इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 15 सितंबर 2013

बस, औरत हूं और कुछ नहीं

शीला डोंगरे
बचपन में जब माँ समझाती
कदम सम्भलकर रखना बेटी
मर्दों की है दुनियां सारी
घर की नीव है, तेरी जिम्मेदारी
मन को पंख ना कभी लगाना
मर्दों से ना टक्कर लेना
माँ कह कह कर थक ही जाती
और मै हंस कर टाल भी देती
लेकिन कल ओ सामने आया
मुझकों उसने आइना दिखाया
मै फूल - कली हूँ भंवरें की जागीर
या हूँ तितली आवारा राहगीर
मै ठिटक गई ये सोंच के पल भर
झांक के देखूं खुद के अंदर
कुछ भी तो साबुत नहीं था
दिल टुकड़ों में बंटा पडा था
औकात मैं आपनी समझ चुकी थी
बस औरत हूँ और कुछ नही थी !!!
पता :अध्यक्ष , अखिल हिंदी साहित्य सभा (अहिसास )
फ्लैट न. डी 4, रोहण परिसर कोआपरेटिव हाऊसिंग सोसाइटी
राणे नगर नासिक पि. न. 422009

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