शीला डोंगरे
बचपन में जब माँ समझाती
कदम सम्भलकर रखना बेटी
मर्दों की है दुनियां सारी
घर की नीव है, तेरी जिम्मेदारी
मन को पंख ना कभी लगाना
मर्दों से ना टक्कर लेना
माँ कह कह कर थक ही जाती
और मै हंस कर टाल भी देती
लेकिन कल ओ सामने आया
मुझकों उसने आइना दिखाया
मै फूल - कली हूँ भंवरें की जागीर
या हूँ तितली आवारा राहगीर
मै ठिटक गई ये सोंच के पल भर
झांक के देखूं खुद के अंदर
कुछ भी तो साबुत नहीं था
दिल टुकड़ों में बंटा पडा था
औकात मैं आपनी समझ चुकी थी
बस औरत हूँ और कुछ नही थी !!!
बचपन में जब माँ समझाती
कदम सम्भलकर रखना बेटी
मर्दों की है दुनियां सारी
घर की नीव है, तेरी जिम्मेदारी
मन को पंख ना कभी लगाना
मर्दों से ना टक्कर लेना
माँ कह कह कर थक ही जाती
और मै हंस कर टाल भी देती
लेकिन कल ओ सामने आया
मुझकों उसने आइना दिखाया
मै फूल - कली हूँ भंवरें की जागीर
या हूँ तितली आवारा राहगीर
मै ठिटक गई ये सोंच के पल भर
झांक के देखूं खुद के अंदर
कुछ भी तो साबुत नहीं था
दिल टुकड़ों में बंटा पडा था
औकात मैं आपनी समझ चुकी थी
बस औरत हूँ और कुछ नही थी !!!
पता :अध्यक्ष , अखिल हिंदी साहित्य सभा (अहिसास )
फ्लैट न. डी 4, रोहण परिसर कोआपरेटिव हाऊसिंग सोसाइटी
राणे नगर नासिक पि. न. 422009
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