संस्कारधानी राजनांदगांव की साहित्यिक जमीं को कोई नकार नहीं सकता। जो यह कहता है राजनांदगांव में साहित्यिक गतिविधियां शून्य है उसे शायद यह नहीं मालूम की संस्कारधानी में आज भी साहित्य की वह धारा यथावत बह रही है जो डॉ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, डॉ बल्देव प्रसाद मिश्र, गजानन माधव मुक्तिबोध के समय बहती थी। मैं तो कहता हूं उन दिनों की अपेक्षा वर्तमान में साहित्यिक धारा कुछ अधिक ही वेग में बह रही है यही कारण है कि आज राजनांदगांव के साहित्कारों के अनेक पुस्तकें छप कर आ रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें