिला था। हमने फसल की सिचांई में उसकी मद्द की थी। उसकी भी फसल काफी अच्छी है। काफी खुश था। लेकिन उस बेचारे ने भी 20 हजार खेती के उधार लिए हैं। और 15 हजार बैंक का पिछला बाकी है। बेचारा हमेशा दुखी रहता है।
      खाने के लाले पड़ जाते हैं उसके। इस बार फसल अच्छी है वो भी अपना कर्जा चुका देगा। पिछली बार तो गल्ला मण्डी में खुले में उसका अनाज पड़ा रहा। और बारिश में भीग गया था। जिसे फिर मण्डी में खरीदा भी नही गया।
       वह दर दर भटकता रहा। अनाज कही नही खरीदा गया। सारा अनाज सड़ चुका था। सुखीराम जिसे बेचकर अपना कर्जा उतारना चाहता था वो तो हुआ नही। ब्लकि खाने के लिए खरीदना पड़ रहा था। किस्मत की मार तो देखो।
       रमेश की पत्नी ने कहा होनी को कौन टाल सकता है। इस बात को दो तीन दिन बीत गए थे। रमेश तीन दिन से खेत नही गया। उसकी तबियत खराब है। सूरज खेत देखकर चला आता है। दोपहर को एक आवाज आती है। रमेश भइया ओ रमेश भइया। रमेश बाहर जाता है तो देखता है सुखीराम होता है। का बात है भइया आजकल खेत नही आवत हो।
       रमेश- अरे भइया दो - तीन दिन से तगड़ा बुखार था। इसलिए नही जात रहिन। सूरज का भेज दियत रहिन देख आवत रहा।
       सुखीराम - भइया अगल - बगल के फसल कट गई है। अपनव फसलिया पक गई है, लोग मशीन से कटवाय रहे। हम सोच रहिन अपनव फसल मशीन से कटवाय लिया जाए। मौसम का कौनौ भरोसा नही ना।
रमेश - हां काहे नही, बस थोड़ा तबियत सही होय जाय।
       - ठीक है भइया, तो दोइ दिन बाद मशीन आए तो फसल कटा दिया जाए। अच्छा भइया जयराम। जयराम सुखीराम।
        रात का खाना खाकर रमेश सोया हुआ था। हजारों ख्वाइशें लेकर नींद से सोया रमेश की आंख अचानक तेज आवाज से खुलती है। वह चौंक जाता हैं। बाहर आकर देखता है तो उसके पैरों को तले की जमीन खिसक जाती है। वह एक बुत की तरह खड़ा रहता है।
       उसकी पत्नी उसके पीछे खड़ी है। आधी रात में उसके आँखों से आंसू छलक रहे थे। उसे सुखीराम की इक बात याद आती है। मौसम का कौनौ भरोसा नही ना।
       ये तेज आवाज पानी बरसने के साथ तेज हवा की थी। साथ में ओले भी गिर रहे थे। बस रमेश के दिल में अपने खेत के बारे में चिंता सता रही थी। आखिर लहराती फसल जिसे वह एक हफ्ते पहले करीब देखा था। वो बर्बाद हो रही थी।
       उसकी पत्नी भगवान को मनाने में लगे थी। बारिश को बंद कर तो प्रभु। पर भगवान भी जैसे किसी जिद पर अड़े थे। बारिश रूकने का नाम नही ले रही थी।
      चार घण्टे लगातार बारिश और ओले के बाद भगवान को थोड़ी दया आई। सुबह करीब 6 बजे बारिश तो कम हो गई थी। पर हवा चल रही थी। सभी किसान सुबह होते ही खेत की तरफ  भागते नजर आए।
रमेश भी खराब तबियत में अपनी फसल देखने भागता हुआ खेत पहुंचा। वहां खड़े किसानों के दिल से खून के आंसू गिर रहे थे। जो तन मन धन से फसल उगाने में मेहनत की थी सारी एक दिन के अंदर चौपट हो चुकी थी।
रमेश अपने खेत के पास पहुंचता है। फसल की हालत देखकर वही गिर पड़ता है। कल तक जो फसल लहरा रही थी। आज वो पानी में तैर रही थी।
      सुखीराम भी वही था। रमेश को सभांलते हुए घर लेकर आता है। उसकी हालत काफी खराब होती है। बस एक ही बात कह रहा था। बर्बाद हो गइन, बर्बाद हो गइन।
       बुखार भी तेज हो गया था। डॉक्टर को बुलाया गया। दवा देकर डॉक्टर चला गया और कहा रमेश का ख्याल रखना। काफी आघात दिल पर लगा है।
       उस रात रमेश सो नही पा रहा था। बस बैंक के लोन कैसे चुकाऊंगा। मुखिया का कर्जा कैसे दूंगा। सूरज के लिए वादा किया था। साइकिल लाने का वो कहा से लाऊंगा। जिस फसल पर नाज था वो तो अब रही नही।
दूसरे दिन लोगों में ख़बरे आ रही थी। फसल खराब और कर्जा होने से फलाने ने आत्महत्या कर ली है। रमेश के दिल में ये बाद बैठती जा रही थी। मुखिया के बेटे का अल्टीमेटम भी मिल चुका था। बैंक लोन की भी वसूली होने वाली थी। दिन.रात बस यही सोचता रहा। आखिर करे तो क्या।
       उस रात रमेश के सब्र की आखिरी रात थी। उसने सबके सो जाने के बाद वही काम किया जिसका डर था। बाहर गया रस्सी उठाई और कमरे में फंदा बनाया। खुदकुशी के पूरे विचार से वो आगे बढ़ता रहा। उसने फंदे को तैयार कर लिया था।
       बस देर थी गले में पहनने की। बिना सोच विचार के कि मेरे जाने के बाद इस परिवार पर क्या गुजरेगी। जो कर्जा लिया उसके लिए ये कितना परेशान होगें।
       गले में फंदा जैसे ही डाला, एक बिल्ली ने सारा प्लान चौपट कर दिया। दूध रखे बर्तन को गिरा दिया। जिससे सूरज की आंख खुल गई थी।
       वो अंधेरे मे देखता हुआ पहुंचा तो सामने अपने पिता को फंदे पर देखता हुआ जोर से चिल्लाया - पिता जी ये क्या कर रहे हैं। मां देखों पापा को। फांसी लगा रहे हैं। रमेश की पत्नी नींद से उठकर भागती हुई वहा पहुंची।
तभी सूरज अपने पिता से कह रहा था, पिता जी हमे साइकिल नहीं चाहिए। हम पैदल रोज स्कूल जाएगें। हम पढ़ाई भी छोड़ देगें। कर्जा चुकाने के लिए कंमाएगें। आप पिता जी परेशान मत हो। ऐसा काम मत करो। उधर रमेश की पत्नी बिलखती रोती कहती है। आप तो फांसी लगा लोगे पर हमारा क्या होगा। कभी सोचा है, हमें लोग कितना परेशान करेंगे। मुखिया का लड़का और बैंक वाले हमारा जीना हराम कर देगें। आप तो चले जाएगें। मुझे अपनी परवाह नही है मैं भी जान दे सकती हूं। पर सूरज का ख्याल है दिल मे। जो हमारा आंखों का तारा है। हम भी आप के साथ मजदूरी करेंगे। और कर्जा चुका देगें।
        रमेश के आखों में आसूं बहते जा रहे थे। आज वह अपने आप को काफी नीचा महसूस कर रहा था। सोच रहा था कि मैने कितना गलत कदम उठा लिया था। लोग मेरे परिवार पर हसंते। और परेशान करते। मै मेहनत मजदूरी करूंगा। सारा कर्जा चुकाऊंगा। जीवन एक बार ही मिलता है। पर आज मुझे दोबारा से मिला जिसका फायदा उठाऊंगा।
       धीरे - धीरे रमेश के खुदकुशी के प्रयास की बात आग की तरह आग में फैल गई थी। लोग रमेश के घर आने लगे थे। उसे समझाने। सुखीराम भी आया था। उसने कहा कि भइया मुझे देखों हर बार किस्मत लेकर रोता हूं। पर जीता हूं कमजोर नही हूं कि खुदकुशी कर लूं।
       आप भी कमजोर मत बनों। इस बार नही तो अगली बार। खेती तो जुए का खेल है। इस बार रोज कमाएगें। और मजदूरी कर कर्जा भी चुकाएगे। मेहनत से क्या डरना।
       रमेश की आंख में आंसू थे। वो वही सुखीराम है जिसे नाम के अनुसार कभी सुख नही मिला। फिर भी कितना खुश है।
       तभी दूर से गांव के मुखिया जी आते दिखाई दिए। उन्हें भी ये खबर पता चल चुकी थी। रमेश ने मुखिया को आते देखा तो सोचा ये देखो कर्जा वसूलने वाले रहे हैं।
       मुखिया - का रे रमेशवा, इ का सुन रहिन है तू फांसी लगा रहा था। अबे फसल बर्बाद हुई है और तू अपना परिवार बर्बाद कर रहा है। फसल का तुमहरी ही खराब हुई बहुतन की खराब भय, सब फांसी लगा लेहियव तो खेती किसानी कौन करे। पूरे गांव की फसल खराब हुई है। सुखीराम को देखो दो साल से मेहनत मजदूरी कर कर्जा चुकाय रहा और परिवार का पेट भी पाल रहा है। तोहसे य उम्मीद नही थी। अपने बीबी और बच्चे का ख्याल तो कर लो।
       रमेश झट से उठता है और मुखिया के पैर पकड़कर माफी मांगता है। और कहता है हम मेहनत और ज्यादा करके आप का कर्जा चुका देबय।
       मुखिया - अरे नहीं पहले तू बैंक का लोन भर दिया। हमरे कर्जा की चिंता न करा। जब होगा तो दे देना वो भी बिना ब्याज के। उस दिन मेरा लड़का तुहरे हियासे कर्जा वसूल को लौटा रहा था। तो कार का एक्सीडेंट हो गया। जिसमें मेरा लड़का अब चल नही सकता। बहुत हो गया।
       सूत का पैसा हमने सबके सूत मांफ कर दिए है। जब जिकरे पास होगा। हमरा मूलधन वापस कर दे बस। इतना कहकर मुखिया वहां से चलते बने।
       रमेश मन में सोच रहा था। कितनी बड़ी गलती की थी उसने। सूरज की तरफ  देखकर कहता है - वाह पुततर तुने तो मुझे दुसरी जिंदगी दी है। इस बार साइकिल तो तोहरे लिए हम लाएंगे चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े। और बैंक का लोन भी।
       सुखीराम की तरफ देखते हुए कहता हैं - किस्मत में जो नहीं, उस पर काहे का खेद, ए रंग लाएगी मेहनत। लहराइगा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब।
       दोनो हंसने लगे। रमेश को अपनी गलती का ऐहसास हो चुका था।

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