इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 29 अगस्त 2015

हरम

अजय गोयल  
        वेटिंग हॉल में टंगी गुलाम भारत की याद दिलाती दिल्ली दरबार की जीवन्त आदमकद पेंटिंग होटल में आने वाले को क्लीन बोल्ड कर देती। पहली नजर में सकपकाये आगंतुक को लगता कि बरतानिया के किंग जॉर्ज और रानी मेरी उसके स्वागत के लिए वर्षों से बैठे - बैठे पथरा गये हैं। उन दोनों के पीछे सजे - धजे खड़े और अपनी - अपनी पगड़ियों में बँधे भारतीय राजा महाराजे उनको लाँघने के लिए नाकाम आतुर लगते।
        दस घंटे की लंबी सड़क यात्रा के बाद पंकज शिमला के उस होटल के कमरे में जाकर आराम करना चाहता था जबकि उसका बेटा मुन्ना माँ से अपने पालतू ब्लैकी बिल्ले की बातें करता हुआ थका नहीं था। बिटिया पावनी चुपचाप अपनी बार्बी डॉल के साथ बैठी रही। उसकी चुप्पी पापा पंकज को चुभ रही थी। जबकि ऐसी यात्राओं में पावनी मोबाइल फोन पर गूगल मैप खोलकर रास्तों का अता - पता बताती रहती। उसका सपना एक जीती - जागती बार्बी बन जाने का था। वह अक्सर आई एम ए बार्बी डॉल। गीत गाना पसंद करती। वह अपने लिए बार्बी डॉल जैसा ड्रीमरूम बनवाना चाहती। जैसा बार्बी की कहानियों में मोबाइल फोन की स्कीन पर झाँकता। इंटरनेट से डाउनलोड कर वह बार्बी की कहानियाँ देखना पसंद करती।
        बार्बी को केन्द्र बनाकर पावनी कुछ कहानियाँ लिख चुकी थी। जैसे- बार्बी एंड टाइमलैस स्टोरी। बार्बी सेव ब्लैकी कैटश्।  जिन्हें वह फेसबुक पर अपलोड कर चुकी थी। बार्बी सेव ब्लैकी कैटश् की शुरुआत में उसने लिखा था - जब वह ठंडी रात काँप कर रजाई में दुबक गयी थी। यह एक सच्ची घटना थी। ब्लैकी के रहने का प्रबंध पंकज ने छत के लिए जाने वाले जीने से कर दिया था। उस रात छत का दरवाजा खुला रह गया था। आधी रात में एक कातर महीन म्याऊँ - म्याऊँ की पुकार से उसकी नींद खुली। उसे लगा कि ब्लैकी की आवाज है। ब्लैकी पुकार रहा था। दरवाजा खोलने पर उसके सामने एक मोटा जंगली बिल्ला था। पंजा उठाए। उसके नीचे ब्लैकी पड़ा कराह रहा था। जब तक जंगली बिल्ला उसकी पिछली टाँगों की पिंडलियों का माँस नोच चुका था। भागना तो दूर उठने की ताकत नहीं बची थी ब्लैकी में।
- तो आप इस तरह अपना चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। यह इलाका आपका हरम है ही भाई, एक हरम में दो मर्द कैसे रह सकते हैं । पंकज ने कहा।
        बिल्ला अब भी उसके सामने था। अपना पंजा वह जमीन पर रख चुका था।
- इस तरह आप बच्चों को स्वर्ग भेज देते हैं। उठने लायक तक नहीं छोड़ा। चलेगा नहीं तो खाएगा क्या? पियेगा क्या? कितनी भूखी बेरहम मौत की सौगात देते हो। उसने कहते हुए डंडा फटकारा। जंगली बिल्ला कैसे रूकता। पीछे - पीछे पावनी भी आ गयी थी। टांगें ठीक होने तक पावनी रोजाना ब्लैकी की मरहम - पट्टी करती। जबकि मुन्ना उसे दूध भरा कटोरा दिन में कई बार पेश करता। अपनी इन कहानियों को पावनी चाहती की बार्बी कम्पनी अपनी कहानियों में जगह दे। वह ईमेल द्वारा कम्पनी को भेज चुकी थी। कम्पनी से जवाब आने की प्रतीक्षा कर रही थी। इसलिए शिमला के रास्ते में अनमनी रही। पंकज उसे बहलाने की कोशिश में उससे कहता- गुड़िया मेरी बातों की पुड़िया। जिसका वह जवाब नहीं दे रही थी।
- फेसबुक पर तुम्हारी कहानियों को सब लाइक कर रहे हैं। कह कर मम्मी उसे ढाढस बँधाना चाहती। साथ ही मुस्करा कर उसकी बैचेनी को दूर करने की कोशिश करती।
पावनी को मालूम था कि बार्बी की दुनिया में उसके पास चालीस पालतू जानवर हैं। जिनमें से एक बिल्ला भी है।
        ब्लैकी बिल्ले को अपनाने के लिए पावनी के लिए इतना काफी था।
ब्लैकी के चमकते काले बालों व भूरी आंखों के कारण पावनी ने उसका नाम ब्लेकी रखा था। लगता कि प्रकृति ने उसके शरीर में पम्प लगाकर स्कूर्ति भर दी है। पता नहीं कौन से तेल के कारण उसके चमकते बाल सम्मोहित करते।
        जंगली बिल्ले के हमले के बाद ब्लैकी पावनी के पैर का अँगूठा धीरे - धीरे अपने दाँतों से सहलाकर प्यार जताता।
         मुंडेर पर चढ़े ब्लैकी को पावनी यदि आवाज देती तो दौड़कर आ जाता।
        भूख लगने पर उसने दूध माँगने का तरीका ढूँढ लिया था। वह रेफ्रिजरेटर के पास जाकर म्याऊँ - म्याऊँ करने लगता।
        चाकलेट निगलता।
        कोल्ड ड्रिंक तक चाटता।
        जब तेज संगीत के साथ पावनी और मुन्ना धमाल करते तो वह म्याऊँ - म्याऊँ कर सब कुछ समझ आने का दावा पेश करता।
        सुबह उठकर मुन्ना सबसे पहले ब्लैकी को ढूँढता। उसे जीने में न पाकर उसकी नजरें मोहल्ले के घरों की मुंडेरों पर होती।
- सुबह - सुबह से ब्लैकी क्यों भागा - भागा फिरता है ? मुन्ना ने एक दिन पंकज से पूछा था।
- तुम तो सोते रहते हो पर ब्लैकी को सुबह - सुबह सूरज को जगाना होता है। वह आसमान में जाकर खिड़की खोलता है। तभी तो सूरज बाहर आता है।
        मुन्ना उसके उत्तर से संतुष्ट हो गया था। जबकि पावनी बहुत देर तक इस उत्तर से मुस्कराती रही।
चार - पाँच साल का मुन्ना ब्लैकी को अपना दोस्त कहता। वह ब्लैकी को अपनी गोद में बैठाकर शिमला लाना चाहता था। पिछले तीन - चार दिनों से खडा को दूध पिलाते समय वह कहता कि इन गर्मियों में वे शिमला जा रहे हैं। वहाँ गर्मियों में भी ठंड होती है। तुम भी मेरे साथ चलना। मेरी गोद में बैठ कर। तुम मुझे ज्यादा प्यार करते हो ना। ये सामने वाला चीनू तो तुमसे प्यार का नाटक करता है। तुम्हें दूध में पानी मिलाकर पिलाता है। पापा कह रहे थे कि वहाँ बड़ा मजा आयेगा।
        हद होती। जब वह ब्लैकी को स्कूल पढ़ाने के लिए ले जाना चाहता  या जब मुन्ना मोबाइल फोन ब्लैकी के हालचाल पूछने के लिए स्कूल ले जाना चाहता था। इस पर मम्मी उसे झिड़क देती। कहती - मैं हूँ तो तुम्हारे ब्लैकी के लिए। तुम स्कूल जाते हो तो वह जीने में आराम करता है। बन्द किवाड़ों में भी वह कैसे आ जाएगा जंगली बिल्ला। उससे ब्लैकी डरता है। मैं तो नहीं डरती।
        उस ताकतवर जंगली बिल्ले से बचाने के लिए मुन्ना ब्लैकी को अपने साथ ले जाना चाहता था। चलते समय उसने ब्लैकी को पकड़कर गोद में बैठा लिया था। पर जैसे ही कार स्टार्ट हुई, वह कूदकर भाग गया। जबकि मम्मी उसके रहने का प्रबंध चीनू के घर कर चुकी थी।
        वेटिंग हॉल की विशाल पारदर्शक शीशों की दीवार के पार फैली घाटियों में चहलकदमी करते अँधेरे उजाले को देख मंत्रमुग्ध सा मुन्ना दीवार के पास जा खड़ा हुआ था। उस समय सूरज थककर जा चुका था।
        ऐतिहासिक होटल के मैनेजर से बात करते समय पंकज का ध्यान वेटिंग हॉल की एक दीवार पर खूबसूरत लिखावट में लटकी एक घोषणा पर गया, जो स्वतंत्र भारतीय दिलों में बसी गुलामी का पता बता देती। सागवान के आयताकार टुकड़े पर बसी घोषणा वायसरायों और अंग्रेज सैन्य अधिकारियों को दर्प के साथ याद करती। जो जलती गर्मी में सुकून के लिए पिछली शताब्दियों में भौरों की तरह खींचें चले आये थे। आगन्तुक यह सब जानकर एक साँस में शान की एवरेस्ट पर बिना ऑक्सीजन के जा पहुँचता।
        होटल के गलियारे बीते वक्त से रोशन थे। फोटो फ्रेमों से झाँकते बीते पल गये वक्त का एक झरोखा खोल देते। रजवाड़ों के दरबारों से लेकर शिकार के लिए जाते वायसरायों के भरे पूरे फोटो एक तिलिस्म सा गढ़ने में सफल थे। इन्हीं बीते पलों से खोयी पावनी ने पंकज को आवाज देकर कमरे से बुलाया था - पापा! देखो। चर्च के गेट के पास बैठा बंदर चर्च में जाते वायसराय को कैसे दाँत दिखा रहा है।
फोटो में वायसराय अचंभित मुद्रा में थे। शायद सोच रहे थे कि जब सारा भारत उनके सामने घुटनों पर था तो एक अदने बंदर ने इतनी हिमाकत कैसे की।
        पंकज ने होटल के गलियारे से वापस कमरे में जाते वक्त महसूस किया कि ज्यादातर वायसराय और सैन्य अधिकारियों के द्वारा मारे गये शेरों के फोटोग्राफ  वक्त के गवाह हैं। शिकारी वेशभूषा में राइफल लिए अधिकारी शेरों के सिरों पर अपना एक पैर रखे हैं। जिनके बगलगीर भारतीय राजे महाराजे और नवाब प्यादे बने खड़े हुए थे। होटल के गलियारे से गुजरना पंकज के लिए किसी कब्रिस्तान के बीचों - बीच खुली हुई कब्रों के ऊपर से गुजरना जैसा हो गया था।
        कमरे में मुन्ना लाइव वीडियो काल पर ब्लैकी को चीनू द्वारा दूध पिलाते देख रहा था।
        फोन पर मुन्ना उसे ब्लैकी कहकर पुकारता।
        दूरियाँ पार कर मुन्ना की आवाज ब्लैकी तक पहुँचती। फोन पर वह मुन्ना की पुकार सुनता। चौंकता। दूध पीते - पीते वह नजरें उठाता। चौंक कर इधर - उधर देखता। उसे चीनू के सिवाय कोई नहीं दिखता। यह सब वीडियो कॉल पर देख होटल के कमरे में बैठा मुन्ना तालियां बजाने लगा था।
कुछ देर बाद कल घूमने जाने के लिए पंकज रूपरेखा बनाने लगा।
        तभी मासूम बचपन का इंद्रधनुष कमरे में उतर आया। मुस्कराता मुन्ना अचानक ठिनकने लगा था।
        चीनू द्वारा वीडियो कॉल पर ब्लैकी को दूध पिलाते देख, बोला - ब्लैकी अब चीनू से शादी कर लेगा। मुझे मना कर देगा। ठिनकता मुन्ना रोने लगा था।
        पावनी ने उसे गोद में भर लिया। बोली - मैं ब्लैकी से मना कर आयी हूँ ना।
- ना। पर उससे कर लेगा। मुन्ना जोर - जोर से रोने लगा था।
        पावनी उसे बालकनी में ले गयी।
        उस उतरती दोपहर मोहल्ले में शोर मचा था कि कुत्ते एक बिल्ले को पकड़ने में लगे थे। कुछ घंटों बाद शाम को आश्रय ढूँढता निढाल और बेजान - सा ब्लैकी घर के दरवाजे के पीछे पावनी को मिला। चीते की बोन्साई लगता बिल्ला। भागने की ताकत उस समय ब्लैकी में नहीं थी। सूखा शरीर। तेज - तेज चलती साँसों के साथ जिन्दगी से जंग लड़ रहा था। मुन्ना उसे देखकर मचल गया। पावनी उसके लिए दूध भरा कटोरा ले आयी थी। एक परी - कथा की तरह जीवन में आया था। चीनू और मुन्ना के लिए जीता जागता एक साझा खिलौना।
        दोनों स्कूल से आकर उसे दूध पिलाते। उसके लिए नई - नई शर्ते लगाते। झगड़ते। इन झगड़ों और शर्तों के हिंडोलो में सारा मोहल्ला हँसता। मुस्कराता। शहर का एक पुराना मोहल्ला। जहाँ सुबह घरों की मुँडेरों पर कबूतरों की गुटर गूँ गुटर गूँ में प्रकृति का स्वागत करती। दोपहर में धूप स्वयं वहाँ अलसा जाती। संध्या आरती और फिल्मी गानों के साथ बच्चों की किलकारियों में घुलमिल जाती।
बिल्ली को पावनी और मुन्ना अपने साथ अपने कमरे में रखना चाहते। जिसके लिए मम्मी तैयार नहीं थी। कहती-  बिल्ली असहनीय है। घर में पालना परम्पराओं के विरुद्ध है।
        पंकज ने बीच का एक रास्ता खोजा। जीने में उसके लिए जगह बनायी गयी। पावनी ने एक गत्ते के डिब्बे में पुराने अखबार लगाकर उसका बिस्तर बनाया। मम्मी ने दूध के लिए एक कटोरी दी। दोनों को उलझन होती, जब मुन्ना ब्लैकी के मुँह से अपना मुँह लगाने की कोशिश करता। या ब्लैकी पावनी के बिस्तर में घुस जाता। एक दिन पंकज ने कहा - तुमने पाला है ब्लैकी। इसकी वैक्सीन का खर्चा तुम अपनी जेब खर्च से दोगी। पहले से नाराज पावनी इस बात पर ठुनक गयी। जबकि वह अपनी जेब खर्च से बार्बी की नयी ड्रेस लाना चाहती थी।
उस रात पावनी कुछ जल्द सो गयी। डायरी लिखना उसकी आदत में शामिल हो चुका था। इसका कारण बार्बी का नियमित डायरी लिखने का प्रचार था। टेबल लैम्प जल रहा था। पंकज पावनी के कमरे में गया। पावनी मीठी नींद में थी।
        डायरी खुली थी। पंकज ने पड़ा- मैं पापा से नाराज हूँ। बहुत ज्यादा नाराज। मेरी कोई बात सुनते नहीं हैं। बार्बी के पास अपना ड्रीम हाऊस है। जैसे मेरे पास क्या ड्रीम रूम नहीं हो सकता। क्या वे मेरी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते। पापा जानते हैं कि बार्बी के पालतू जानवरों में शेर का एक बच्चा भी है। मैंने तो एक बिल्ला पाला है। उसके टीके भी अपनी जेब खर्च से लगवाऊँ। वैसे मुझे वे अपनी गुड़िया बातों की पुड़िया कहते हैं। सब झूठ। उनका जीवन एक घटना में अटका है। जो सालों पहले भोपाल में घटित हुई। एक यूनियन कार्बाइड कंपनी थी। जिससे एक रात में निकली जहरीली मिक गैस से बीस हजार आदमी मारे गये। वे कहते हैं कि हमारी सरकार उस कंपनी के चीफ  एंडरसन को एक दिन की भी सजा नहीं दिला सकी। इन सबका मेरे ड्रीम रूम और ब्लैकी की वैक्सीन से क्या संबंध?
        आखिरी सवाल पंकज को छील गया था। सोती पावनी को उसने देखा। कमरे से बाहर निकलते वक्त अतीत एक बार फिर सामने था। बीस हजार बदनसीब लाशों में उसके अपने चाचा - चाची थे। उस रात सोने के बाद उनके भाग्य में सुबह नहीं थी। उन्हें जहरीली गैस से बचाव के लिए पानी से भीगे रूमाल रखने का मौका भी नहीं मिला। उस गैस से बचाव का एक साधारण सा उपाय नाक पर गीला कपड़ा रखना था। इसके प्रचार के लिए वकील चाचा जी ने कोर्ट के नोटिस द्वारा अपनी बात कंपनी से कही थी। जिसे कंपनी ने अनसुना कर दिया। उस समय खून से भरी फिजा में प्यादे से सत्ताधीश एंडरसन को वापस भेज न्याय- न्याय चिल्लाने लगे थे। उसके मन में एक सवाल बार - बार आता। उस रात हवा का रुख हुक्मरानों के महलों की तरफ  क्यों नहीं था?
        सुबह पावनी गलियारों में शिकार में मारे गये शेरों की गिनती करना चाहती थी। बाहर घूमने जाने के लिए देर हो रही थी। पंकज उसके पास पहुँचा। दोनों वायसराय कर्जन के सामने थे। फोटोग्राफ  में एक शेर के सर पर पैर रखकर खड़े कर्जन ने कुल पाँच शेर मारे थे। उसके बगलगीर प्यादा सा खड़ा नवाब हैदराबाद था। फोटोग्राफ के नीचे लगा था, वायसराय को शिकार के लिए बुलाना उस समय शान का प्रतीक था। नवाब हैदराबाद के साथ खड़े लार्ड कर्जन ने एक बार कहा था- ज लांग एज वी रूल इंडिया, वी आर ग्रेटेस्ट पावर ऑफ  दी वर्ड। जब तक हम भारत पर काबिज हैं, हम विश्व की महान शक्ति रहेंगे।
- पापा! अपना ब्लैकी देखने में शेर जैसा लगता है।
- कोई ई-मेल आया बार्बी की कंपनी से। विषय बदलते हुए पंकज ने पूछा।
        चुप रही पावनी।
        पंकज ने दोबारा पूछा।
- पापा! मैं आपको बता देती न। कुछ - कुछ झल्लाकर वह बोली।
        गलियारा पार कर दोनों होटल से बाहर निकलते वक्त पंकज पावनी से बोला- दो सौ साल के अंग्रेजों के शासन में इंडिया ने बहुत तरक्की की। इतनी कि एक सुई के लिए भी दूसरे देशों का मोहताज रहा। बार्बी कम्पनी भी चाहती है, तुम जैसी बार्बी दीवानी मीरा हर घर - ऑगन में हो। तुम बार्बी बनो इसमें तुम्हारी नहीं उस कम्पनी की सफलता है।
        होटल के बाहर धूप खिली थी। गर्मी के मौसम में काटने को आती धूप पहाड़ों पर सौम्य और दुलारती लग रही थी।
        कार में पावनी पापा के पास बैठी थी।
- मेरी जीनियस बातों की पुड़िया। कहकर पंकज ने उसे प्यार से थपथपाया।
- पापा। पापा। कहकर वह उससे लिपट गयी।
        पिछले कुछ दिनों में उलझी - उलझी पावनी के चेहरे पर उजास झाँकने लगा था। तभी पंकज को लगा कि पावनी ने बार्बी को पहाडी घाटियों को नजर कर दिया है। जिसे वह उस वक्त देख नहीं सका था।
निदान नर्सिंग होम, फ्री गंज रोड
हापुड़ - 245101
                                                                                                               मेल :  a.ajaygoyal@rediffmail.com

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