डॉ रामसिंह यादव
पारो चरित्रवान गरीब सुन्दर जवान युवती थी। वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी। मॉंं -बाप ने उसकी शादी बचपन में ही कर दी थी। कुछ वर्षों बाद उसका दुर्भाग्य ही था कि उसके पति का निधन एक दुर्घटना में हो गया। तब तक पारो एक बेटा और एक बेटी का मॉं बन चुकी थी। अब तो पारो के लिए मुसबतेंं खड़ी हो गई। बच्चों और बूढ़ी सास के भरण पोषण की जिम्मेदारी उस पर आ पड़ी थी। वह एक पोहा फैक्ट्री में काम करने लगी। उसी से उसके परिवार का पालन पोषण होने लगा।
एक दिन उसकी बूढ़ी सास राजूबाई ने उसकी लावण्यता यौवन का उभार, सादगी को विधवा साड़ी में देखा। उसने कहा - बहू, यह सच है कि तू विधवा है। आजकल जमाना खराब है। महिलाओं, युवतियों की सुरक्षा नहीं हो पा रही है। अकेली औरत का जीना मुश्किल हो गया है। तेरी सुरक्षा इसी में है कि विधवा होते हुए भी तू मंगल सूत्र पहने रहना। इससे तेरी सुरक्षा होगी।
सास की मंगल सूत्र वाली बात को पारो ने गंभीरता से लिया। समझा। उसकी आंखों में आंसू आ गये।अज्ञात घटना से बचने उसने उतार चुकी मंगल सूत्र को पुन: धारण कर लिया।
पता
14,उर्दूपुरा,उज्जैन
मोबा: 09669300515
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