- डॉ. रामशंकर चंचल -
धनी जुल्फ़ोंके
बीच
झांकते
बेहद खुशनुमा
रंगीन
सुकोमल / नाजुक
मन को छु लेने वाले
अजीब कसक भरे
चेहरे को
मैंने कई बार
तस्वीरों में देखा
याद है
मैं तब उसे
अकसर
निहारता / उससे
बाते करता
सोचता
सचमुच यह चेहरा
दुनिया में है भी
या किसी कलाकार की
कल्पना है
पर आज जब
तुम्हारी कज़रारी
रेशमी घनी जुल्फ़ों के
बीच तुम्हारा
चेहरा देखा तो
देखता रह गया
मन नहीं माना
मैंने उसे अपनी
आँखों के साथ
अपने कैमरे में भी
कैद कर लिया
और मन ही मन
नमन करता रहा
उस ईश्वर को
जिसने कितनी
अद्वितीय कृति का
निर्माण किया
तुम्हारे रुप में
जो चाह रहा था
मैं
अपने दोनों हाथों में
थाम लूं
ईश्वर के इस
साक्षात रुप को।
पता
माँ, 145, गोपाल कालोनी
झाबुआ - 457661 ( म.प्र.)
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