शिखा वाष्णेय
मैं थी ही क्या तुम्हारे लिए
एक चलती फिरती प्रतिमा
या एक यंत्र भर
जरूरतों की पूर्ति का
जिसका अपना तो कुछ था ही नहीं
ख़ुशी भी थी तुम्हारी हंसी में
गमगीन भी थी तुम्हारी नमी में
पर तुम...
तुम हमेशा रहे
मेरे लिए सब कुछ
मेरा दिल,जान, नींद,सपने
मेरी सहर,धूप,छाँव,नगमें
अब मेरी कविताओं में तुम
कभी कभी मुस्कुरा भी देते हो तो
यूँ लगता है जैसे
तुम्हारे दिल ने मेरे वजूद को छुआ है।
मैं थी ही क्या तुम्हारे लिए
एक चलती फिरती प्रतिमा
या एक यंत्र भर
जरूरतों की पूर्ति का
जिसका अपना तो कुछ था ही नहीं
ख़ुशी भी थी तुम्हारी हंसी में
गमगीन भी थी तुम्हारी नमी में
पर तुम...
तुम हमेशा रहे
मेरे लिए सब कुछ
मेरा दिल,जान, नींद,सपने
मेरी सहर,धूप,छाँव,नगमें
अब मेरी कविताओं में तुम
कभी कभी मुस्कुरा भी देते हो तो
यूँ लगता है जैसे
तुम्हारे दिल ने मेरे वजूद को छुआ है।
पता : द्वारा - शिल वाष्णेय
3/214, विद्या नगर कालोनी
अलीगपताढ़ (उ . प्र . )
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