इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 31 अगस्त 2015

बहुआयामी कलाकार : सुरेश यादव

वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह

वीरेन्‍द्र बहादुर सिह
        संगीत साधना वस्तुत: ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा की मुखर अभिव्यक्ति है। संगीत साधक अपनी साधना एवं प्रस्तुतियों से अपने व्यक्तित्व का विकास कर अपनी माटी और परिवेश को गौरवान्वित करते हैं। लोक संगीत के क्षेत्र में ऐसी ही अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने वाले एक कलाकार हैं सुरेश यादव, जिन्होंने भजनों से लेकर जसगीत एवं पारम्परिक लोकगीतों से लेकर फागगीत के गायन तथा सुगत संगीत से लेकर हारमोनियम, बेंजों एवं ढोलक नंगाड़ा जैसे स्वर एवं अवनद्य दोनों वाद्यों पर अपने सधे हुए हाथों का कमाल दिखाकर तथा नृत्य तथा नाट्य निर्देशन में अपनी कला को और जीवंत तथा मुखरित किया है।
सुरेश यादव
        लोक मंचों पर गायक-वादक दोनों भूमिका का सहजतापूर्वक निर्वहन करने वाले श्री सुरेश यादव का जन्म 02 जुलाई 1967 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के  छुईखदान नगर में एक मध्यमवर्गीय यादव परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री बनवाली यादव एवं माता का नाम श्रीमती मेहतरीनबाई यादव था। श्री यादव अपने माता-पिता की पहली संतान हैं। उन्होंने प्रायमरी से लेकर मिडिल स्कूल तक की शिक्षा छुईखदान के शैक्षणिक संस्थानों में पूर्ण की। तदुपरान्त शासकीय सेवा के दौरान उनकी माताजी का स्थानांतरण क्रमश: कुसमकसा (राजहरा) एवं बेमेतरा होने कारण हायर सेकेण्डरी स्कूल की परीक्षा उन्होंने 1985 में शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बेमेतरा से उत्तीर्ण की।
        कुछ समय के अंतराल के पश्चात उन्होंने स्वाध्यायी छात्र के रूप में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से 1990 में  कला स्नातक एवं 1992 में इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। लोक संगीत में गहरी रूचि के चलते उन्होंने वर्ष 2002 में स्वाध्यायी छात्र के रूप में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से द्विवर्षीय लोक संगीत में डिप्लोमा विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
        श्री यादव को बचपन से ही गायन का शौक था। स्कूली शिक्षा के दौरान जब वे कक्षा चौथी के विद्यार्थी थे तो स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उनके द्वारा मधुर स्वर में प्रस्तुत किये गये एक देशभक्ति गीत से प्रसन्न होकर नगर पालिका प्राथमिक शाला नम्बर एक छुईखदान के तत्कालीन कक्षा चौथी के कक्षा शिक्षक पं. श्याम प्रसाद तिवारी ने उन्हें पहली बार पुरस्कृत किया। इसी पुरस्कार ने श्री यादव को गायन के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और वे गायन के क्षेत्र में अग्रसर हुए। बाद में श्री यादव ने अपने स्कृली जीवन में अनेक बार सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी गायन शैली से श्रोताओं को प्रभावित किया तथा पुरस्कृत एवं सम्मानित हुए।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे लगभग छह-सात वर्षों तक गण्डई-पण्डरिया में अपने मामा के पास रहे तथा उनके व्यवसाय में हाथ बंटाया। इसी दौरान उनका संपर्क पण्डरिया में मां शीतला सेवा समिति से हुआ और शीघ्र ही वे इस समिति के सदस्य के रूप में शामिल हो गये। श्री यादव मूलत: गायक तो थे ही उन्होंने पण्डरिया में इस समिति के सानिध्य में  देवी जसगीत गायन की बारीकियां सीखी। साथ ही उन्होंने शौकियाना तौर पर हारमोनियम, बेंजों, ढोलक एवं नंगाड़ा वादन सीखा। शीघ्र ही वे इन वाद्यों को बजाने में दक्ष हो गये।
        लोकसंगीत में रूचि के कारण वे गण्डई-पंडरिया की लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक संस्था ''मया के फूल''  में शामिल हो गये। इस संस्था में उन्होंने अनेक बार गायक एवं मंच संचालक की दोहरी भूमिका निभाई। उन्होंने लोकगायक धुरवाराम मरकाम एवं सुप्रसिद्ध लोकगायिका दुखिया बाई के साथ कई कार्यक्रमों में गीत प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। गण्डई पंडरिया में युवा मित्रों के साथ मिलकर उन्होंने ''सप्तरंग''  सांस्कृतिक संस्था का गठन किया तथा अपने गण्डई प्रवास के दौरान उसका लगातार संचालन किया। श्री यादव को सुप्रसिद्ध भरधरी गायिका रेखा जलक्षत्रिय एवं पंडवानी गायिका श्रीमती रितु वर्मा के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत करने का गौरव भी प्राप्त है।
        श्री सुरेश यादव सन् 1993 में अपने जन्मस्थान छुईखदान वापस लौट आये। यहां उन्होंने श्री जगन्नाथ फाग भजन एवं जस समिति का गठन किया। इस समिति में वे रचनाकार, गायक एवं ढोलक वादक की तिहरी भूमिका निभाते थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ समय के लिए अस्तित्व में आये ''जयभारती'' पार्टी छुईखदान के गायक के रूप में हिन्दी फिल्मों के कई गीतों को अपना स्वर दिया। श्री यादव ने नब्बे के दशक में छुईखदान में स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में निर्देशक की भूमिका निभाई। उन्होंने स्कूली बच्चों द्वारा प्रस्तुत किये गये नृत्यों की कोरियोग्राफी कर अपनी परिकल्पना को बच्चों के माध्यम से मंच पर साकार किया। उनकी प्रस्तुतियां अधिकांश अवसरों पर सराही गयी।
        हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाग के श्री सुरेश यादव ने 1994 में संपन्न नगर पंचायत चुनाव में वार्ड क्रमांक-2 छुईखदान से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पार्षद का चुनाव जीता एवं अपनी क्षमतानुसार वार्ड एवं नगरवासियों की सेवा की। श्री यादव हिन्दी साहित्य समिति छुईखदान के उपाध्यक्ष हैं तथा लंबे समय तक छुईखदान की सक्रिय रचनात्मक संस्था ''प्रेरणा'' से जुड़े रहे।
        श्री यादव के नेतृत्व में उनकी संस्था ''सतरंग'' गण्डई पण्डरिया ने 1994 में 17 मार्च से 24 मार्च 1994 तक भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (युवा कार्य एवं खेल विभाग) द्वारा उत्तरप्रदेश के नेहरू युवा केन्द्र अमेटी के तत्ववधान में आयोजित ''राष्ट्रीय एकता शिविर'' में अविभाजित मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोरा एवं तत्कालीन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री केप्टन सतीश शर्मा ने उन्हें एवं उनकी टीम को सम्मानित किया।
        सहज स्वभाव वाले श्री यादव ने अनेक मंचों पर अपनी सहभागिता दर्शायी है। भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा आयोजित छत्तीसगढ़ लोककला महोत्सव 1992 में उन्हें गायक के रूप में एवं छत्तीसगढ़ी लोककला महोत्सव दल्ली राजहरा में 1996 में उन्हें ढोलक वादक के रूप में सम्मानित किया गया। नेहरू युवा केन्द्र राजनांदगांव द्वारा 1994 में उन्हें गायन एवं नृत्य निर्देशन का प्रथम पुरस्कार दिया गया।
        श्री यादव ने राजनांदगांव जिले के साक्षरता महायज्ञ में अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई है। 07 अप्रैल से 13 अप्रैल 1995 तक जिला प्रशासन राजनांदगांव द्वारा आयोजित साक्षरता अभियान जिला स्तरीय, स्रोत व्यक्तियों की नाट्य कार्यशाला में उन्होंने स्रोत कलाकार के रूप में सहभागिता की। 14 मई से 20 मई 1995 तक खैरागढ़ में आयोजित ब्लाक स्तरीय कला जत्था नाट्य कार्यशाला में उन्होंने गायक एवं वादन स्रोत व्यक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दी।
        श्री यादव ने राष्ट्रीय कुष्ठ अभियान के तहत 21 जनवरी से 30 जनवरी 1990 तक उदयपुर (छुईखदान) में आयोजित ''तन रक्षा और घाव मुक्ति पर्व'' शिविर में एक कलाकार के रूप में हिस्सा लिया। शिविर के दौरान कुष्ठ मुक्ति के प्रचार-प्रसारक हेतु श्री यादव ने शिविर में शामिल कलाकारों के साथ मिलकर एक नाटक का वीडियो कैसेट तैयार किया। इस कैसेट को कुष्ठ विभाग द्वारा डेनमार्क भेजा गया।
        श्री यादव की कला और प्रतिभा को अनेक अवसरों पर सम्मानित किया गया है। उन्हें शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला छुईखदान, शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बेमेतरा, नगर पंचायत छुईखदान, जनपद पंचायत छुईखदान, सेवाभावी संस्था ''प्रेरणा'' छुईखदान, हिन्दी साहित्य समिति छुईखदान, नेहरू युवा केन्द्र राजनांदगांव, चक्रधर कत्थक कल्याण केन्द्र राजनांदगांव द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। श्री यादव ने विभिन्न स्थानों पर आयोजित जस एवं फाग गीत प्रतियोगिताओं में अपनी टीम के लिए अनेक बार पुरस्कार जीता है।
        श्री सुरेश यादव न केवल गायक, वादक और उद्घोषक हैं अपितु लेखन के क्षेत्र में भी दखल रखते हैं। उनकी कुछ व्यंग्य रचनाएं एवं कविताएं नब्बे के दशक में स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। रचनात्मक कार्यों में संलग्न छुईखदान की संस्था ''प्रेरणा'' के दशक समारोह के दौरान सन् 2000 में छुईखदान में आयोजित प्रथम छत्तीसगढ़ी लोककला महोत्सव के आयोजन की परिकल्पना उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक (वीरेन्द्र बहादुर सिंह) के साथ मिलकर की। उस दौर में कस्बाई क्षेत्र में लोककला महोत्सव जैसे वृहद आयोजन की कल्पना करना और उसे सफलतापूर्वक साकार करना मुश्किल ही नहीं असंभव था, जिसे उन्होंने साकार कर दिखाया। श्री सुरेश यादव का मानना है कि अपनी धरती से जुड़े लोगों का सम्मान करके ही हम सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।
        पुराने फिल्मी गीतों को सुनने के शौकीन और सबको सहज सुलभ रूप में उपलब्ध होने वाले श्री सुरेश यादव ने एक दौर में अपनी कला के माध्यम से छुईखदान नगर को गौरवान्वित किया है लेकिन कालान्तर में एक लत के चलते उनकी सारी प्रतिभा का धीरे-धीरे क्षरण होने लगा। जनप्रतिनिधि बनने के बाद शौकियाना तौर पर शुरू किये इस लत ने सुरेश यादव को इस बुरी तरह से जकड़ा कि वे इसमें बुरी तरह डूबते गये। शराब ने सुरेश यादव को न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर कर दिया बल्कि उनके भीतर के कलाकार को भी मार डाला। तमाम मित्रों और शुभचिंतकों की समझाईश को उन्होंने हवा में उड़ा दिया और केवल अपने मन की बात ही सुनते रहे।
        सुरेश यादव ने अपने जीवन यापन के लिए कई तरह के व्यवसायों को अपनाया जिनमें क्रमश: पान ठेला, फोटो फ्रेमिंग, फोटो कापी, किराना व्यवसाय आदि शामिल हैं लेकिन दुर्भाग्य से वे किसी भी व्यवसाय में सफल नहीं हो पाये बल्कि उल्टे उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। दो पुत्रियों के पिता श्री यादव उम्र के पांचवें दशक में आज भी बेरोजगार है।  बहरहाल सिर्फ एक लत ने एक बेजोड़ कलाकार की प्रतिभा को निगल लिया।
सबेरा संकेत बल्‍देव बाग
राजनांदगांव (छ.ग.)

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